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कोरोना से निपटने के लिए बिहार सरकार की अनोखी पहल, झोलाछाप डॉक्टरों की ली जाए मदद

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जहां देश कोरोना से लड़ने के लिए एक्सपर्ट डॉक्टर और साइंटिस्ट की मदद ले रहा है, वहीं बिहार के सीवान में झोलाछाप डॉक्टरों को कोरोना से लड़ने के लिए ढूंढ़ा जा रहा है. सिवान के सिविल सर्जन ने चिट्ठी लिखकर कहा है कि झोला छाप डॉक्टरों की पहचान करें और उनसे सेवा लें.

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, सिवान के जिला स्वास्थ्य समिति के सिविल सर्जन जॉक्टर अशेष कुमार ने आधिकारिक रूप से सिवान के सदर अस्पताल और महाराजगंज के सब डिविजनल हॉस्पीटल के डिप्टी सुप्रीटेंडेंट, और PHC के सभी इंचार्ज मेडिकल ऑफिसर को 25 मार्च को चिट्ठी लिखकर झोला छाप डॉक्टरों के लिए निर्देश दिया है. चिट्ठी में लिखा है कि नोवेल कोरोना वायरस से बचाव के लिए सभी प्रखण्डों में झोला छाप चिकित्सकों की पहचान करते हुए उन्हें इलाज के लिए ट्रेनिंग देना है.

पत्र के सब्जेक्ट में लिखा है कि ये चिट्ठी अपने क्षेत्र में निजी अस्पतालों और झोला छाप चिकित्सकों को चिन्हित कर उनसे सेवा लेने के लिए है.

इस चिट्ठी का मतलब ये हुआ कि अधिकारीयों को अपने इलाके के प्राइवेट हॉस्पीटल और झोला छाप डॉक्टरों की पहचान कर उन्हें कोरोना के इलाज के लिए ट्रेनिंग देना है. इसमें झोला छाप चिकित्सक का नाम और मोबाइल नंबर भी मांगा गया है.

क्या है सिविल सर्जन की दलील?

जब सिवान के सिविल सर्जन डॉक्टर अशेष कुमार से पूछा गया कि इतनी बड़ी महामारी के लिए झोला छाप डॉक्टरों से इलाज कराने की बात कैसे सोची जा सकती है, तो उन्होंने कहा,

“इस देश में एमबीबीएस डॉक्टर बनते ही कितने हैं? बड़े शहर में एमबीबीएस मिल ही नहीं रहे हैं, तो गांव में आपको एमबीबीएस कहां से मिलेगा. ऐसे भी गांव में लोग इन्हीं (झोलाछाप डॉक्टर) लोगों के पास जाते हैं, इसलिए ये ऐसे हालात में काम ही आएंगे.”

बता दें कि झोला छाप डॉक्टरों को सरकार से मान्यता नहीं है और इनके खिलाफ आए दिन सरकार एक्शन लेती रही है. जब इन बातों के बारे में डॉक्टर अशेष से कहा गया तो उन्होंने कहा कोई नहीं पकड़ता है इन्हें, ना केंद्र, ना बिहार सरकार.

अपना बचाव करते हुए सिविल सर्जन ने कहा कि ये डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम मैनेजर के स्तर पर बना था, काम बहुत था, इसलिए जल्दी-जल्दी में हम हस्ताक्षर कर दिए. “हम जल्दी में देख नहीं सके कि चिट्ठी में झोलाछाप लिखा है.” हालांकि फिर सिविल सर्जन खुद की बात को ही काटते हैं और कहते हैं कि हमारा मकसद था कि जो ग्रामीण स्तर पर चिकित्सा का काम कर रहे हैं, उनसे मदद लेना.

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