क्या यह आपातकाल 2.0 का दौर शुरु हो चुका है. फिर से गाना और कविताओं पर रोक लगाने का दौर है. इंदरा गांधी के आपातकाल के समय सरकार का साथ नहीं देने पर गायक किशोर कुमार के गीतों को बैन कर दिया गया था. यहां तक कि रेडियो, टीवी पर उनके गाने तक प्रसारित नहीं किए जाते थे और न ही लोग उनके साथ नए गाने रिकॉर्ड किया जा रहा था. पिछले दिनों योगी ने एक संबोधन में कहा था कि देश के कुछ लेखक नौजवानों को बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में CAA और NRC के मुद्दे पर होने वाले विरोध प्रदर्शन के दौरान फैज अहमद फैजी की कविता का पठन करने के बाद नया विवाद शुरु हो गया है, फैज की मशहूर कविता ‘हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे’ क्या हिन्दू विरोधी है. जिसकी शिकायत पर एक समिति का गठन किया गया है जो जांच करेगी कि क्या वाकई में ये कविता हिन्दू विरोधी है या नहीं?
फैज अहमद फैज की विकिपीडिया में प्राप्त जानकारी के अनुसार वह भारतीय उपमहाद्वीप के एक विख्यात पंजाबी शायर थे जिनको अपनी क्रांतिकारी रचनाओं में रसिक भाव (इंक़लाबी और रूमानी) के मेल की वजह से जाना जाता है. सेना, जेल तथा निर्वासन में जीवन व्यतीत करने वाले फ़ैज़ ने कई नज़्म, ग़ज़ल लिखी तथा उर्दू शायरी में आधुनिक प्रगतिवादी (तरक्कीपसंद) दौर की रचनाओं को सबल किया. उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए भी मनोनीत किया गया था. फ़ैज़ पर कई बार कम्यूनिस्ट (साम्यवादी) होने और इस्लाम से इतर रहने के आरोप लगे थे पर उनकी रचनाओं में ग़ैर-इस्लामी रंग नहीं मिलते.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि फैज को अक्सर साम्यवादी और इस्लाम से इतर रहने का आरोप लगता रहा है तो फिर उनकी कविता को हिन्दू विरोधी क्यों साबित करने की कोशिश की जा रही है.
जिस कविता को लेकर देश में नया विवाद शुरु हो गया है उसे फैज ने 1979 में सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के संदर्भ में लिखी थी और पाकिस्तान में सैन्य शासन के विरोध में लिखी थी. फैज अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण जाने जाते थे और इसी कारण वे कई सालों तक जेल में रहे.
गौरतलब है कि आईआईटी-के के छात्रों ने जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के समर्थन में 17 दिसंबर को परिसर में शांतिमार्च निकाला था और मार्च के दौरान उन्होंने फैज की यह कविता गाई थी. आईआईटी के उपनिदेशक मनिंद्र अग्रवाल के मुताबिक, ‘वीडियो में छात्रों को फैज की कविता गाते हुए देखा जा रहा है, जिसे हिंदू विरोधी भी माना जा सकता है.’