केंद्र की मोदी सरकार ने पिछले साल 1 सितंबर को पूरे देश में मोटर व्हीकल एक्ट 2019 लागू किया था. इस कानून को लागू करने के पीछे का मकसद सरकारी खजाना को भरना नहीं बल्कि सड़क सुरक्षा को बढ़ावा देना था, बावजूद इसके कई राज्यों की सरकारों ने या तो इस नये एक्ट को लागू करने से इनकार कर दिया था या फिर इसमें संशोधन कर लागू किया था. लेकिन अब नियमों का पालन नहीं करने वाले राज्यों को राष्ट्रपति शासन लगाने की चेतावनी दी है. केंद्र सरकार का साफ तौर पर कहना है कि राज्य सरकारों को जुर्माने की राशि कटौती करने का कोई अधिकार नहीं है. अगर राज्य सरकारें जुर्माने की राशि घटाती हैं तो इसे संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन मानते हुए केंद्र सरकार वहां राष्ट्रपति शासन भी लगा सकती है.
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की ओर से सभी राज्य सरकारों को एडवाइजरी भेजी गई है, जिसमें कहा गया है कि मोटर व्हीकल संशोधन एक्ट 2019 एक संसदीय कानून है. राज्यों को इसमें निर्धारित कार्रवाई या जुर्माने की राशि में किसी भी तरह का बदलाव करने का अधिकार नहीं है. इसमें किसी भी तरह का बदलाव करने के लिए उन्हें पहले राष्ट्रपति की सहमति लेनी होगी.
देश में नया मोटर व्हीकल एक्ट लागू होने के बाद गुजरात, कर्नाटक, मणिपुर और उत्तराखंड सरकारों ने ट्रैफिक नियम तोड़ने पर लगने वाले जुर्माने को घटा दिया. जबकि मध्य प्रदेश, पंजाब और बंगाल समेत कई राज्यों ने इसे अपने राज्यों में लागू नहीं करने या अपने स्तर पर संशोधित कर कानून को लागू करने की बात कही.
बीजेपी शासित गुजरात ने केंद्र की ओर से तय ट्रैफिक जुर्माने की दर घटा दिया और उसके संशोधित दरों के मुताबिक एम्बुलेंस का रास्ता रोकने पर 10 हजार की जगह 1 हजार, बाइक पर तीन सवारी पर 1 हजार की जगह 100 रुपये, बिना रजिस्ट्रेशन की बाइक पर 5 हजार की जगह सिर्फ एक हजार रुपये जुर्माने की व्यवस्था कर दी गई.
जबकि बीजेपी शासित एक अन्य राज्य उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी अपने राज्य में जुर्माने की दर घटा दिया. उत्तराखंड में बिना लाइसेंस के गाड़ी चलाने पर 5000 की जगह 2500 रुपये का जुर्माना देना होगा.
गुजरात, कर्नाटक, मणिपुर और उत्तराखंड में इस समय भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, जिसने अपने यहां पर केंद्र की ओर से तय दरों में बदलाव कर अपने यहां अलग-अलग दर तय कर रखी हैं. जबकि बंगाल, ओडिशा समेत कई राज्यों में केंद्र के एक्ट को लागू नहीं किया.
क्या है गुजरात की हालत
गौरतलब हो कि गुजरात सरकार ने लोगों की भावना को मद्देनजर रखते हुए 5 दिसंबर को शहरी इलाकों में दोपहिया वाहन चालकों को हेलमेट से मुक्ती दिया था. रुपाणी सरकार के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट और रोड सेफ्टी काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी सवाल उठाया था. लेकिन अब नये मोटर व्हीकल एक्ट को लेकर केन्द्र के सख्त रवैया से गुजरात में एक बार फिर से हेलमेट को अनिवार्य किया जाएगा. राज्य के परिवहन मंत्री आरसी फाणदू ने इस सिलसिले में जानकारी देते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेशों का पालन किया जाएगा. इसके अलावा उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने यह भी कहा कि यातायात नियमों पर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन किया जाएगा.
क्या गुजरात में लगेगा राष्ट्रपति शासन
गुजरात, कर्नाटक, मणिपुर और उत्तराखंड के अलावा कई राज्यों ने अपने स्तर पर कई संशोधन कर नये मोटर व्हीकल एक्ट को लागू किया था.लेकिन आज भी देश के कई राज्य ऐसे भी हैं जिन्होंने अभी तक इस कानून को लागू नहीं किया है.
अगर केंद्र सरकार के सख्त रवैया के बाद भी इस कानून को लागू नहीं करती तो क्या केंद्र इन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगा सकता है? बीजेपी शासित चार राज्यों में इस कानून को लेकर जो भी संशोधन किया था उसपर राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिलती तो केंद्र अनुच्छेद 356 का उपयोग कर राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है