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PR एजेन्सी काम पर: गुजरात मुख्यमंत्री को राजनीति करना नहीं आता(?)

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2025

तुंवर मुजाहिद, अहमदाबाद: ​​एक तरफ देश और राज्य कोरोना के खिलाफ युद्ध लड़ रहा है. तो वहीं दूसरी ओर गुजरात के सीएम रूपानी के सामने दोहरी लड़ाई आ खड़ी हुई है, एक तो सीएम के रूप में गुजरात को कोरोना के चंगुल से मुक्त कराना और साथ ही अपनी कुर्सी भी बचाना है. जब से गुजरात में कोरोना की एंट्री हुई है तब से सीएम रुपाणी की छवि धूमिल हुई है. क्योंकि गुजरात सरकार अब तक कोरोना को रोकने में लगभग नाकाम रही है. कहा जाता है कि कामयाबी और नाकामी की जिम्मेदारी टीम के कप्तान के सिर थोप दी जाती है कुछ ऐसा ही रुपाणी के साथ भी हो रहा है. संकट के इस दौर में पीआर एजेंसियों और एजेंटों के साथ-साथ किरायेदार लेखकों की एक टीम को सक्रिय किया गया है. ताकि वह आपको काल्पनिक दुनिया में ले जा सकें

पीआर एजेंसियों और एजेंटों ने सीएम रूपानी की छवि को साढ़े छह करोड़ गुजरातियों के बीच एक सज्जन के रूप में चित्रित करना शुरू कर दिया है. लोगों के दिलों में सीएम रूपानी के लिए जगह बनाने के लिए उनकी भावनाओं के साथ खेल खेलने की तैयारी की जा रही है. निकट भविष्य में आप सीएम रूपानी के बारे में ऐसे भावनात्मक संदेश देख सकते हैं, कि आप उससे अभिभूत हो जाएं. इसके अलावा, आप कुछ अच्छे लेखकों के लेखों में भी सीएम रूपानी की प्रशंसा भी पढ़ सकते हैं. जिसे पढ़ने के बाद आपको लगेगा कि रूपानी जैसा सीएम मिलना हमारी खुदकिस्मती है.

सीएम रूपानी की छवि को मजबूत करने के लिए एजेंसी द्वारा आक्रामक अभियान चलाया जा रहा है. आपको कुछ पोस्ट ऐसे भी दिख जाएंगे जिसमें लिखा होगा कि विजय रूपानी बहुत ही भोले इंसान हैं. वे राजनीति नहीं कर रहे, बल्कि उनके राजनीतिक विरोधी उनकी छवि को धूमिल करने की ये साजिश कर रहे हैं. मानवता के लिहाज से गुजरात सरकार में सीएम रुपाणी जैसा कोई नेता नहीं है.

गांधी के गुजरात में ज्यादातर लोग अच्छे ही हैं, जो गांधी के दिखाए रास्ते पर चलते हैं. सुबह उठते ही वह मंदिर में भगवान के दर्शन करता है. यह सच है कि अधिकांश गुजराती सुबह की पूजा के बिना घर से बाहर नहीं निकलते हैं. आज भी गुजरात में, सुबह और शाम को अधिकांश मंदिरों में जाने के लिए लाइन में खड़ा होना पड़ता है. इस प्रकार गुजरात के साढ़े छह करोड़ लोगों में से कुछ को छोड़कर सभी लोग सज्जन हैं और मानवीय मूल्य रखते हैं. ऐसे में गुजरात के मुख्यमंत्री अच्छे और मानवीय भावनाओं वाले व्यक्ति हैं तो यह आश्चर्य की बात नहीं होगी.

गुजरात के शहरों में लाखों प्रवासी मजदूर घर जाने के लिए सड़कों पर उतर गए हैं. रूपानी सरकार ने अहमदाबाद शहर में महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाई गई पुलिस की एसएचई टीम को उनकी सूची तैयार करने का काम सौंपा है. अब आप सोचिए कि महिलाओं की यह टीम जो बहुत सीमित है वह लाखों श्रमिकों की सूची कैसे बनाएगी? चांगोदर से अहमदाबाद रेलवे स्टेशन तक जाने के लिए बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर सड़कों पर उतर आए . जिसे आप ऊपर वीडियो में देख सकते हैं. अगर सरकार का प्रबंधन सही होता, तो ऐसी भीड़ कोरोना काल में दिखाई ही नहीं देती. ऊपर दिए गए वीडियो में केवल एक पुलिसकर्मी भीड़ के साथ चलते हुए दिखाई दे रहा है. अगर आने वाले दिनों में ऐसा ही प्रबंधन रहेगा तो गुजरात की स्थिति विकट हो जाएगी. इसलिए आप सिर्फ सज्जन होने से बच सकते हैं और अपनी जिम्मेदारी को हाशिये पर धकेल नहीं सकते हैं, जबकि आपके सिर पर साढ़े छह करोड़ लोगों की जिम्मेदारी है.

