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हरिवंश नारायण सिंह दूसरी बार चुने गए राज्यसभा के उपसभापति

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राज्यसभा (Rajya Sabha) के उपसभापति पद के लिए हुए चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार हरिवंश नारायण सिंह को जीत हासिल हुई है. उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा (Rajya Sabha) के सभापति एम वेंकैया नायडू ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि हरिवंश जी को राज्यसभा (Rajya Sabha) के उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया है. हरिवंश दोबारा चुनकर राज्यसभा पहुंचे हैं.

एनडीए ने जेडीयू के नेता हरिवंश को राज्यसभा (Rajya Sabha) उम्मीदवार चुना था. वहीं विपक्ष की तरफ से आरजेडी के मनोज झा उम्मीदवार घोषित किए गए थे. राज्यसभा (Rajya Sabha) के चेयरमैन एम वेंकैया नायडू ने कहा कि हरिवंश को राज्यसभा का डिप्टी चेयरमैन (उपसभापति) चुना गया है. ध्वनि मत से उन्हें चुना गया है.

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पीएम मोदी ने दी बधाई

दूसरी बार राज्यसभा (Rajya Sabha) के उपसभापति पद के लिए चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरिवंश नारायण को बधाई दी है.

पीएम मोदी ने कहा,

“मैं हरिवंशजी जो दूसरी बार इस सदन का उपसभापति चुने जाने पर बधाई देता हूं. सामाजिक कार्यों और पत्रकारिता के जरिए हरिवंशजी ने एक ईमानदार पहचान बनाई है. इसके लिए मेरे मन में उनक प्रति काफी सम्मान है.”

कांग्रेस ने भी दी बधाई

वहीं विपक्ष ने भी उन्हें बधाई दी. कांग्रेस के राज्यसभा (Rajya Sabha) सांसद गुलाम नबी आजाद ने कहा,

“यह दूसरी बार है जब उन्हें सदन के उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया है. मैं उन्हें बधाई देता हूं.”

जेपी आंदोलन से हुए थे प्रभावित

हरिवंश का जन्म 30 जून 1956 को बलिया जिले के सिताबदियारा गांव में हुआ था. हरिवंश के लिए माना जाता है कि वह जेपी आंदोलन से खासे प्रभावित रहे हैं. हरिवंश ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए और पत्रकारिता में डिप्लोमा की पढ़ाई की और अपने कैरियर की शुरुआत टाइम्स समूह से की थी. इसके बाद हरिवंश को साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग की जिम्मेदारी सौंपी गई. हरिवंश साल 1981 तक धर्मयुग के उपसंपादक रहे.


इसके बाद उन्होंने पत्रकारिता छोड़ उन्होंने साल 1981 से 1984 तक हैदराबाद और पटना में बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी की. साल 1984 में एक बार फिर हरिवंश ने पत्रकारिता में वापसी की और साल 1989 तक आनंद बाजार पत्रिका की सप्ताहिक पत्रिका रविवार में सहायक संपादक रहे. 90 के दशक में हरिवंश बिहार के एक बड़े मीडिया समूह से जुड़े, जहां पर उन्होंने दो दशक से ज़्यादा वक़्त तक काम किया.

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