Gujarat Exclusive > गुजरात एक्सक्लूसिव > अहमद पटेल का राजनीतिक सफर: गांधी परिवार का सेवक या राजनेता?

अहमद पटेल का राजनीतिक सफर: गांधी परिवार का सेवक या राजनेता?

0
1547

अहमदाबाद: कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल 71 साल की उम्र में आज दुनिया को अलविदा कह दिया. बाबू भाई के नाम से मशहूर अहमद पटेल एक ऐसे राजनेता थे जिनको गांधी परिवार के बाद सबसे ताकतवर नेता माना जाता है. इंदिरा गांधी राजीव गांधी और सोनिया गांधी के साथ काम करने के लंबे अनुभव की वजह से उनको कांग्रेस का संकट मोचक, चाणक्या, क्राइसिस मैनेजर, फायर फाइटर, बैकरूम मैनेजर सहित कई विशेषणों से नवाजा जा रहा है. अहमद पटेल कांग्रेस के इकलौते नेता थे जिसको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद अपना अच्छा दोस्त बता चुके हैं.Ahmed patel

अहमद पटेल के राजनीतिक सफर का आगाज सन 70 के आसपास हुआ पटेल जब भरूच तहसील पंचायत के अध्यक्ष थे उसी दौरान गुजरात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश जी महेडा और माधव सिंह सोलंकी की नजर उन पर पड़ी. इन दोनों कांग्रेसी नेताओं ने इंदिरा गांधी से अहमद पटेल के बारे में चर्चा की थी. उसके बाद पटेल को यूथ कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया. कांग्रेस का प्लान था कि अहमद पटेल को गुजरात का युवा अल्पसंख्यक नेता का चेहरा बनाया जाए.Ahmed patel

पटेल ऐसे वक्त में लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब हुए जब कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही थी. पटेल को 1977 के लोकसभा चुनावों में भरुच से चुनाव लड़ने का मौका मिला. यह वह दौर था आयरन लैडी के नाम से जानी जा रही इंदिरा गांधी भी चुनाव हार गई थी. लेकिन पटेल चुनाव जीतने में कामयाब हुए. 26 साल के नौजवान अहमद पटेल ने चुनाव जीतकर सभी को चौंका दिया था इतना ही नहीं उन्होंने मजबूत राजनीतिक भविष्य की तरफ भी इशारा कर दिया था. चुनाव में मिलने वाली कामयाबी की वजह से वह इंदिरा गांधी की नजरों में आ चुके थे.Ahmed patel

अहमद पटेल युवा थे, मुस्लिम थे और गुजराती थे इसलिए उनकी करीबी इंदिरा गांधी से बढ़ने लगी गांधी ने पटेल को पार्टी का ज्वाइंट सेक्रेटरी की अहम जिम्मेदारी दी. इसी बीच इंदिरा गांधी की सत्ता में एक बार फिर वापसी हुई तब पटेल को मंत्री बनने का प्रस्ताव दिया गया लेकिन उन्होंने मंत्री बनने से साफ इनकार कर दिया. उस दौर से लेकर आज तक अहमद पटेल को कई बार केंद्रीय मंत्री बनने का प्रस्ताव दिया गया लेकिन उन्होंने कभी भी मंत्री पद को नहीं स्वीकार किया बल्कि संगठन में रहते हुए काम करने को ज्यादा तरजीह दी. ऐसा भी कहा जाता है कि मनमोहन सिंह के दौर में पटेल ऐसी कड़ी थे कि कौन से नेता को मंत्री बनाना है और किसको मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाना है यह पटेल ही तय करते थे. Ahmed patel

यह भी पढ़ें:भगोड़े नित्यानंद से जुड़ी मंजुला श्रॉफ की DPS स्कूल को फिर से खुलवाने के लिए दलाल सक्रिय

