दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत कई सवाल खड़े करती है, कई मामलों में देश को आश्वस्त करती है और कई नए समीकरणों की ओर संकेत देती है, जिसके दूरगामी नतीजे हो सकते हैं. इन नतीजों से बीजेपी को अपनी रणनीति बदलने का अल्टीमेटम मिलता है तो वहीं विपक्ष को भी एकजुट होने की सलाह. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या वाकई बीजेपी इन नतीजों से कुछ सीख लेकर अपनी रणनीति में बदलाव करेगी? या फिर अपनी ध्रुवीकरण की नीति पर और धार चढ़ाएगी.
दिल्ली विधानसभा के नतीजों ने यह काफी हदतक साफ कर दिया है कि दिल्ली की जनता ने सांप्रदायिकता और ध्रुवीकरण की रणनीति को खारिज कर दिया है. जनता के लिए न पाकिस्तान कोई मुद्दा है न ही वह बिरियानी को बुरा कहना. नतीजा ये निकला कि 22 सालें से वनवास झेल रही बीजेपी को अब 5 साल और इंतजार करना पड़ेगा. बीजेपी का बनवास खत्म होता ना देख अब बीजेपी नेताओं ने सुधीर चौधरी के नक्शेकदम पर चलते हुए दिल्ली की जनता को लालची बता रहे हैं.
दिल्ली के साथ ही भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) पिछले दो साल में सात राज्यों में सत्ता गंवा चुका है. पिछली बार दिल्ली में महज 3 सीटें जीतने वाली भाजपा को इस बार बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी. दिल्ली के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने 48 सीटों पर जीत के अनुमान के साथ सत्ता में आने की उम्मीद अंतिम क्षणों तक लगाए हुए थे, लेकिन भाजपा की दिल्ली की सत्ता में वापसी की उम्मीद केजरीवाल ने झाड़ू फेर दिया. दिल्ली समेत 12 राज्यों में अभी भी भाजपा विरोधी दलों की सरकारें हैं. राजग की 16 राज्यों में ही सरकार है. इन राज्यों में 42 फीसदी आबादी रहती है.
कांग्रेस खुद के बूते या गठबंधन के जरिए महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, पुडुचेरी में सत्ता में है. दिसंबर में हुए चुनाव में झारखंड में सरकार बनने के बाद कांग्रेस की 7 राज्यों में सरकार है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी लगातार तीसरी बार जीती है. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, केरल में माकपा के नेतृत्व वाला गठबंधन, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस, ओडिशा में बीजद और तेलंगाना में टीआरएस सत्ता में है.
एक और राज्य तमिलनाडु है, जहां भाजपा ने अन्नाद्रमुक के साथ लोकसभा चुनाव तो लड़ा था, लेकिन राज्य में उसका एक भी विधायक नहीं है. इसलिए वह सत्ता में भागीदार नहीं है. दिसंबर, 2017 में राजग बेहतर स्थिति में था. भाजपा और उसके सहयोगी दलों के पास 19 राज्य थे. एक साल बाद भाजपा ने तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवा दी. यहां अब कांग्रेस की सरकारें हैं. चौथा राज्य आंध्र प्रदेश है, जहां भाजपा-तेदेपा गठबंधन की सरकार थी. मार्च 2018 में तेदेपा ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया. साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां वाईएसआर कांग्रेस ने सरकार बनाई. पांचवां राज्य महाराष्ट्र है, जहां चुनाव के बाद शिवसेना ने राजग का साथ छोड़ा और हाल ही में कांग्रेस-राकांपा के साथ सरकार बना ली. अब दिल्ली ने एक बार फिर भाजपा को निराश किया है