विशाल मिस्त्री, राजपिपणा: नर्मदा जिले के 121 गांवों को ईको-सेंसिटिव जोन में शामिल किए जाने के बाद पूरे जिले के आदिवासियों में गुस्से की लहर दिखाई दे रही है. Narmada Eco Sensitive Zone
हर कोई मांग कर रहा है कि इको सेंसिटिव को रद्द किया जाए. बीजेपी सांसद मनसुख वसावा ने भी इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर बताया था कि नर्मदा के आदिवासियों में भय और नाराजगी का माहौल देखा जा रहा है.
कांग्रेस भी अब इस मामले को लेकर मैदान में आ गई है. कांग्रेस के नांदोद के विधायक पीडी वासवा और प्रदेश कांग्रेस महासचिव हरेश वसावा ने इको सेंसिटिव जोन से प्रभावित किसानों के साथ जिला कलेक्टर को आवेदन पत्र देकर, इस कानून को रद्द करने की मांग किया.
कांग्रेस नेताओं ने नर्मदा जिला कलेक्टर को दिया आवेदन
कांग्रेस नेताओं अपने आवेदन पत्र में कहा कि सरकार पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होने का दावा कर नर्मदा जिले के 121 गांवों को इसमें शामिल कर दिया. Narmada Eco Sensitive Zone
लेकिन आदिवासियों को कानूनी रूप से मिले अधिकार जैसे पांचवीं अनुसूची, वन अधिकार मान्यता 2006, वन अधिकार मान्यता 2008 के अनुसार हमारे क्षेत्र में जल, वन भूमि जैसी विविधता बनाए रखने के लिए सामुदायिक अधिकार प्राप्त हैं.
आदिवासियों की विशिष्ट पहचान को बचाए रखने की जिम्मेदारी सरकार की है. आदिवासियों के पशुधन की रक्षा के लिए गांवों और वन भूमि में चारे की खेती में सार्वजनिक भागीदारी की योजना बनाना सरकार का कर्तव्य है.
इको सेंसिटिव जोन को रद्द करने की मांग Narmada Eco Sensitive Zone
इसके अलावा, सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना में आदिवासियों की भूमि के बारे में कहा गया कि सरकार ने अल्प मुआवजा देकर आदिवासियों की जमीनें छीन ली हैं. Narmada Eco Sensitive Zone
अगर नर्मदा बांध का काम पूरा होने के बाद आदिवासियों को जमीन वापस मिल जाती, तो सरदार वल्लभभाई पटेल की आत्मा को शांति मिलती.
गौरतलब है कि नर्मदा जिले में कुल 1.50 लाख एकड़ भूमि इको-सेंसिटिव ज़ोन के अंतर्गत आता है. सरकार पर्यटन की योजनाओं के लिए इतनी बड़ी जल वन भूमि पर आदिवासियों का अधिकार छीनने की जल्दबाजी में है.
इसलिए सरकार ने इको सेंसिटिव ज़ोन से संबंधित चल रही कार्यवाही को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग की है. Narmada Eco Sensitive Zone
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