इंदिरा गांधी से अहमद पटेल की वफादारी का सिला मिला और उनकी हत्या के बाद जब राजीव गांधी ने कांग्रेस की जिम्मेदारी संभाली तब भी पटेल राजीव गांधी के करीबी लोगों में से एक रहे. जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अरुण सिंह, ऑस्कर फर्नांडिस और अहमद पटेल को संसदीय सचिव बनाया. इन तीनों की जोड़ी को उस वक्त अमर, अकबर, एंथनी कहकर पुकारा जाता था. राजीव गांधी ने भी अहमद पटेल को मंत्री बनने का प्रस्ताव दिया तब भी पटेल ने संगठन में काम करने की बात कहकर इनकार कर दिया. राजीव के कार्यकाल में अहमद पटेल को संसदीय सचिव के साथ ही साथ पार्टी का महासचिव बनाया गया था. दिल्ली में अपने हुनर का जौहर दिखाने वाले अहमद पटेल की कांग्रेस ने गुजरात के युवाओं में जोश भरने के लिए एक रणनीति के तहत गुजरात भेज दिया गया. गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने वाले पेटल प्रदेश अध्यक्ष बनने वाले सबसे कम उम्र के नेता थे. Ahmed patel

राजीव गांधी और अहमद पटेल की निकटता का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजीव जब भी गुजरात के दौरे पर आते थे पटेल उनके साथ जरूर आते थे. राजीव गांधी के पिता फिरोज गांधी भी भरूच के ही रहने वाले थे. जब भी राजीव गांधी या गांधी परिवार का कोई सदस्य गुजरात के दौरे पर आता था तो पटेल उसे भरूच स्थिति फिरोज गांधी का पैतृक घर दिखाने जरूर ले जाते थे. माना जा रहा है कि इस रिश्ते की वजह से भी गांधी परिवार और अहमद पटेल के बीच निकटता रही. लेकिन राजीव गांधी की हत्या के बाद अहमद पटेल कुछ समय तक राजनीतिक अंधकार का शिकार भी हो गए. इसी दौरान वह भरूच से लोकसभा का चुनाव भी हार गए. यह दौर पटेल के लिए काफी मुश्किलों भरा रहा. लेकिन पटेल एक नई पारी खेलने की तलाश में थे.Ahmed patel

यह मौका मिला उनको 1992 में तिरुपति में होने वाली कांग्रेस वर्किंग कमिटी के चुनाव में, कई सालों के बाद आयोजित होने वाले उस चुनाव में पटेल को तीसरे नंबर पर सबसे ज्यादा वोट मिले थे. जिसके बाद वह कांग्रेस वर्किंग कमिटी के सदस्य बनाए गए. यह वह दौर था जब सोनिया गांधी के करीब भी वह पहुंच गए. दरअसल सोनिया सियासत से दूर थी और पटेल को जवाहर भवन ट्रस्ट की जिम्मेदारी मिलने के बाद काफी लगन से काम कर रहे थे. राजीव गांधी फाउंडेशन के नीव डालने में भी पटेल की अहम भूमिका रही. सोनिया गांधी के दिल के सबसे करीब रहे इस प्रोजेक्ट को पूरा होने पर वह सोनिया गांधी के और निकट पहुंच गए.Ahmed patel

यह भी पढ़ें: गुजरात एक्सक्लूसिव इम्पैक्ट: सरकार ने वियन कुमार को GSPC से किया बाहर

राजीव गांधी की मौत के सात साल बाद सोनिया गांधी ने जब अपनी राजनीतिक चुप्पी तोड़ी तो उनका सारथी बनकर अहमद पटेल साथ-साथ चलते हुए नजर आए. सोनिया गांधी के पार्टी संभालने के बाद पटेल का राजनीतिक कद और रूतबा दिनों बढ़ता रहा. पटेल के राजनीतिक प्रभुत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनको आज भी गांधी परिवार के बाद कांग्रेस का सबसे ताकतवर आदमी माना जाता है.Ahmed patel

अहमद पटेल ने कांग्रेस के कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया लेकिन कभी मंत्रिमंडल में जगह नहीं ली लेकिन उन्होंने अपने गांव भरूच को जरुर विकास का पथ दिया. पटेल की वजह से भरुच-अंकलेश्वर का खूब विकास हुआ. यहां कैमिकल फक्ट्रियां आईं. इस छोटे से जिला की खासियत यह कि ज्यादातर ट्रेन भरूच में रुकने के बाद ही आगे निकलती है. उन्होंने ही भरूच में घर-घर में गैस पाइपलाइन पहुंचवाई है. पटेल इस दुनिया को आज अलविदा कह दिया उनके निधन की जानकारी मिलने के बाद पूरे देश के साथ ही साथ भरूच में गम का माहौल छाया हुआ है. पटेल ने जाते-जाते देश के राजनैताओं को एक नहीं बल्कि कई सबक दे गए हैं.Ahmed patel

गुजराती में ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

https://archivehindi.gujaratexclsive.in/category/politics/