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#Column: देश के अन्य शहरों की तुलना में कोरोना से अहमदाबाद में ज्यादा लोग क्यों मर रहे हैं?

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अब तक अहमदाबाद में कोरोना वायरस के 8,144 पॉजिटिव मामलों सामने आए हैं जिसमें से 493 ने इस महामारी के कारण अपनी जान गंवाई है. इससे पता चलता है कि शहर में कोरोना के रोगियों की मृत्यु दर करीब 6.05 फीसदी है, जो पूरे देश में सबसे ज्यादा है.

वास्तव में पिछले तीन दिनों में मृत्यु दर में थोड़ी कमी आई है, अन्यथा मृत्यु दर करीब 6.75 फीसदी थी. वहीं देश में मुंबई के बाद अहमदाबाद में ही कोरोना के मरीजों की सबसे अधिक संख्या है. मुंबई में Covid19 के मामलों की संख्या अहमदाबाद से दोगुनी से अधिक होने के बावजूद, मरने वालों की संख्या करीब 696 है. यानी मुंबई में कोरोना की मृत्यु दर 3.75 फीसदी है. यह संख्या अहमदाबाद के मृत्यु दर का करीब आधा है.

स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में सबसे अच्छे स्थानों में से एक माने वाले अहमदाबाद में इस उच्च मृत्यु दर ने कई लोगों को झटका दिया है, जिसमें राज्य और केंद्र के वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं. इसे विजय नेहरा के अहमदाबाद नगर आयुक्त हटाए जाने के प्रमुख कारणों में से एक माना गया था. कई विशेषज्ञों को लगता है कि पिछले दो महीने में नौकरशाहों द्वारा स्थिति को गलत तरीके से संभालने के कारण ऐसा हुआ है. एक चिकित्सा विशेषज्ञ ने बताया कि शहर प्रशासन का सबसे खराब निर्णय सभी निजी अस्पतालों और क्लीनिकों को बंद करना था. लॉकडाउन-1 की घोषणा के तुरंत बाद उनमें से ज्य़ादातर को अपनी दुकान बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा था.

चूंकि कई लोग कोरोना के अलावा अन्य कई बीमारियों से पीड़ित थे, ऐसे में उन्हें अपने स्वास्थ्य के बारे में खुद जाकर डॉक्टर से परामर्श लेने से वंचित होना पड़ा. शहर में काम करने वाला एकमात्र ओपीडी सिविल अस्पताल में था, जहां कोरोना केंद्र भी था. कोरोना संक्रमण की आशंका के चलते ज्यादातर रोगी अन्य बीमारियों के लिए सिविल अस्पताल जाने से कतराते रहे. इस स्थिति में इन लोगों की हालत बिगड़ने लगी. सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक- कोरोना के कारण मरने वाले अधिकांश लोग मधुमेह, हृदय रोग और रक्तचाप जैसी बीमारियों से ग्रसित थे. इसके अलावा कई लोगों का कोरोना टेस्ट बेहद देरी से हुआ. जब तक मरीज में कोरोना पॉजिटिव होने की पुष्टि होती, तब तक रोगी की हालत अन्य बीमारियों के कारण खराब हो चुकी होती थी. आलम ये होता था कि कोरोना की पुष्टि होने के 24 घंटे के भीतर उनकी मृत्यु हो चुकी होती थी.

वरिष्ठ चिकित्सा विशेषज्ञों ने इसको शहर प्रशासन के संज्ञान में लाया और वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राजीव गुप्ता की नेतृत्व में टीम ने तत्काल सुधारात्मक उपाय किए. उन्होंने अहमदाबाद मेडिकल एसोसिएशन से बात की और उन्हें समझाने की कोशिश की कि स्थानीय डॉक्टरों को तुरंत ओपीडी को फिर से शुरू करना चाहिए ताकि मृत्यु दर को नियंत्रण में लाया जा सके. अब राज्य सरकार भी इन गलतियों को समझ गई है. अब यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं कि नागरिक अपनी नियमित बीमारियों के लिए चिकित्सा सहायता प्राप्त कर सकें, ताकि वे बेशक कोरोना टेस्ट में पॉजिटिव पाए जाएं लेकिन उनकी रोग प्रतिरक्षा क्षमता इससे लड़ने के लिए काफी मजबूत रहे. शहर प्रशासन अब पूरे जोश में ओपीडी उपचार को फिर से शुरू करने और स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए मुस्तैद है.
कोरोना के कारण देश की कुल मृत्यु दर करीब 3 प्रतिशत है जो गुजरात की दर से आधी है. यही वजह है कि अब राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता राष्ट्रीय स्तर पर अहमदाबाद की मृत्यु दर को कम या राष्ट्रीय स्तर के बराबर तक ले जाने की है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो दो दशकों से गांधीनगर, गुजरात की नौकरशाही और राजनीति को करीब से देख रहै हैं)

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