गुजरात को वर्तमान समय में कोरोना काल में एक मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता है, जो राज्य के लोगों को इस महामारी से अपनी अंतर्दृष्टि से बचा सके. कोरोना संकट के बीच, एक नेता जिसके पास कोई विचारधारा नहीं है वह राज्य के लोगों को कभी नहीं बचा सकता है. एक नेता जो दूसरों के निर्देशों पर निर्भर रहता है वह जनता को कैसे बचा सकता है? इसलिए इन दिनों गुजरात को एक मजबूत नेता और सक्षम नेतृत्व की युद्ध स्तर पर जरुरत महसूस की जा रही है.

गुजरात में हर दिन दोहरे अंकों में कोरोना संक्रमणों की संख्या बढ़ रही है. गुजरात में अब तक आठ हजार मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि गुजरात का एक महत्वपूर्ण शहर अहमदाबाद चीन का वुहान बन रहा है. ऐसी विकट स्थिति में भी, जनता और सरकारी अधिकारियों के बीच का संपर्क अच्छे से नहीं हो पा रहा है. पुलिस और सरकारी अधिकारी भी भ्रम में पड़ गए हैं कि क्या करना है. हर दिन गुजरात का प्रबंधन पहले से खराब हो रहा है. इसलिए एजेंटों ने अपना काम शुरू कर दिया है ताकि जनता गुजरात के सीएम पर विश्वास न खोए.

लॉकडाउन 3.0 के बाद गुजरात में कई कंपनियों को कुछ शर्तों के साथ शुरू करने की अनुमति दी गई है. इन कंपनियों को सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करना होगा. दूसरी ओर, सामाजिक दूरी बनाए रखने के बावजूद पुलिस खाद्य दुकानों को बंद करवा रही है. दूध बेचने वालों के साथ मारपीट की जा रही है. सब्जी बेचने वालों को सताया जा रहा है. यह सब कुप्रबंधन के कारण हो रहा है. इसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाएगा? पुलिस या उच्च स्तरीय प्रशासन?

प्रवासी मजदूरों को घर लौटने की अनुमति देने के बाद से बड़ी संख्या में लोग लाइन में खड़े हैं. पुलिस गुजरात के वतनी जो तालाबंदी की वजह से रिश्तेदारों के यहां फंस कर रुकने को मजबूर हो गई थी ऐसे लोगों को रोक रही है. इस प्रकार देखा जाए तो प्रशासन खुद को उलझन में है कि कोरोना को रोकने के लिए क्या करना चाहिए. अब राज्य सरकार ने गुजरात में रहने वाले प्रवासी कामगारों की सूची तैयार करने की जिम्मेदारी पुलिस को सौंप दी है. इस प्रकार लगातार निर्णयों के परिवर्तन से राज्य में अस्थिरता बढ़ी है. इससे सीएम रूपानी की छवि पर नकारात्मक असर पड़ा है.

हम यहां केरल मॉडल का एक उदाहरण दे सकते हैं. जिसने हाल के दिनों में कोरोना पर जीत हासिल की है. मजबूत नेतृत्व के कारण हर दिन लोगों पर नया नियम नहीं लागू किया गया. CMO स्पष्ट रूप से राज्य के लोगों का मार्गदर्शन करता है. गुजरात में CMO को छोड़कर, सभी नए नियम और निर्देश प्रसारित हो रहे हैं, इसलिए लोगों के साथ ही साथ कोरोना के खिलाफ लड़ने वाले योद्धा भी भ्रमित हो गए हैं.

गुजरात कोरोना मुक्त हो उससे पहले एक फिर से जनता के बीच सीएम रूपानी को स्थापित करने के लिए काम शुरू कर दिया गया है. जिसका संचालन कोरोना के खिलाफ जारी लड़ाई से बेहतर अंदाज में संचालित किया जा रहा है. आप खुद इसका अनुभव सोशल मीडिया के माध्यम से कर सकते हैं.

https://archivehindi.gujaratexclsive.in/is-gujarat-really-in-need-of-anandiben-but-not-cm-rupani-these-days/