राज्य सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की पूरी उम्मीद भारतीय जनजातीय पार्टी (बीटीपी) पर निर्भर करती है. अगर बीटीपी कांग्रेस उम्मीदवारों का समर्थन करता है, तभी कांग्रेस पार्टी के दोनों उम्मीदवार बचकर निकल सकते हैं.
राज्य सभा सीटों के लिए अंकगणित के मुताबिक- चार रिक्त सीटों के लिए चुनाव होने वाले हैं और पांच उम्मीदवार मैदान में हैं. इसमें बीजेपी से तीन जबकि कांग्रेस से दो हैं. गुजरात विधानसभा की 182 सीटों में से 10 खाली पड़ी हैं. ऐसे में 172 सीटों में से बीजेपी को 103, कांग्रेस को 65, बीटीपी को 2 और एनसीपी और निर्दलीय (जिग्नेश मेवानी) के बीच एक-एक सीटों का बंटवारा होगा. यानी प्रभावी रूप से जिस भी उम्मीदवार को 34 प्रथम वरीयता के वोट मिलेंगे, वह सीधे चुना जाएगा. अन्यथा, दूसरी वरीयता की गिनती होगी और उसमें भाजपा की संख्या बहुत अधिक है. इस तरह कांग्रेस ने अपने 65 विधायकों और एक निर्दलीय के रूप में जिग्नेश मेवानी के समर्थन की पुष्टि की है. उसके दोनों उम्मीदवार केवल तभी जीत सकते हैं जब BTP उसका समर्थन करती है. अन्यथा, उनमें से एक चुनाव हार सकता है. अब, कांग्रेस ने राज्यसभा के लिए दोनों दिग्गज उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है.
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उम्मीदवार शक्तिसिंह गोहिल और भरतसिंह सोलंकी का अपना जनाधार है. शक्तिसिंह को आलाकमान द्वारा पसंद किया जाता है क्योंकि वह एक बहुत अच्छे संचालक हैं और पार्टी को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की नीतियों पर हमला करने के लिए एक अच्छे संचालक की आवश्यकता है. दूसरे उम्मीदवार भरतसिंह सोलंकी उस माधवसिंह सोलंकी के पुत्र हैं, जिन्होंने राजनीति में अपने KHAM सिद्धांत के माध्यम से 80 के दशक में कांग्रेस पार्टी के लिए बेजोड़ गौरव हासिल किया. (केएचएएम – का अर्थ है क्षत्रिय (ओबीसी), हरि * (दलित), आदिवासी और मुस्लिम की सामाजिक इंजीनियरिंग)
राज्य में नई स्थिति पैदा हो रही है जहां बीजेपी बीटीपी से मोल-भाव कर रही है कि अगर वे बीजेपी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करना चाहते हैं, तो वे मतदान करने से बच सकते हैं और इससे बीजेपी को तीसरी सीट जीतने में मदद मिलेगी. दूसरी ओर, अहमद पटेल खुद BTP सुप्रीमो छोटूभाई वसावा को लुभाने में लगे हैं.
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यदि बीजेपी अपने प्रयासों में सफल होती है, तो कांग्रेस पार्टी को एक उम्मीदवार पर फैसला करना होगा. अब तक, यह स्पष्ट है कि शक्तिसिंह कांग्रेस पार्टी के आलाकमान की पहली पसंद होंगे लेकिन भरतसिंह सोलंकी भी बिना लड़ाई के हार मानने के मूड में नहीं हैं. भरतसिंह सोलंकी ओबीसी क्षत्रिय समुदाय (मुख्य रूप से ठाकोर) से आते हैं जो वस्तुतः राज्य भर में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा वोटबैंक है. वैसी स्थिति में जब इस साल दिसंबर के आसपास गुजरात में स्थानीय निकाय के आम चुनाव होने हैं, तो कांग्रेस अपने वोटबैंक को भी नाराज नहीं करना चाहती है. ऐसे में पुरानी दिग्गज पार्टी के लिए स्थिति बहुत मुश्किल हो गई है.
पार्टी के भीतर यह सबसे बड़ी दुविधा है कि वह किसी भी उम्मीदवार का गुस्सा बर्दाश्त नहीं कर सकती. अगर शक्तिसिंह को बलिदान देना पड़ा तो पूरी सौराष्ट्र लॉबी दुखी होगी और अगर भरतसिंह सोलंकी को बलिदान देना पड़ा तो पार्टी का सबसे वफादार मतदाता आधार प्रभावित हो सकता है. ऐसे में पार्टी के भीतर एक बड़ा प्रयास भरतसिंह को कुर्बानी देने के लिए मनाने के लिए भी हो रहा है. लेकिन अगर ऐसा होता है, तो पार्टी में फूट की संभावना बढ़ जाएगी. ऐसे में सभी कार्यकर्ता पूछ रहे हैं- पार्टी हित में कुर्बानी देगा कौन ??
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो दो दशकों से गांधीनगर, गुजरात की नौकरशाही और राजनीति को करीब से देख रहै हैं)
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