मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार ने ‘पुरुषों की नसबंदी’ को लेकर एक फरमान जारी किया है. इस फरमान में राज्य सरकार ने सभी कर्मचारियों के लिए हर महीने 5 से 10 पुरुषों के नसंबदी करना अनिवार्य किया है. साथ ही कांग्रेस शासित कमलनाथ सरकार ने कहा कि वह स्वास्थ्य कर्मचारी जो वर्ष 2019-2020 में नसबंदी कार्यक्रम के अतंर्गत एक भी पुरुष नहीं जुटा पाता है, वह अपना वेतन भूल जाएं, सरकार उनका वेतन भी वापस लेगी साथ ही उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति भी देगी.
पुरुषों के नसबंदी को लेकर सरकार द्वारा जारी फरमान के बाद राजनीति तेज हो गई है. इस मामले में भारतीय जनता पार्टी ने कमलनाथ सरकार को घेरा है. प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता और पूर्व सांसद प्रो.चिंतामणि मालवीय ने वेबसाइट दिप्रिंट से कहा, ‘कमलनाथ सरकार अगर नसबंदी के प्रति वाकई गंभीर है तो उसे यह शुरुआत मुस्लिम क्षेत्रों में अभियान चलाकर करनी चाहिए.’ उन्होंने आगे कहा, ‘कर्मचारियों को भय दिखाना और दोहन करना ब्लेकमेल करने की श्रेणी में आता है. उनको नौकरी का भय दिखाकर प्रदेश सरकार केवल हिंदूओं की नसबंदी करवानी चाहती है. वहीं भोपाल से भाजपा के पूर्व सांसद आलोक संजर ने कहा, ‘प्रदेश सरकार का काम है इस मामले में जनजागृति करवाएं. यह काम लोगों पर थोपा नहीं जा सकता है.
मध्यप्रदेश में अघोषित आपातकाल है। क्या ये कांग्रेस का इमर्जेंसी पार्ट-2 है? एमपीएचडब्ल्यू (Male Multi Purpose Health Workers) के प्रयास में कमी हो, तो सरकार कार्रवाई करे, लेकिन लक्ष्य पूरे नहीं होने पर वेतन रोकना और सेवानिवृत्त करने का निर्णय, तानाशाही है। #MP_मांगे_जवाब pic.twitter.com/Fl7Q8UM9dX
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) February 21, 2020
वहीं इस मामले में प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह ने इमरजेंसी के दौर को याद किया है और कहा है कि क्या यह इमरजेंसी पार्ट-2 है. शिवराज ने अपने ट्वीट में लिखा है, ‘मध्यप्रदेश में अघोषित आपातकाल है. क्या ये कांग्रेस का इमर्जेंसी पार्ट-2 है? एमपीएचडब्ल्यू के प्रयास में कमी हो, तो सरकार कार्रवाई करे, लेकिन लक्ष्य पूरे नहीं होने पर वेतन रोकना और सेवानिवृत्त करने का निर्णय, तानाशाही है.’
मध्यप्रदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की संचालक छवि भारद्धाज द्वारा 11 फरवरी को जारी निर्देश में कहा गया है,’ एनएफएचएस-4 के प्रतिवेदन के अनुसार प्रदेश में केवल मात्र 0.5 प्रतिशत पुरुषों द्वारा ही नसबंदी अपनाई जा रही है.’ हालांकि सरकार से जुड़े सूत्र के मुताबिक इस मामले पर विवाद गहराने के बाद राज्य सरकार इस फरमान को वापस लेने जा रही है. इस मामले में राज्य के जनसंपर्क मंत्री ने कहा, यह एक नियमित आदेश है. इस तरह के निर्देश भाजपा सरकार के समय भी दिए जाते थे. इन दिनों लोगों में यह जागरुकता बढ़ रही है कि छोटा परिवार सुखी परिवार. किसी भी स्वास्थ्य कार्यकर्ता पर दबाव नहीं बनाया जाएगा.