मौलाना अबुल कलाम आजाद ,आजाद भारत के सबसे पहले शिक्षण मंत्री थे, हमेशा देश की एकता और अखंडता को लेकर चिंतित रहने वाले सबसे ज्यादा देश के बंटवारे के खिलाफ़ थे, उन्होंने कहा था कि अगर आसमान से दूत (फरिश्ते) उतरकर आए और कहें कि हम तुमको आजादी दे देते हैं, मगर शर्त यह है कि तुम लोग धर्म के नाम पर सब अलग हो जाओ तो में कहूँगा की खुदा की कसम हमें वह गुलामी पसंद है जिसमें हिन्दू मुस्लिम एक साथ बैठ कर खाना खाते हो, ऐसी आजादी हमें कभी भी कबूल नहीं जिसमें हिन्दू मुस्लिम एक दूसरे से अलग हो जाए. देश की अखंडिता को लेकर ऐसी शानदार सोच रखने वाले मौलाना अबुल कलाम आजाद. अखंडता को लेकर ही नहीं शिक्षा को लेकर दुनिया को नया नया आयाम दिया इसीलिए आज शिक्षा और साफ सुथरी सियासत को लेकर मौलाना आजाद की सोच जरुरत महसूस की जा रही है.
आजाद तखल्लुस से मशहूर मौलाना आजाद युवावस्था से ही गजलगोई और शेरो-शायरी के लिए जाने जाते थे. लेकिन एक वक्त के बाद उन्होंने आजाद भारत का ऐसा सपना देखा जिसे वह पूरा करने में ऐसे लगे कि शेरो-शायरी की दुनिया से दूर हो चले. उनका जन्म सऊदी अरब के मक्का में हुआ था. आज़ाद जब दो साल के थे तभी उनके पिता कलकत्ते में आ बसे. आज़ाद का परिवार कई पीढ़ियों से आज़ादीपसंद विद्वानों का परिवार रहा था और इसलिए शहंशाहों से उनके परिवार का संबंध बहुत अच्छा नहीं रहा था. उदाहरण के लिए, उनके पूर्वजों में से एक मौलाना जमालुद्दीन उर्फ देहली के शेख बहलोल सम्राट अकबर के समकालीन थे. और जब अकबर ने दीन-ए-इलाही नाम का नया धर्म चलाने की कोशिश की, तो मौलाना जमालुद्दीन ने उस मसौदे पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. मौलाना जमालुद्दीन के बेटे शेख मोहम्मद ने अपने पिता की तरह ही जहांगीर के सामने झुकने से इनकार कर दिया, जिसकी वजह से उन्हें ग्वालियर के किले में कैद कर दिया गया. मौलाना आज़ाद खुद को उसी परंपरा का मानते थे और अंग्रेजों के प्रति उनका रवैया भी वैसा ही रहा.
देश की आजादी में अक्सर लोगों की कुर्बानियों को याद किया जाता है लेकिन मौलाना आजाद की कुर्बानी को अक्सर फरामोश कर दिया जाता है ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है कि तेरह साल की उमर में ही आज़ाद का निकाह ज़ुलैखा बेग़म से हो गया. ‘हसीन’ नाम का उनका बेटा जो उनकी इकलौती संतान था, वह चार साल की उमर में चल बसा. 1942 में जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का बंबई में हंगामेदार अधिवेशन चल रहा था, और आज़ाद उसकी अध्यक्षता करने के लिए घर से निकल रहे थे, तो उनकी पत्नी बहुत ज्यादा बीमार थीं. बाद में जब आज़ाद गिरफ़्तार हुए और उन्हें अहमदनगर किले में कैद कर दिया गया, उसी दौरान उनकी पत्नी का निधन हो गया.
उनके जन्मदिन के मौके पर 2008 से मानव संसाधन मंत्रालय ने 11 नवंबर को भारत में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है. मौलाना अबुल कलाम आजाद एक शिक्षाविद् तो थे ही साथ ही एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे. स्वतंत्रता संग्राम के समय वो ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से एक थे. शिक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की स्थापना की थी. उनका मुख्य लक्ष्य प्राइमरी शिक्षा को बढ़ाना था. इतना ही नहीं उन्हे 1992 में उन्हें भारत रत्न से भी नवाजा गया था. भारत की आजादी के बाद मौलाना अबुल कलाम ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग UGC की स्थापना की थी.
जब अंग्रेज सरकार ने मौलाना आजाद को बंगाल से निष्कासित कर दिया था तब वह कुछ साल तक रांची में ननज़रबंद रहे. इस दौरान राज्य की जामा मस्जिद में जुमे का खुत्बा देते रहे. उन्होंने अपने खुतबे में कहा के जंगे आज़ादी में हिस्सा लेना मुसलमानों का दीनी फ़रीज़ा है. उनके खुद के प्रभाव से रांची के हिंदुओं ने मौलाना आज़ाद से कहा कि वो भी उनका भाषण सुनेंगे. तब अंग्रेज सरकार ने उनके सार्वजनिक भाषण पर पाबंदी लगा रखी थी इसलिए मस्जिद में ही एक कमरा बनाया गया जहां शहर के हिन्दू जुमा का ख़ुतबा सुनने आने लगे.
मौलाना आजाद ने अपने जीवन का ध्येय यह बनाया कि वे इस्लाम का स्वच्छ रूप जनता को समझाएंगे और इसके लिए उन्होंने पत्रकारिता को अपना माध्यम बनाया. मौलाना आजाद की लेखनी में ऐसा जादू था जो सर चढ़कर बोलता था। 1912 में उन्होंने ‘ अल-हिलाल ‘ अखबार प्रकाशित किया जिसका ध्येय अंग्रेजों के खिलाफ भारतवासियों में राष्ट्रीय भावना जगाना था जिसमें वे पूरी तरह सफल रहे. मगर, हिन्दू – मुस्लिम संप्रदाय की आपसी सद्भावना को पनपते देख अंग्रेज सरकार ने इसे जब्त कर लिया। 1916 में पुन अल-बलाग ‘ के नाम से इसे मौलाना ने प्रकाशित किया और उस समय इसकी प्रसार संख्या 29000 पहुंच गई। फिर अंग्रेजों ने एक बार और उसे बंद कर दिया।
आजादी के समय उन्होंने बंटवारे का समर्थन नहीं किया और इसके खिलाफ खड़े हुए। हालांकि कई लोग आज भी मानते हैं कि जिस तरह गांधी जी ने बंटवारे के समय हालात को समझने में देर लगाई उसी तरह मौलान अबुल कलाम आजाद ने भी उस समय एकता के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए।
आज के नेताओं को मौलाना आजाद के जीवन से सबक लेना चाहिए कि किस प्रकार से देश की आन – बान के लिए वे सब कुछ लुटाने के लिए तैयार थे। भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद न केवल आपसी भाई चारे के प्रतीक थे बल्कि राष्ट्रीय सौहार्द का जीता जागता उदाहरण थे। उन्होंने देश में एकता बढ़ाने के लिए जो भी काम किए उन्हें यह देश हमेशा याद रखेगा.