पूर्व भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी (IAS) और सामाजिक कार्यकर्ता कन्नन गोपीनाथन को सत्ता में लोगों से तीखे सवाल पूछने की काबिलियत के लिए जाना जाता है. जमीन से जुड़े हुए और एक साहसी व्यक्तित्व के धनी गोपीनाथन ने जम्मू-कश्मीर में केंद्र द्वारा अनुच्छेद 370 हटाए जाने के विरोध स्वरूप प्रशासनिक सेवाओं से इस्तीफा दे दिया था.
देश में जारी कोरोना वायरस महामारी और अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम में भारत की प्रतिक्रिया और सरकार की ओर से प्रशासनिक सेवा से फिर जुड़ने के प्रस्ताव से लेकर उनके खिलाफ गुजरात में दर्ज की जाने वाली एक एफआईआर तक के मुद्दों पर पूर्व नौकरशाह कन्नन गोपीनाथन से गुजरात एक्सक्लूसिव के हितेश चावड़ा ने विशेष बातचीत की. पेश है इस बातचीत के प्रमुख अंश…
सवाल: कोरोना वायरस डर के बीच अहमदाबाद में आयोजित ‘नमस्ते ट्रंप‘ कार्यक्रम पर आपके क्या विचार हैं ?
जवाब: हम सभी जानते हैं कि भारत में कोरोना वायरस का पहला मामला 30 जनवरी के आसपास दर्ज किया गया था. कई देशों ने तब तक विदेशी यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया था. हालांकि, तब हम भारत में, ‘नमस्ते ट्रंप’ जैसे एक विशाल कार्यक्रम का आयोजन कर रहे थे और उसी समय मध्य प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां चल रही थीं. वैश्विक महामारी के लिए भारत की प्रतिक्रिया देर से आई. वास्तव में 13 मार्च को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि भारत में कोरोना वायरस कोई समस्या नहीं है और 18 मार्च को वित्त मंत्री ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था को कुछ नहीं होने वाला है. 22 मार्च को ‘जनता कर्फ्यू’ लगाया गया था. इसका मतलब है कि शीर्ष स्तर पर संचार और चर्चा में कमी थी. “भारत में समस्या नहीं है” और “भारतीय अर्थव्यवस्था को कुछ नहीं होने वाला है” वाले बयानों के एक सप्ताह के भीतर देशव्यापी लॉकडाउन (तालाबंदी) करनी पड़ा. पूरा देश सरकार की गलत प्राथमिकताओं और विलंबित प्रतिक्रिया की कीमत चुका रहा है.
सवाल: क्या आपको लगता है कि मौजूदा स्थिति में जागरूकता पैदा करने और युवाओं को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है ?
जवाब: युवा पीढ़ी शिक्षित है और देश में प्रचलित स्थिति से परिचित है और अधिकारियों को स्वयंसेवकों के रूप में मदद कर सकती है. वे स्वास्थ्य पेशेवरों के साथ लोगों को जोड़ने के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं. इस तरह अस्पतालों और अन्य महत्वपूर्ण सुविधाओं की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए आईटी पेशेवर आकड़ों का उपयोग कर सकते हैं. बीमारी लॉकडाउन से नहीं रुकने वाली है. इसलिए, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की सहायता के लिए युवाओं को प्रशिक्षित करने की जरूरत है. युवाओं को हर स्तर पर साथ जोड़ने की जरूरत है.
सवाल: मीडिया ने जिस तरह से कोरोना वायरस महामारी को कवर किया है, उस पर आपकी क्या राय है?
जवाब: कुछ मीडिया हाउस हैं जो स्थिति को जिम्मेदार तरीके से कवर कर रहे हैं, जबकि कुछ अन्य मीडिया हाउस हैं जो अलग-अलग तरीके से काम कर रहे हैं. कई पत्रकार अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं और सरकार की आलोचना करते हैं और सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करते हैं. सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करना मीडिया की ज़िम्मेदारी है और इसी तरह वे अपनी देशभक्ति व्यक्त कर सकते हैं. उनके लिए सबसे देशभक्ति की बात देश की राय व्यक्त करना है.
सवाल: गुजरात में आपके खिलाफ दर्ज मामले पर आपका क्या विचार है ?
जवाब: मुझे एफआईआर का विवरण नहीं पता है और मुझे इसकी प्रति मिलनी बाकी है. मुझे नहीं पता कि मेरा नाम क्यों शामिल किया गया है. वो प्रशांत भूषण थे जिन्होंने ट्वीट किया था कि प्रवासी भूखे मर रहे थे और घरों तक पहुंचने के लिए मीलों पैदल चलने को मजबूर थे, जबकि मंत्रीगण रामायण और महाभारत को लोगों के सामने परोसने में व्यस्त थे. मेरा ट्वीट PM Cares से संबंधित था. मैंने सवाल किया था कि कैसे सरकार एक दिन स्वास्थ्यकर्मियों के लिए लोगों को ताली बजाने के लिए कह सकती है और अगले दिन उनकी तनख्वाह काट दी जाती है, जो कि वास्तव में अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं. इसीलिए मेरे खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-295ए के तहत मामला दर्ज किया गया है जो धर्म या धार्मिक भावनाओं का अपमान करने का मामला है. डॉक्टरों के वेतन में कटौती पर मेरा ट्वीट धर्म से संबंधित कैसे हो सकता है ? वे जो करना चाहते हैं, उन्हें करने दीजिए, लेकिन इस देश में लोगों की आवाज़ को नहीं दबाया जा सकता.
सवाल: आपको प्रशासनिक सेवाओं में फिर से शामिल होने के लिए कहा गया है. इस प्रस्ताव पर आपका क्या ख्याल है ?
सवाल: इस्तीफे के आठ महीने बाद मुझे फिर से जुड़ने के लिए कहा गया है. निश्चित रूप से वे मुझे और अधिक परेशान करने का इरादा रखते हैं. मैं जो भी करना चाहता हूं, अपने देश के लिए करूंगा, लेकिन प्रशासनिक सेवाओं में शामिल नहीं होऊंगा. मैं अपने स्तर पर देश की सेवा कर रहा हूं. कुछ एनजीओ ने भी मेरी मदद मांगी है.
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