म्यांमार में तख्तापलट होने के बाद सत्ता सेना (Myanmar Army) ने अपने हाथों में ले ली है. म्यांमार की सेना (Myanmar Army) आंग सान सू ची समेत कई नेताओं को हिरासत में ले लिया है. वहीं सेना ने देश में एक साल के लिए इमरजेंसी का ऐलान कर दिया है. म्यांमार की फौज के इस कदम की भारत और अमेरिका समेत दुनियां भर के देशों में निंदा हो रही है.
भारत ने म्यांमार में फौज (Myanmar Army) के तख़्तापलट पर अफसोस जताया है. भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि,” म्यांमार में हुए तख्तापलट से बेहद फिक्रमंद हैं. भारत हमेशा से म्यांमार में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के हक़ में रहा है. हमारा मानना है कि देश में कानून और लोकतंत्र को बरकरार रखा जाए. म्यांमार के हालात पर भारत करीब से नज़र रखे हुए है.”
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भारत के अलावा अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने तख्तापलट पर फिक्र जताते हुए म्यांमार की फौज (Myanmar Army) से कानून का पालन करने की अपील की है. अमेरिका में व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा कि, म्यांमार की फौज ने देश की सुप्रीम लीडर आंग सान सू की और बाकी नेताओं को गिरफ्तार कर देश के लोकतंत्र को खत्म करने का कदम उठाया है. अमेरिका ने म्यांमार की सेना को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर ये तख्तापलट खत्म नहीं हुआ, तो जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
वहीं ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन ने भी म्यांमार में तख्तापलट की कड़े शब्दों में निंदा की है. वहीं ऑस्ट्रेलिया की तरफ से भी पीएम स्कॉट मोरिसन और विदेश मंत्री मरिज पायने ने सू ची की रिहाई की मांग की है.
म्यांमार झेल चुका है तख्तापलट का दंश
10 साल पहले सेना ने सत्ता का हस्तांतरण जनता की चुनी हुई सरकार को किया था. तख्तापलट की ख़बर से देश में एक बार फिर डर का माहौल पैदा हो गया है. साल 2011 में ही यहां पांच दशकों से चले आ रहे दमनकारी सैन्य शासन का अंत हुआ था. सोमवार तड़के ही आंग सान सू ची और अन्य राजनेताओं की गिरफ़्तारी ने एक बार फिर देश में नाउम्मीदी के उस दौर को ज़िंदा कर दिया है जिससे ये देश एक बार बाहर निकल चुका था.
क्या है तख्तापलट की वजह
सोमवार सुबह पार्टी को अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करना था. लेकिन हुआ कुछ. संसद के पहले सत्र से कुछ घंटे पहले सू ची समेत कई राजनेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में परदे के पीछे से सेना (Myanmar Army) ने म्यांमार पर कड़ी पकड़ बना रखी थी. इसमें सबसे बड़ा योगदान म्यांमार के संविधान का है जिसमें संसद की सभी सीटों का एक चौथाई हिस्सा सेना के हाथों में रहता है और देश के सबसे शक्तिशाली मंत्रालयों का नियंत्रित करने की गारंटी सेना को देता है.
खबरों के मुताबिक सेना (Myanmar Army) ने सू की पार्टी पर चुनावों में धांधली का आरोप लगाया है. बीते साल नवंबर में होने वाले चुनाव में आंग सान सू ची की पार्टी एनएलडी को 80 फ़ीसदी वोट मिले. ये वोट आंग सान सू ची की सरकार पर रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के लगने वाले आरोपों के बावजूद मिले. यह बात सेना पचा नहीं पाई जो कि विरोधी दल को समर्थन देती है.
साल 2008 में जब सेना (Myanmar Army) ने ही म्यांमार का संविधान बनाया तो राजनीति में अपने लिए एक स्थायी भूमिका तय कर दी. संसदीय सीटों में से 25 प्रतिशत कोटा सेना के लिए तय किया गया. इतना ही नहीं देश में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और सीमा मामलों के मंत्रियों की नियुक्ति करने का अधिकार भी सेना के चीफ के हाथ में गया.
किसके हाथों में होगी सत्ता
इन सब के पीछे म्यांमार सेना (Myanmar Army) के प्रमुख सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग का हाथ है. देश में सेना ने एक साल के लिए आपातकाल लगा दिया है और अब अगले साल ही चुनाव होंगे. म्यांमार की राजनीति में सेना ने अपना दबदबा हमेशा ही बनाए रखा है.
साल 1962 में हुए सैन्य तख्तापलट के बाद करीब 50 साल तक सेना ने देश पर प्रत्यक्ष तौर पर राज किया है. सेना का विरोध करने की वजह से ही आंग सान सू की सहित कई नेताओं को सालों तक नजरबंद रहना पड़ा. म्यांमार के आर्मी चीफ मिन आंग लाइंग की उम्र 64 साल है. लाइंग ने साल 1972-74 तक यंगून यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई की. जब लाइंग कानून की पढ़ाई कर रहे थे, उस वक्त म्यांमार में राजनीति में सुधार की लड़ाई जोरों पर थीं.