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विकास मॉडल का मजाक: स्कूल में छात्रों को 50 ग्राम गेहूं से भरना होगा पेट

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हितेश चावड़ा, नडियाद: विश्व के कई देश वैश्विक आपदा कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रहे हैं. ऐसे में लंबे तालाबंदी के बाद भारत में अधिकांश दिहाड़ी मजदूर और गरीब तबके के लोग भूखमरी का शिकार होने लगे हैं. ऐसे में सरकार गरीबों को मुफ्त अनाज मुहैया करवाने का ऐलान कर 1 अप्रैल से गुजरात सरकार, सरकारी राशन की दुकान पर अनाज वितरित करना शुरू कर दिया है. इस योजना के तहत स्कूल में शिक्षा हासिल करने वाले बच्चों को भी अनाज दिया जा रहा है. जिसकी जिम्मेदारी स्कूल के शिक्षकों को दी गई है. लेकिन स्कूल में बच्चों को दिया जाने वाले अनाज की मात्रा को देखकर ऐसा लगता है कि गुजरात सरकार गरीबों का पेट नहीं भर रही बल्कि उनके साथ क्रूर मजाक कर रही है.

गुजरात एक्सक्लूजिव ने मामले की पड़ताल के लिए नडियाद इलाके की चार अलग-अलग स्कूलों की मुलाकात की जिसके बाद हकीकत सामने आया कि गुजरात सरकार पब्लिसिटी की नशा में बच्चों को अनाज देने का ऐलान तो कर दिया लेकिन अनाज कहां से आएगा और बच्चों को अपना पेट भरने के लिए कितने अनाज की जरुरत है इसे बिल्कुल भूल गई. नतीजा ये निकला कि गाँव में चलने वाली प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक अपने कर्तव्य की जिम्मेदारी निभाने स्कूल तो पहुंच गए और सरकार के नियमानुसार अनाज की वितरण भी किया लेकिन बच्चों को मिलने वाले अनाज से बच्चों का खुद का पेट भरेगा ये सवाल खड़ा होने लगा है. स्कूल में पढ़ने वाले गरीब छात्रों के हाथ में मिठ्ठी भर अनाज देखकर ऐसा लगता है कि गुजरात सरकार बेसहारा बच्चों के परिस्थिति के साथ इस मुश्किल वक्त में भी मजाक कर रही है.

गुजरात एक्सक्लूजिव की टीम के हाथों लगी सटीक जानकारी के अनुसार, बच्चों के दो छुट्टियों को छोड़कर, पिछले 11 दिनों का चावल और गेहूं दिया गया. कक्षा 1 से 5 के बच्चों को 550 ग्राम और कक्षा 6 से 8 के बच्चों को 825 ग्राम चावल और गेहूं दिया. नडियाद के कई गांव में बच्चों मिलने वाला अनाज 1 और 2 अप्रैल के बीच वितरित किया गया.

सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को स्कूल बुलाया जा रहा है और उनका हस्ताक्षर लेने के बाद अनाज दिया जा रहा है. लेकिन छात्रों को मिलने वाली अनाज की थैली देखकर शर्म आती है और सवाल उठता है कि क्या 550-825 ग्राम गेहूं के आटे से क्या बच्चे के लिए 11 दिनों की रोटी बन सकती है?

इसके अलावा, एक स्कूल के शिक्षक ने कहा कि आदेश को अनाज वितरित करने का दे दिया गया है, यहां बच्चे भी पर्याप्त संख्या में आ गए हैं, लेकिन सरकार ने बच्चों में वितरित करने के लिए अनाज का कोई विशेष जत्था नहीं दिया है जिसकी वजह से हमें मजबूर होकर मध्यान भोजन के लिए मौजूद अनाज के जत्थे से बच्चों को अनाज दिया जा रहा है. इतना ही नहीं उन्होंने बताया कि अब बच्चों को प्रति दिन 4.96 रुपये कंटीजंसी जमा करवाना है उसके लिए पंजीकृण प्रक्रिया को शुरु किया गया है, लेकिन बैंक में तालाबंदी के दौरान इतने बच्चों को एन्ट्री दिलवाना भी एक चुनौती है. सरकार ने बैंक के साथ ही साथ बच्चों को दी जाने वाली अनाज का कोई खास इंतजाम नहीं किया है.जिसकी वजह से बच्चों के साथ ही साथ शिक्षकों को भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.

सरकारी स्कूलो में बच्चे मध्यान भोजन के लिए आते हैं, जिनके माता-पिता अपना पेट भरने के लिए मजदूरी करने जाते हैं. तालाबंदी के बाद मजदूरी का काम बंद हो गया है. खेती में कोई विशेष काम नहीं बचा है. स्कूल में छुट्टी होने की वजह से बच्चों को दोपहर का मध्यान भोजन भी नहीं मिलता. इस मुश्किल वक्त में गुजरात सरकार सिर्फ और सिर्फ 50 ग्राम दैनिक अनाज और 4.96 पैसा दैनिक सहायता देकर गुजरात के गरीबों के गरीबी के साथ क्रूर मजाक कर रही है.