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अमेरिका में कच्चे तेल के भाव में रिकॉर्ड गिरावट, शून्य डॉलर से भी नीचे पहुंचा

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विश्व में जारी कोरोना संकट के बीच अमेरिका में कच्चे तेल का भाव सोमवार को माइनस में पहुंच गया. इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब कच्चे तेल का भाव माइनस में पहुंचा हो. अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) क्रूड का मई डिलीवरी का भाव माइनस 37.63 डॉलर प्रति बैरल तक फिसल गया. हालांकि, मंगलवार के कारोबार में 1.10 डॉलर प्रति बैरल की रिकवरी देखी गई.

असल में दुनियाभर में लॉकडाउन को देखते हुए जिन कारोबारियों ने मई के लिए वायदा सौदे किए हैं वे अब इसे लेने को तैयार नहीं हैं. उनके पास पहले से इतना तेल जमा पड़ा है जिसकी खपत नहीं हो रही है. इसलिए उत्पादक उन्हें अपने पास से रकम देने को तैयार हैं कि आप हमसे खर्च ले लो, लेकिन कच्चा तेल ले जाओ यानी सौदे को पूरा करो. ऐसा कच्चे तेल के इतिहास में पहली बार हुआ है.

कोरोना की वजह से बाजार में मांग कम होने और अमेरिका में इसका भंडारण जरूरत से ज्यादा होने की वजह से यह स्थिति पैदा हुई है. मौजूदा समय में हालात यह हैं कि अमेरिका में अब कच्चे तेल के भंडारण के लिए जगह की कमी महसूस होने लगी है. ऐसे में कीमतों में और भी कमी आने की उम्मीद है.

मंगलवार को मई की आपूर्ति के लिए होने वाले सौदे का आखिरी दिन है. तेल व्यापारियों को कीमतें अदा कर आपूर्ति लेने का यह अंतिम मौका था. हालांकि, मांग कम होने के कारण व्यापारी इसे खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. इसके साथ ही इनके भंडारण में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. कच्चा तेल रखने वाले व्यापारी अब ग्राहकों से इसे खरीदने के लिए कह रहे हैं. इन व्यापारियों की ओर से खरीदने वालों को प्रति डॉलर 3.70 डॉलर देने की पेशकश भी कर रहे हैं. इसी को कच्चे तेल की कीमतों को शून्य डॉलर प्रति बैरल नीचे जाना कहते हैं.

जब भी कच्चा तेल गिरता है तो तमाम तरफ यह शोर मचने लगता है कि पेट्रोल-डीजल के रेट कम क्यों नहीं हो रहे. असल में भारत में पेट्रोल-डीजल के रेट क्रूड के ऊपर नीचे जाने से तय नहीं होते. पेट्रोलियम कंपनियां हर दिन दुनिया में पेट्रोल-डीजल का एवरेज रेट देखती हैं. यहां कई तरह के केंद्र और राज्य के टैक्स निश्चित हैं. भारतीय बॉस्केट के क्रूड रेट, अपने बहीखाते, पेट्रोलियम-डीजल के औसत इंटरनेशनल रेट आदि को ध्यान में रखते हुए पेट्रोलियम कंपनियां तेल का रेट तय करती हैं.

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