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#बैठकपुराण डभोई: BJP फिर ज्वाइंट किलर बनेगी या फिर मैदान से पहलवान ही बाहर होंगे?

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अपनी प्राचीन विरासत वाला गुजरात का डभोई गांव एक जमाने में उत्कृष्ट मूर्तियों के साथ हीरे की नक्काशी के लिए प्रसिद्ध था. हीरा मूर्तिकारों का गांव दर्भवती और आज के डभोई में अतीत की कहानियों के अलावा कुछ भी सामान्य नहीं है. चुनाव आयोग के मुताबिक 140वीं रैंक वाली यह सीट सामान्य श्रेणी में आती है. वडोदरा से नजदीक होने के बावजूद डभोई विधानसभा सीट छोटा उदयपुर लोकसभा के अंतर्गत आती है. इसमें डभोई तालुक के अलावा वडोदरा तालुक के 48 गांव शामिल हैं. पंजीकृत मतदाताओं की कुल संख्या 2,28,045 है. चानोद, कायावरोहण जैसे प्राचीन तीर्थ स्थल भी इस निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं.

मिजाज:
गुजरात में किसी भी राजनीतिक दल की हवा चले लेकिन उसे नज़रअंदाज करना और अपने अनुकूल उम्मीदवार का चुनाव करना इसके साथ ही उसे काफी कम अंतर से जीत दिलाना इस सीट की विशेषता रही है. यहां अब तक हुए कुल 12 चुनावों में से 6 बार ऐसे मौके आए हैं जहां 3000 या उससे कम वोट से उम्मीदवारों को हार-जीत का सामना करना पड़ा है. जिसकी वजह से यहां के हर चुनाव में उम्मीदवारों को अपनी पूरी ताकत झोंकनी पड़ती है. यहां जनसभा और रैली के मुकाबले दोपहर में टिफिन बैठक और रात में खटिये पर बैठकर चर्चा विचारणा करना कहीं ज्यादा प्रभावी माना जा रहा है.

रिकॉर्ड बुक

साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 सिद्धार्थ पटेल कांग्रेस 10383
2002 चंद्रकांत पटेल भाजपा 16747
2007 सिद्धार्थ पटेल कांग्रेस 12950
2012 बालकृष्ण पटेल भाजपा 5122
2017 शैलेश मेहता भाजपा 2839

 

कास्ट फैब्रिक
पाटीदारों के अलावा, डभोई में ब्राह्मण, वानिया और सोनी समुदाय के लोगों की अच्छी आबादी है. मुस्लिम और दलित समुदाय भी अच्छी संख्या में हैं जिन्हें कांग्रेस का प्रतिबद्ध वोट बैंक माना जाता है. यहां बाकी जाति समुदाय हिंदुत्व या धर्मनिरपेक्षता से प्रभावित हुए बिना हर चुनाव में अलग-अलग तरीकों से वोट देना जारी रखता है. इसलिए यहां कोई निश्चित पैटर्न नहीं है और इसलिए यह सीट किसी का गढ़ नहीं है.

समस्या:
अत्यधिक प्रदूषण की समस्या शहरी क्षेत्रों में व्याप्त है. टूटी सड़कों और ओवरफ्लो हो रहे नालों की समस्या के खिलाफ चलने वाला पोस्टकार्ड अभियान दिल्ली में प्रधानमंत्री तक भी पहुंच चुका है. इतना ही नहीं कोरोना काल में स्थानीय विधायक की निष्क्रियता की भी शिकायत की गई थी. चानोद, कायवरोहण तीर्थ स्थल काशी की तर्ज पर विकसित करने का दावा अभी तक कागज से बाहर नहीं आया है. स्वच्छ डभोई-समृद्ध डभोई का नारा अब मजाक बनकर रह गया है. स्थानीय लोगों द्वारा कृषि समस्याओं को भी जोर-शोर से उठाया जा रहा है.

मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
वडोदरा के पूर्व डिप्टी मेयर शैलेश मेहता (सोट्टा) को पिछले चुनाव में अप्रत्याशित रूप से टिकट मिल गया और कांग्रेस के सिद्धार्थ पटेल जैसे दिग्गज नेता को हराने के बाद, उन्हें ज्वाइंट किलर माना जाने लगा. योगी आदित्यनाथ को अपना आदर्श मानने वाले सोट्टा आक्रामक हिंदूत्व के नाम पर चुनावों को प्रभावित करने में माहिर हैं. हालाँकि, उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र में हिंदू मंदिरों की बदहाली उनका माइनस पॉइंट बन जाता है. डभोई को इसका प्राचीन नाम दर्भवी देने की बात चुनाव जीतने का मुद्दा साबित होता लग रहा है. अगर वडोदरा जिले में बीजेपी की नो रिपीट थ्योरी अपनाती है तो सोट्टा का टिकट कट सकता है. ऐसे में बीजेपी एक ऐसी महिला का चेहरा ला सकती है जिसकी किसी को उम्मीद भी नहीं है.

प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस के दिग्गज नेता सिद्धार्थ पटेल इस सीट से दो बार विधायक बन चुके हैं. सोट्टा के खिलाफ स्थानीय स्तर पर हो रही प्रतिक्रिया को देखते हुए इस बात की प्रबल संभावना है कि वह यहां फिर से चुनाव लड़ेंगे. सिद्धार्थ पटेल जैसा दिग्गज अगर फिर से हारने के डर से यहां से हट जाता है तो उनके सिवा दूसरा कोई मजबूत दावेदार नहीं है. यहां संगठन स्तर पर कांग्रेस की हालत खस्ता है. ऐसी स्थिति है जहां उम्मीदवार को अपने दम पर प्रचार करना पड़ता है. कांग्रेस के लिए अभी भी उम्मीद है कि अगर ग्रामीण इलाकों के प्रतिबद्ध वोट बैंक को जगा सके तो भाजपा को टक्कर दे सकती है.

तीसरा कारक:
यहां आम आदमी पार्टी का प्रभाव नगण्य है. वडोदरा शहर में पार्टी की अच्छी पकड़ है लेकिन ग्रामीण स्तर पर आम आदमी पार्टी का प्रभाव बिल्कुल भी नहीं दिख रहा है. डभोई में मुस्लिमों की आबादी काफी है, लेकिन एमआईएम का यहां से उम्मीदवार खड़ा करने की संभावना न के बराबर है. जिसकी वजह से यहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होगा.

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