हितेश चावड़ा, गांधीनगर: सुनने में जरुर अजीब लगेगा लेकिन है हकीकत. 2017 से शराब बंदी कानून को और सख्त बनाने के बाद भी गुजरात में शराब बंदी को लेकर दिये गए बड़े बड़े बयान का पोल खुलता नजर आ रहा है. अभी पिछले दिनों राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गुजरात में शराब बंदी कानून को लेकर बड़ा बयान दिया था जिसके बाद गुजरात की सियासत सातवें आसमान पर पहुंच गई थी लेकिन पिछल 10 सालों में 26,439 जितने टुरिस्ट और विजिटर परमिट वाले लोग गुजरात से शराब पीकर जा चुके हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या शराब बंदी कानून सिर्फ गुजरातियों के लिए बनाया गया है.
नशाबंदी और अबकारी विभाग में एक आरटीआई कर जानकारी मांगी गई थी जिसमें राज्य के अलग-अलग जिला में से अलग-अलग तरीके की जानकारी प्राप्त हुई थी लेकिन सबसे चौकाने वाली जानकारी गुजरात की राजधानी गांधीनगर की थी. राज्य में प्रोहिबिशन एक्ट 64,64-B,64-C टीआरपी टूरिस्ट विजिटर और ग्रूप परमिट के परमीशन लेकर सरकारी परमीट वाली जगह से शराब खरीदने और पीने का परमीशन दिया जाता है.
मिल रही जानकारी के अनुसार गांधीनगर में साल 2009 से लेकर 2018 के दौरान यानी इन दस सालों में टुरिस्ट और विजिटर परमिट धाकरों की संख्या 26,439 थी यानी गांधीनगर जहां से गुजरात सरकार को चलाया जाता है वहीं पर इन लोगों को शराब पीने की परमीशन दी जा रही है.
इतना ही नहीं चौकाने वाली जानकारी एक ओर भी सामने आ रही है कि साल 2009 में विजिटर परमिट धारक मात्र 801 थे जो बढ़कर 2018 में 5033 हो चुका है. यानी शराब बंदी कानून को लेकर बड़े बड़े दावे करने वाले गुजरात में बाहर से आने वाले लोगों के शराब पीने के आकड़े में बढ़ोत्तरी हो रही है.
राज्य में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से ही गांधीनगर शहर की स्थापना की गई थी. और गुजरात में शराब बंदी कानून को इसीलिए लागू किया गया था क्योंकि ये गांधी का गुजरात है. लेकिन सवाल ये उठता है कि नियम सिर्फ घर के लिए ही क्यों बाहर के लोग आकर गुजरात में शराब पीकर जाते हैं तब क्या गुजरात की अस्मिता पर दाग नहीं लगता. या फिर सिर्फ गुजरात में शराब बंदी कानून कागजों पर नजर आ रहा है. इसकी हकीकत कुछ ओर नजर आ रही है.
गुजरात में शराब पीने वाला आदमी या तो परमीशन लेकर शराब पीता है या फिर शराब के व्यापार से जुड़े लोगों से शराब लेकर निजि जगह पर पीते हैं, या फिर गुप्त जगहों पर चलने वाले शराब के अड्डे पर जाकर शराब पीते हैं. गुजरात में पिछले 10 सालों में 1 लाख से ज्यादा प्रोहिबिशन केस दाखिल किया गया है और जिसमें कन्वीकशन रेट 10 फीसद से भी कम है.