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घर वापस जाने वाले प्रवासी मजदूरों की दास्तां, टिकट नहीं मानो नई जिंदगी मिल गई

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कोरोना महामारी ने लोगों की जिंदगी को उजाड़ कर रख दिया है. 20 साल से गुजरात में अपना मकान बनाकर रह रहे और काम कर रहे लोगों को महामारी ने अपने मूल निवास पर लौटने पर मजबूर कर दिया है. यह सभी स्थिति सामान्य होने तक गुजरात लौटने के मूड में नहीं है.

गुजरात में अपनी दो बच्चियों और परिवार के साथ रह रही किरन पासवान बताती हैं कि उनके पति गुजरात में ही काम करते थे. इसके लिए पूरा परिवार 20 साल पहले गोरखपुर से गुजरात चला गया. पति के देहांत के बाद सब वहीं रहने लगे और गुजर बसर करने लगे लेकिन कोरोना महामारी ने परिवार की आर्थिक स्थिति की कमर तोड़ दी. खाने को नहीं बचा तो गोरखपुर में गांव से उधार मंगाकर किसी तरह जीवन चलता रहा. एक समय खाकर दिन काटा. फिर पैसे खत्म होने पर उन्होंने वापस लौटने का निर्णय किया.

मकानों में टाइल लगाने का काम करने वाले बाँदा के दिलीप कुमार बताते हैं कि वह गुजरात के आणंद में मोगरी गांव में 12 साल से काम कर रहे थे. वहां उन्हें खाने के लिए मुसीबतें उठानी पड़ रही थीं. एक समय खाना मिलता था जिसमें चार पूरी और थोड़ी सब्जी के अलावा कुछ न था. कोरोना के चलते तंग आकर उन्होंने लौटने का फैसला किया. घर लौटने के लिए टिकट मिला तो जैसे उन्हें नई जिंदगी मिल गयी. गांव जाने की खुशी है. उनके साथ वहां काम करने वाले सात और परिवारीजन भी वापस लौटे. इन लोगों ने कहा, गुजरात अब जल्द नहीं लौटेंगे.

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