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प्रोटेम स्पीकर को लेकर अब भी सस्पेंस बरकरार, राज्यपाल को भेजे गए 17 नाम

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महाराष्ट्र में सरकार बनाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद अब सारा ध्यान एक बार फिर राज्यपाल और प्रोटेम स्पीकर की ओर जा रहा है. अब सारा दारोमदार इस बात पर है कि राज्यपाल किसे प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करते हैं, हांलिक विधायकों के वरिष्ठता पर चयन किया जाता है. लेकिन इसके लिए कोई कानून नहीं या फिर राज्यपाल इसको लेकर बंधा नहीं होता कि वरिष्ठ विधायकों को ही ये जिम्मेदारी दी जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने आज मामले को लेकर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि कोर्ट ने हॉर्स ट्रेडिंग को रोकने के लिए कल शाम 5 बजे तक सदन में फ्लोर टेस्ट कराने के आदेश जारी कर दिए हैं. इसके पूर्व सभी विधायकों को शपथ दिलाई जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने प्रोटेम स्पीकर द्वारा ही सभी विधायकों को शपथ दिलाने और फ्लोर टेस्ट कराने का भी आदेश जारी किया है. ऐसे में अब सदन का प्रोटेम स्पीकर कौन होगा, इस पर सबकी निगाहें हैं. आमतौर पर सदन के सबसे वरिष्ठ विधायक को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है. इस लिहाज से कांग्रेस के बाला साहेब थोरात को प्रोटेम स्पीकर बनाए जाने का पार्टी दावा कर सकती है. तो वहीं भाजपा चाहती है कि हरिभाऊ बागड़ को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाए. विधानसभा की ओर से इसके लिए राज्यापाल को 17 नाम भेजे गए हैं.

बता दें कि महाराष्ट्र में पिछली सरकार के दौरान भाजपा विधायक हरिभाऊ बागड़े स्पीकर रहे हैं. ऐसे में आधिकारिक तौर पर अगला स्पीकर ना बनने तक हरिभाऊ के पास ही चार्ज रहेगा. इन नामों में उन विधायकों के नाम शामिल हैं जो लगातार 5 बार से विधानसभा से जीतते आए हैं. इसमें वरिष्ठ विधायकों के साथ ही बाला साहेब थोरात, छगन भुजबल, जयंत पाटिल के नाम भी शामिल हैं.

क्या होता है प्रोटेम स्पीकर?

प्रोटेम शब्द लेटिन भाषा के प्रो टेम्पोर का संक्षिप्त रुप है. इसका अर्थ है ‘कुछ वक्त के लिए’. इसका सीधा अर्थ है कि प्रोटेम स्पीकर का कार्यकाल कुछ वक्त के लिए ही होता है. प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है. आमतौर पर प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति लोकसभा या विधानसभा में स्थायी विधानसभा अध्यक्ष नहीं चुन लिए जाने तक रहती है. प्रोटेम स्पीकर द्वारा ही नवर्निवाचित सांसदों और विधायकों को शपथ दिलवाई जाती है.

कर्नाटक मामले को लेकर विपक्ष में डर

कर्नाटक में साल 2018 में विधानसभा चुनाव के बाद के सदन में वरिष्ठतम सदस्य कांग्रेस के आर. वी. देशपान्डे थे. पर राज्यपाल वाजूभाई वाला ने बीजेपी के के. जी. बोपैया को प्रोटेम स्पीकर बनाया था. राज्यपाल ने तर्क दिया था कि उन्होंने विधानसभा के सचिव की ओर से दी गई सूची में से बोपैया का नाम चुना था. और जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो कोर्ट ने भी किसी भी तरीके के हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था.