देश में जारी कोरोना संकट के बीच दिल्ली हाईकोर्ट में आज एक अहम सुनवाई हुई. बाकी बीमारियों से ग्रसित मरीजों के साथ कोरोना के मरीज़ों को भर्ती करने के केजरीवाल सरकार के आदेश को चुनौती देने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिस पर आज सुनवाई हुई. याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा कि वह इस मामले को गंभीरता से देखें कि क्या दिल्ली सरकार का यह फैसला सही है कि कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज बाकी बीमारियों से ग्रसित मरीजों के साथ में होना चाहिए.
हालांकि दिल्ली सरकार ने कोविड-19 मरीजों के लिए प्राइवेट अस्पतालों में 20 फीसदी वार्ड रिजर्व का आदेश दिया है. इस आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने सरकार के आदेश पर स्टे लगाने से इनकार कर दिया.
दरअसल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के 117 निजी अस्पतालों को निर्देश दिया गया है कि वह अपने यहां 20 फ़ीसदी बेड कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए आरक्षित करें. इसको लेकर नीति अस्पतालों ने अपनी चिंता भी जाहिर की थी. इसको लेकर ही हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करके दिल्ली सरकार पर सवाल उठाए गए थे.
सीएम केजरीवाल ने दिल्ली में संक्रमित मरीजों के उपचार के लिए 9000 बेड तक उपलब्ध होने की उम्मीद जताई थी. कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था कि एक तरफ केंद्र सरकार के दिशा निर्देश हैं कि कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए या तो अलग अस्पताल होगा या फिर ऐसे अस्पताल जहां पर एक अलग ब्लॉक हो और उस ब्लाक में पहुंचने वाले कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए आने जाने के लिए अलग रास्ता हो.
दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार से कहा है कि दिल्ली सरकार इस याचिका में उठाई गई बातों पर गौर करें और यह देखें कि क्या दिल्ली सरकार का फैसला केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों के विपरीत है और कहीं दिल्ली सरकार के फैसले से बाकी मरीजों में कोरोना वायरस से संक्रमित होने का खतरा बढ़ तो नहीं जाएगा. हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से अपने सुझाव दिल्ली सरकार के सामने पेश करने को कहां है जिस पर दिल्ली सरकार विचार करेगी.
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