पिछले काफी समय से जहां बीजेपी महाराष्ट्र के इस राजनीतिक रण से बिल्कुल गायब दिख रही थी. वहीं शनिवार सुबह देवेंद्र फड़णवीस के सीएम बनने के बाद सोशल मीडिया में अमित शाह को नए जमाने का चाणक्य बताया जा रहा है.और शाह की तारीफों के पुल बांधा जा रहा है. लेकिन गुजरात एक्सक्लूसिव को मिलने वाली जानकारी के अनुसार इस खेल के पीछे ना तो अमित शाह हैं. ना ही जेपी नड्डा ना ही संघ बल्कि इस सियासी खेल को अंजाम तक पहुंचाया है खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने. और इसकी शुरुआत हुई थी मोदी और पवार के मुलाकात के वक्त लेकिन दोनों की अपनी मजबूरी कि वजह से सही वक्त का इंतजार कर रहे थे.
आज से एक महीना पहले महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों का परिणाम आया था. तभी से किसकी सरकार बनेगी इसको लेकर कयास लगाया जा रहा था. लेकिन सस्पेंस शनिवार सुबह खत्म हो गया. पिछले काफी दिनों से चर्चा चल रही थी कि महाराष्ट्र में नई सरकार को लेकर कौन कौन से फार्मूला अपनाया जाएगा. लेकिन किसी के पास पूर्ण बहुमत नहीं होने की वजह से पिछले एक महीना से पेंच फंसा हुआ था.
जहां एक तरफ महाराष्ट्र का महाभारत चल रहा था. वहीं बाहर से शांत और शिस्तबद्ध दिखने वाली बीजेपी केडर में भी वर्चस्व की लड़ाई चल रही थी. वहीं एनसीपी में शरद पवार के विरासत को बचाने के लिए लड़ाई चल रही थी. बीजेपी और संघ को गहराई से जानने वाले एक वरिष्ठ राजनेता ने गुजरात एक्सक्लूसिव को जानकारी देते हुए कहा कि वर्तमान में भले बीजेपी किस पद पर किसको रखा जाएगा इसका फैसला करती है. परंतु आने वाले दिनों में कौन नंबर एक की नंबर दो पर रहने वाला है इसका फैसला नागपुर से लेकर दिल्ली और लखनऊ में जंग जारी है और आने वाले 4 सालों में तंय किया जाएगा कि बीजेपी की कमान 2024 से लेकर 2034 तक किसके हाथ में रहेगी. बीजेपी और संघ की दिशा और दशा तंय करने के लिए आने वाले 3 से 4 साल काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, लेकिन अभी शंत दिखने वाली बीजेपी में 2021 के बाद 2022-23 में बहुत बड़े पैमाने पर परिवर्तन किया जाएगा. जो लोग मोदी और अमित शाह के साथ ही साथ संघ के कार्यशैली को जानते हैं उन्हे खबर है कि उन्हे मालूम है कि आने वाले पांच सालों में क्या कुछ किया जाएगा.उसी रोडमेप के हिसाब से फैसला लिया जा रहा है.
ये सभी लोगों को मालूम है कि एनसीपी सुप्रिमो शरद पवार अपनी आखरी पारी खेल रहे हैं. ऐसे में उनकी विरासत को बचाने के लिए अजीत पवार, सुप्रिया शुले, छगन भुजबल के बीच आपसी जंग चल रही है ऐसे में पवार अगर किसी एक को जिम्मेदारी सौंपते हैं कि पार्टी और परिवार में फूट पड़ने की पूरी उम्मीद जताई जा रही है. ऐसे में पवार ने उस मुहावरे को सार्थक करते हुए नजर आए कि साफ भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे. सभी लोगों की नजर वजीर पर टिकी रही है. लेकिन सियासत करने वाले लोग अंदर ही अंदर सियासत करते हुए. नई सरकार के बाद लोग पवार को लेकर सवाल जरुर कर रहे हैं लेकिन उन्हे मालूम नहीं कि मुलायम और पवार जैसे मंझे हुए सियासी खिलाड़ी कौन सा खेल खेल रहे हैं. आपके समझने के लिए जब मुलायम सिंह को अपनी विरासत अखिलेश को देने था तब उन्होंने अपने भाई शिवपाल के गोद में बैठकर अपनी विरासत को अपने लड़के को सौंप दिया था. इस खेल में भाई भी बच गया और विरासत सही हाथों में पहुंच गई. कुछ ऐसा ही खेल खेला है शरद पवार ने नहीं तो अजीत पवार कि क्या ताकत थी कि एनसीपी के कुछ नेताओं को लेकर गठबंधन कर लेते और पवार को पता भी नहीं चलता. ऐसे में अपनी छवि को साफ सुथरी रखने के लिए आज पवार ने शिवसेना के साथ प्रेस कान्फ्रेंस किया लेकिन जिन लोगों के सपोर्ट पर अजीत इतना उछल कूद रहे हैं ऐसे विधायकों पर क्या कार्रवाई की जाएगी उसको लेकर मौन रहना ही बेहतर समझा.
बीजेपी के वर्चस्व की लड़ाई को पिछले 29 दिनों तक मोदी ने देखा, जो लोग अपने आपको चाणक्य मान रहे थे ऐसे लोग भी हार मानने लगे और सरकार बनाने को लेकर बीजेपी ने साफ इनकार कर दिया फिर मैदान में आए और बॉल अपने हाथ में लेते हुए ऐसी गुगली फेकी की 6 घंटे के अंदर पूरे मैच का कायाकल्प बदल दिया. इस गुगली ने कहा महाराष्ट्र में सरकार रचाने में अहम भूमिका अदा किया वहीं बीजेपी की अंदरुनी लड़ाई पर भी रोक लगा दिया है.
महाराष्ट्र की लड़ाई सिर्फ सरकार बनाने के लिए नहीं बल्कि राजनीति के पाठ्य पुस्तक में एक अध्याय को जोड़ने के लिए था. मोदी और पवार ने जो चेकमेट दिया है इसकी असर हिन्दुस्तान की सियासत में काफी लम्बे वक्त तक रहने की उम्मीद जताई जा रही है, इतना ही नहीं इस जाल के बाद शिवसेना, एनसीपी, और बीजेपी के नये नेताओं के लिए ये खेल किसी सबक से कम नहीं. इतना ही नहीं जिस शानदार तरीके से महाराष्ट्र में बीजेपी ने सरकार बनाया है उसे देखकर ऐसा माना जाएगा कि मोदी है तो मुमकिन है.