गुजरात में पिछले कुछ दिनों से पेट्रोल-डीजल की कृत्रिम कमी से लोग परेशान हो रहे हैं. डर के चलते लोग दोपहिया-चार पहिया वाहनों की टंकियों को फुल करवा रहे हैं. इस कृत्रिम तंगी में तेल कंपनियां खलनायक की भूमिका निभा रही है. दरअसल सरकार ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों में जब कमी का फैसला किया था उस वक्त कच्चा तेला 90 डॉलर प्रति बैरल में बिक रहा था. लेकिन अब इसकी कीमत 121 डॉलर हो गई है. जिसकी वजह से कंपनियों को महंगे दाम में तेल खरीदकर सस्ते में बेचना पड़ रहा है. इसलिए अब आपूर्ति में कटौती कर कीमतों को बढ़ाने के लिए अप्रत्यक्ष दबाव बनाया जा रहा है.
एचपीसी और बीपीसी ने जनवरी, फरवरी और मार्च में अपनी औसत आपूर्ति में 50 फीसदी की कटौती की है. उदाहरण के लिए, एक डीलर जो प्रति माह 50,000 लीटर पेट्रोल-डीजल बेचता था, उसे अब केवल 20,000 लीटर मिलता है. शेष 30,000 नहीं दिया जाता है. नतीजतन, डीलरों ने बिना अनुमति के पेट्रोल पंप के घंटे कम कर दिए हैं. पंप के बाहर आउट-ऑफ-स्टॉक की तख्ती लगा दिया गया है. इतना ही नहीं रिलायंस और एस्सार ने अपने पंप बंद कर दिए हैं. जिसकी वजह से लोगों को और ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
एसटी, रेलवे, मत्स्य पालन, फैक्ट्री जैसे थोक उपभोक्ताओं को बाजार भाव से कुछ कम दाम पर डीजल मिल रहा था. बड़े यार्ड के ये ग्राहक अलग सिस्टम के जरिए उनके लिए डीजल लाते थे, लेकिन जब डीजल का थोक भाव 120 रुपये के आसपास पहुंच गया तो उन्होंने खरीदना बंद कर दिया और डीलरों से सस्ता डीजल लेना शुरू कर दिया. इन बड़े क्रय उपभोक्ताओं के प्रवेश से आज तक ईंधन बाजार का संतुलन गड़बड़ा गया और खुदरा उपभोक्ताओं को डीजल प्राप्त करने में कठिनाई होने लगी. स्थिति में कब सुधार होगा? यह कोई नहीं जानता.
अहमदाबाद के जुहापुरा और सरखेज इलाके में स्थिति ऐसी हो गई है कि ज्यादातर पेट्रोल पंप पर आउट-ऑफ-स्टॉक की तख्ती लगा दी गई है. जिसकी वजह से लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इतना ही नहीं सादा पेट्रोल नहीं होने की वजह से लोगों को महंगे दाम में प्रीमियम पेट्रोल डलवाना पड़ रहा है.
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