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संजीव भट्ट: संघर्ष के दौर से लेकर उम्र कैद की सजा तक की कहानी

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नानावटी आयोग की रिपोर्ट का पहला हिस्सा 2009 में गुजरात विधानसभा में पेश किया गया था. यह रिपोर्ट साबरमती एक्सप्रेस में सवार 59 कारसेवकों की हत्या से जुड़ी थी. गोधरा में 27 फरवरी 2002 को भीड़ ने साबरमती एक्सप्रेस के एक कोच में बाहर से आग लगा दी थी. इसी कोच में ये कारसेवक सवार थे. रिटायर्ड जस्टिस जीटी नानावटी और जस्टिस अक्षय मेहता ने 2014 में आयोग की जांच रिपोर्ट का दूसरा हिस्सा तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंपा था. हालांकि, राज्य सरकार ने यह रिपोर्ट विधानसभा में पेश नहीं की. इस साल सितंबर में राज्य सरकार ने एक जनहित याचिका के जवाब में गुजरात हाईकोर्ट को बताया था कि विधानसभा के अगले सत्र में यह रिपोर्ट सदन में पेश किया जाएगा.

मोदी पर बड़ा आरोप लगाने वाले संजीव भट्ट  

1985 में आईआईटी बॉम्बे से एम.टेक की डिग्री हासिल करने वाले भट्ट 1988 बैच के आईपीएस अफसर हैं. संजीव भट्ट को मोदी का विरोधी माना जाता है. संजीव भट्ट उस वक्त सुर्खियों में आए जब 2002 गुजरात दंगे में उन्होंने उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी की कथित भूमिका को लेकर गंभीर आरोप लगाए.

संभाल चुके हैं मोदी की सुरक्षा

दिसंबर 1999 से सितंबर 2002 तक उन्होंने गांधीनगर स्थित स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो में बतौर डिप्टी कमिश्नर ऑफ इंटेलिजेंस के तौर पर काम किया. उन पर गुजरात की आंतरिक, सीमा, तटीय और अहम प्रतिष्ठानों की सुरक्षा का जिम्मा था. इसके अलावा गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सिक्योरिटी भी भट्ट के ही हाथों में थी. इसी दौरान फरवरी-मार्च 2002 के दौरान गोधरा में ट्रेन जला दी गई, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे भड़क गए. बताया जाता है कि इस घटना में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए.

9 सितंबर 2002 को मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कथित तौर पर बहुचराजी में एक भाषण में मुस्लिमों में उच्च जन्म दर पर सवाल उठाए. हालांकि मोदी ने ऐसे किसी भाषण से इनकार किया. इस पर नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटीज (NCM) ने राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी. मोदी के तत्कालीन प्रिंसिपल सेक्रेटरी पीके मिश्रा ने बताया कि राज्य सरकार के पास उनके भाषण की कोई रिकॉर्डिंग नहीं है. लेकिन स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो ने भाषण की एक कॉपी एनसीएम को सौंप दी. इसके बाद मोदी सरकार ने ब्यूरो के वरिष्ठ अफसरों का तबादला कर दिया. इन अफसरों में संजीव भट्ट भी शामिल थे. इसके बाद उन्हें स्टेट रिजर्व पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज का प्रिंसिपल बनाया गया.

जेल में बंद कैदियों से लगाव का आरोप

साल 2003 में भट्ट को साबरमती सेंट्रल जेल का अधीक्षक बनाया गया. वह कैदियों के बीच खासे मशहूर रहे. इन्होंने जेल के खाने में गाजर का हलवा शामिल कराया. दो महीने बाद कैदियों से नजदीकियां बढ़ाने को लेकर उनका तबादला कर दिया गया. 14 नवंबर 2003 को करीब 2000 कैदी भूख हड़ताल पर चले गए. 6 दोषियों ने विरोध-प्रदर्शन करते हुए अपनी कलाई तक काट ली.

2011 में हुए सस्पेंड

दंगों के 9 साल बाद 14 अप्रैल 2011 को भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और यही आरोप लगाए. उन्होंने गुजरात दंगों के लिए बनाई गई एसआईटी पर भी पक्षपात के आरोप लगाए. 13 अक्टूबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी पर भट्ट के आरोपों को बेबुनियाद करार दिया. लेकिन इससे पहले ही जून 2011 में गुजरात सरकार ने ड्यूटी से गैरहाजिर रहने, ड्यूटी पर न रहते हुए भी आधिकारिक कार का इस्तेमाल करने और जांच कमिटी के सामने पेश न होने को लेकर भट्ट को सस्पेंड कर दिया.

उम्र कैद की सजा

नौकरी से बर्ख़ास्त पूर्व आईपीएस अफ़सर संजीव भट्ट को करीब 30 साल पुराने पुलिस हिरासत में मौत के एक मामले में गुजरात के जामनगर की एक अदालत ने उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई है. अपने 400 से ज़्यादा पन्ने के फ़ैसले में अदालत ने सभी सातों अभियुक्तों को दोषी करार दिया. अदालत ने संजीव भट्ट सहित दो लोगों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई है.