“कितना आसान है हाथों से माले को घुमाते रहना, दरअसल इबादत तो वो है रोते को हंसाते रहना” राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मामला सामने आने के बाद पूरे देश में सबसे ज्यादा अयोध्या को बदनाम किया गया. वहां के आपसी भाईचारा और तहजीब को बदनाम किया गया. लेकिन आज भी आयोध्या जाने पर आपको हकीकत कुछ और नजर आएगी बस जरुरत है उस नजरिया से देखने की. अयोध्या की वह संस्कृति जिसे तथाकथित मीडिया ने बदनाम कर दिया है. पर आप जब ग्राउंड पर जाते हैं तो आपको वह संस्कृति देखने को मिलेगी जिसमें ना तो नफरत है और ना ही आपसी दूरियां. इस धार्मिक नगरी में मंदिर की घंटी और मस्जिद में अजान की आवाज एक साथ सुनाई देगी.
उत्तर प्रदेश सरकार ने फैसला से एक दिन पहले अयोध्या में पुलिस और सेना को सुरक्षा व्यवस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी सौंप दी. इतना ही नहीं मीडिया ने भी इसे हव्वा बना दिया और सुबह होते होते अयोध्या में धारा 144 लागू कर दिया गया. लेकिन फैसला आया और जिस तरीके से देश में अमन का माहौल बना रहा उसी तरीके का माहौल अयोध्या में भी देखने को मिला, इतना ही नहीं देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले अयोध्या में कहीं ज्यादा शांति का माहौल दिखा. इसके पीछे की वजह है अयोध्या की आपसी रवांदारी.
महंत और हाशिम अंसारी की दोस्ती
हाशिम अंसारी अयोध्या के उन कुछ चुनिंदा बचे हुए लोगों में से हैं जो लगातार 60 वर्षों से अपने धर्म और बाबरी मस्जिद के लिए संविधान और क़ानून के दायरे में रहते हुए अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं. सन 1949 से मुक़दमे कि पैरवी करने वाले अंसारी को आज तक किसी हिंदू ने एक लफ्ज़ ग़लत नहीं कहा. वह अक्सर अपने पड़ोस के हिन्दू भाईयों के यहां सपरिवार दावत खाने जाते हैं इतना ही नहीं विवादित स्थल के दूसरे प्रमुख दावेदारों में निर्मोही अखाड़ा के राम केवल दास और दिगंबर अखाड़ा के राम चंद्र परमहंस से हाशिम की अंत तक गहरी दोस्ती रही. परमहंस और हाशिम तो अक्सर एक ही रिक्शे या कार में बैठकर मुक़दमे की पैरवी के लिए अदालत जाते थे और साथ ही चाय-नाश्ता करते थे.
अयोध्या के हनुमान गढ़ी मंदिर
सुप्रिम कोर्ट का फैसला आने के बाद ज्यादातर लोग मान रहे थे कि अयोध्या में हालात खराब हो सकते हैं लेकिन अयोध्या के लोगों ने लोगों की सोच को बदल दिया. अब बात करते हैं. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अयोध्या में रहने वाले साधु संत और वहां के मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच के रिश्ते की. फैसला के बाद लोग तरह तहर की बात कह रहे थे लेकिन फैसला के बाद भी अयोध्या में वहीं आपसी रवांदारी देखने को मिल रही है.
इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अयोध्या में हिन्दु-मुस्लिम आपसी भाईचारे के साथ रह रहे हैं. इतना ही नहीं जिस मंदिर मस्जिद को लेकर उन्माद फैलाने की कोशिश की जा रही है. ऐसी ही एक मस्जिद अयोध्या के हनुमानगढ़ी में मौजूद है जो हिन्दू अखाड़े की जमीन पर बनी हुई है. ये मस्जिद हिन्दुओं के इलाके में बनी हुई है और उसके आसपास मंदिर हैं और मुस्लिमों की आबादी भी ना के बराबर है. इलाके में मौजूद मस्जिद जर्रित होने की वजह से अयोध्या प्रशासन ने उसे तोड़ने के लिए नोटिस दिया था. इस मौके पर मस्जिद को बचाने के लिए आगे आये थे महंत ज्ञानदास.
महंत ज्ञानदासजी ने मुस्लिमो को ईक्कठा कर के ये मस्जिद को फिर से रिस्टक्चर करवाने को कहा, क्युं के अयोध्या में एक पुराना मंदिर गिर गया था तब से प्रशासन ने अयोध्या में जितने भी पुराने घर, मंदिर, मस्जिद थी उनको गिराने का निर्णय लिया था. ऐसे में वो मस्जिद को बचानी थी तो उसको फिर से रिस्ट्रक्चर करवाना एक मात्र विकल्प था. तब ज्ञानदासजी ने उस जर्जित मस्जिद की मरम्मत कराने के लिए मुस्लिमों को पांच से दस लाख रूपिये दान देने की बात कही लेकिन मुस्लिम समुदाय ने उनके पैसे लेने से इनकार कर दिया और मुस्लिम चंदे से मस्जिद बनाने का काम शुरु किया गया. जिसका निर्माण काम आज भी जा रही है.
हनुमानगढ़ी में जहां एक तरफ मंदिर है दूसरी तरफ मस्जिद तीसरी तरफ दरगाह ऐसे में हर दिन सुबह एक साथ मस्जिद से अजान की आवाज आती है तो दूसरी तरफ मंदिर से घंटी बजने की. आज जिस तरीके से अयोध्या को लोग बदनाम कर रहे हैं वहीं अयोध्या में बड़ी तादाद में ऐसे लोग हैं जो लोगों की सोच को बदल रहे हैं. इतना ही नहीं बल्कि ऐसे चंद लोग लोगों को ऐसा सबक दे रहे हैं जिसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं.