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कोरोना का असर: रेलवे को कब तक बंद रखेगी सरकार और इससे कितना होगा नुकसान ?

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देश में फैले कोरोना वायरस का असर अब धीरे-धीरे आम लोगों की जरूरतों पर भी दिखाई देने लगा है. उधर 22 मार्च 2020 का जनता कर्फ़्यू अभी पूरी तरह ख़त्म भी नहीं हुआ था कि केंद्र सरकार की तरफ़ से निर्देश जारी हो गया कि 31 मार्च तक देश में सभी तरह की रेल सेवाएं बंद की जा रही हैं. देश के इतिहास में पहला मौक़ा है जब इस तरह से रेल यात्रा पर पांबदी लगाई गई हो. हालांकि बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये बंद कब तक चलेगा ?

आसान नहीं था फैसला लेना

रेलवे प्रशासन की मानें, तो पूरी तरह ट्रेन यात्रा को बंद करने का फ़ैसला आसान नहीं था. लेकिन मुश्किल की घड़ी में ये फ़ैसला लेना आवश्यक भी था. पिछले तीन दिनों में ऐसी कुछ घटनाएं हुई, जिन्होंने सरकार के इरादे को और मज़बूती दी. 13 मार्च को एपी संपर्क क्रांति में जिन यात्रियों ने यात्रा की, उनमें से आठ यात्री 20 मार्च को पॉज़िटिव पाए गए. वहीं 16 मार्च को गोदान एक्सप्रेस से मुंबई से जबलपुर की यात्रा करने वाले चार यात्री 21 मार्च को पॉज़िटिव पाए गए. इसके अलावा भी कई मामले सामने आए.

मामला यहीं नहीं रुका. केंद्र सरकार के सोशल डिस्टैंसिंग के आदेश के बाद भी महाराष्ट्र से बिहार जाने वाली ट्रेन पकड़ने के लिए प्लेटफ़ॉर्म पर हज़ारों की भीड़ 21 तारीख़ को दिखी. जिसके बाद सरकार को ये फ़ैसला लेना पड़ा लेकिन सरकार के फ़ैसले के पीछे केवल ये चार मामले ही नहीं है. इसके पीछे आंकड़ों का दूसरा नज़रिया भी है.

रोज चलती हैं 12,000 ट्रेनें

गौरतलब है कि भारतीय रेल एक दिन में 2.3 करोड़ पैसेंजर को रोज़ाना एक जगह से दूसरी जगह ले जाने का काम करती है. इस दौरान करीब 12000 ट्रेन हर रोज़ चलती हैं. भारतीय रेल में सबसे ज़्यादा कर्मचारी काम करते हैं, जिनकी संख्या 12 से 14 लाख बताई जाती है.

इन आंकड़ों से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग का सरकारी फरमान ट्रेनों में और उनके कर्मचारियों पर कैसे लागू हो सकता था. कम कर्मचारियों में ट्रेन का संचालन कैसे मुमकिन हो पाता. इसलिए ट्रेन सेवा पर पाबंदी लगाना सरकार के लिए ज़रूरी हो गया था.

लेकिन आम स्थिति में जब स्कूल, कॉलेज, सरकारी दफ़्तर और प्राइवेट दफ़्तर खुले रहते तो ऐसा कर पाना संभव नहीं होता. इसलिए सरकार को लॉकडाउन और ट्रेनों को बंद करने का फ़ैसला एक साथ लेना पड़ा.

जरूरी था फैसला लेना – राजेश दत्त

रेल मंत्रालय के प्रवक्ता राजेश दत्त वाजपेयी ने बीबीसी से बातचीत में इस बात को माना कि केंद्र ने ये फ़ैसला चेन ऑफ ट्रांसमिशन को रोकने के लिए लिया है. उनके मुताबिक़, भारतीय रेल जितने बड़े पैमाने पर लोगों की यात्रा को सुलभ बनाती है, उसमें एक यात्री से दूसरे यात्री के सम्पर्क में आने के बाद कोरोना वायरस के फैलने का ख़तरा भी ज़्यादा रहता है. अगर लोगों को अभी से आइसोलेशन में नहीं रखा गया तो बीमारी को तीसरे चरण में जाने से कोई रोक नहीं सकता. इसलिए एहतियातन रेलवे को ये फ़ैसला लेना पड़ा.

रेल में एक कोच में 72 पैसेंजर के लिए 4 टॉयलेट और दो वॉशबेसिन की सुविधा होती है. आते-जाते कई स्टेशनों और प्लेटफॉर्म पर लोग उतरते और चढ़ते है. इसके अलावा कई परिजन पैसेंजर को छोड़ने आते हैं. ऐसी सूरत में रेलवे की ओर से स्वास्थ्य अधिकारियों को उन यात्रियों की लिस्ट तो मुहैया कराई जा सकती है जिन्होंने संक्रमित व्यक्ति के साथ सफ़र किया हो. लेकिन संपर्क में आए बाक़ी लोगों का क्या?

नुकसान का सही आकलन संभव नहीं

आधिकारिक तौर पर ट्रेन सेवा रोकने से कितना नुक़सान होगा, रेलवे ने इसका कोई आंकड़ा जारी नहीं किया है. लेकिन जब मार्च के शुरुआती दिनों में कुछ ट्रेनें खाली जा रही थीं, उस वक़्त यूनियन का कहना था कि रेलवे को तकरीबन 500 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ था. नए फ़ैसले के बाद, रेलवे यूनियन का दावा है कि पूरी तरह से ट्रेन सेवाएं बंद होने से प्रतिदिन तकरीबन 160 करोड़ का नुक़सान रेलवे को होगा. लेकिन कोविड-19 की महामारी से बचने के लिए फ़िलहाल रेलवे को बंद करना सबसे बड़ा हथियार माना जा रहा है.