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गुजरात: कोरोना महामारी के बीच धूल खा रहे हैं करोड़ों की लागत से बने आइसोलेशन कोच

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गांधीनगर: गुजरात में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच राज्य सरकार ने सामाजिक संगठन और निजी नर्सिंग होम, सामुदायिक हॉल को कोविड केयर केंद्र के रूप में उपयोग करने की सिफारिश की है.

लेकिन करोड़ों की लागत से बने रेलवे के कोविड आइसोलेशन कोच धूल खा रहे हैं. Gujarat railway isolation coach empty

कोरोना के तेजी से बढ़ते सकारात्मक मामलों के बीच रेलवे का कोविड आइसोलेशन कोच काफी मददगार साबित हो सकता है.

पश्चिम रेलवे ने अहमदाबाद, राजकोट और भावनगर में 175 से अधिक आइसोलेशन कोच बनाए हैं. जो पिछले एक साल से धूल खा रहे हैं.

ट्रेन के डिब्बों को आइसोलेशन कोच में बदल दिया गया था Gujarat railway isolation coach empty

पिछले साल कोरोना की पहली लहर के दौरान देशव्यापी लॉकडाउन लगा दिया गया था. इस दौरान बंद पड़ी ट्रेन के डिब्बों को आइसोलेशन कोच में बदल दिया गया था.

प्रत्येक कोच 6 से 7 मरीजों का इलाज किया जा सकता है. कोच में बाथरूम के पास पहले केबिन में अस्पताल स्टाफ की सुविधा है. जबकि अन्य 8 केबिन में मरीजों की जांच की जा सकती है.

धूल खा रहे आइसोलेशन कोच Gujarat railway isolation coach empty

राजकोट ज़ोन में ट्रेनों के 20 नॉन एसी कोचों को आइसोलेशन वार्ड में बदल दिया गया है. इसके लिए कोच के प्रत्येक डिब्बे को मध्य बर्थ को हटाकर अस्पताल के निजी कमरे की तरह बनाया गया है.

डॉक्टरों के कहने के मुताबिक कोचों में जरूरी बदलाव किए गए हैं. कोच के एक शौचालयों को बाथरूम में बदल दिया गया है. Gujarat railway isolation coach empty

संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए प्लास्टिक के पर्दे लगाए गए हैं. Gujarat railway isolation coach empty

प्रत्येक कोच में मोबाइल चार्जिंग पॉइंट और प्रत्येक केबिन में मरीजों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर फिट किए गए हैं. ये कोच करोड़ों रुपये की लागत से तैयार किए गए हैं.

गुजरात में कोरोना की वजह से स्थिति हर दिन खराब होती जा रही है. ज्यादातर अस्पताल हाउस फुल हो चुके हैं. Gujarat railway isolation coach empty

मरीजों को बेड नही मिल पा रहा है इसलिए लोगों को जमीन पर इलाज दिया जा रहा है. इसलिए रेलवे का यह आइसोलेशन कोच इलाज में काफी मददगार साबित हो सकता है.

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