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कोरोना रिपोर्ट- 6: तबाह हो रही करोड़ों की फल, गुजरात के बागवानी किसान परेशान

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विशाल मिस्त्री, राजपीपणा: कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के बीच सबसे ज्यादा दिहाड़ी मजदूर और किसानों को इसकी मार झेलनी पड़ रही है. जैसे-जैसे तालाबंदी खुलने का दिन नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे एक बार फिर से लंबे तालाबंदी का बादल मंडराने लगा है. तालाबंदी के बाद गुजरात के किसान वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं. तालाबंदी की वजह से किसान के फैसल खेत में तैयार तो हैं लेकिन उसे खरीदने वाला नहीं मिल रहा जिसकी वजह से किसानों को आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है.

नर्मदा जिला ज्यादातर किसान केले की फसल पर निर्भर हैं. तालाबंदी के बाद किसानों के खेत में केला की फल पककर बिल्कुल तैयार हैं लेकिन पके हुए केले को व्यापारी खरीदने को तैयार नहीं. इस मुश्किल वक्त में अगर कोई केला खरीदने के लिए तैयार भी होता है तो मार्केट से 30% कम कीमत में खरीदने की बात करता है. नर्मदा जिले के किसान कह रहे हैं कि जिले में लगभग 50,000 एकड़ में केले की फल उगाई गई है. लेकिन आज व्यापारी केला का इतना दाम दे रहे हैं जिससे किसानों की लागत भी नहीं निकल रही है. ऐसे में फायदा होने की उम्मीद करना किसानों के साथ बेइमानी होगी.

नर्मदा जिला के अन्य किसान पपीता उगाते हैं. मिल रही जानकारी के अनुसार नर्मदा जिले में लगभग 200 एकड़ खेत में पपीते की फल तैयार हो चुकी है. नर्मदा जिला के टंकारी गांव में रहने वाले किसान विजय सिंह राठोड और प्रवीण सिंह तालाबंदी के दौरान होने वाली किसानों के परेशानी को लेकर बताते हैं कि जिला में 200 एकड़ जमीन में 2 लाख से ज्यादा पपीते का पौधा लगाया गया है. एक एकड़ जमीन में एक हजार से ज्यादा पपीता का पौधा लगाया जाता है. नर्मदा जिला में पपीता उगाने वाले किसान हर दिन 60 से 70 मन पपिता फेंकने के लिए मजबूर हो रहे हैं. किसानों का कहना है कि पपीता खरीदने के लिए पहले तो कोई आता ही नहीं है अगर आ भी जाता है तो मजदूर नहीं मिलने की वजह से पपीता तोड़ा नहीं जा सकता. किसानों की मांग है कि तालाबंदी के दौरान किसानों को छूट मिलनी चाहिए ताकि हम अपने फसल को बेच सकें. किसानों का कहना है कि तालाबंदी से पहले एक मन पपीता के लिए किसानों को 300 रुपया मिलता था. लेकिन आज सिर्फ इसका 20 रुपया मिल रहा है. जिसकी वजह से किसानों को एक एकड़ में 2 लाख रुपये का नुकशान हो रहा है.

पपीते को खरीदने के लिए स्थानीय व्यापारी नहीं है, वडोदरा, आनंद, भरूच, जंबुसर, सूरत से व्यापारी पपीता खरीदने आते हैं. दूसरी तरफ पपीते को तोड़ने के लिए इलाके में कोई मजदूर भी नहीं है. अगर प्रसाशन व्यापारियों के गाड़ी को आने कि अनुमति देती है तो एक ड्राइवर और एक सहायक. एकड़ जमीन में पपीता का पौधा उगाने के लिए किसानों को 50 हजार खर्च करना पड़ता है. अगर फसल अच्छी उगती है और दाम अच्छा मिलता है तो कम से कम 4 लाख रुपये मिलते है. गुजरात के किसान लंबे तालाबंदी की वजह से किसान परेशान नजर आ रहे हैं. इसलिए किसान मांग कर रहे हैं कि राज्य सरकार किसानों की परेशानी को हल करने के लिए कोई व्यवस्था करनी चाहिए ताकि किसानों को होने वाला नुकशान कम हो.

https://archivehindi.gujaratexclsive.in/corona-report-5-corona-breaks-back-economy-of-rural-economy-now-in-search-of-wages/