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महाराष्ट्र उपमुख्यमंत्री बनते ही अजित पवार को मिली बड़ी राहत, सिंचाई घोटाला मामले की 9 फाइल बंद

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महाराष्ट्र में जारी सियासी हंगामा के बाद जहां अचानक बनने वाली एनसीपी और बीजेपी सरकार के खिलाफ विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. और कल इस मामले का फैसला कल आने की उम्मीद जताई जा रही है. लेकिन जिस तरीके से एनसीपी नेता बीजेपी के गठबंधन कर मुख्यमंत्री के साथ उपमुख्यमंत्री की शपथ लिया था उसपर लोग सवाल खड़ा कर रहे थे कि आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि अजित पवार को बीजेपी के साथ जाना पड़ा.

सिंचाई घोटाले में फंसे महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार को बड़ी राहत मिली है. एंटी करप्शन विभाग ने अजित पवार के खिलाफ घोटाले से जुड़े 9 मामलों की जांच बंद कर दी है. सबूतों के अभाव में इन फाइलों को बंद कर दिया गया है. उपमुख्यमंत्री बनते ही इस घटनाक्रम को राजनीतिक चश्मे से देखा जा रहा है. महाराष्ट्र में हुए तकरीबन 76000 करोड़ के सिंचाई घोटाले में अजित पवार मुख्य आरोपी हैं.

अजित पवार का नाम महाराष्ट्र के चर्चित सिंचाई घोटाले में सामने आया था. इस मामले में उन्हें मुख्य आरोपी बनाया गया. अजित पवार के खिलाफ 9 मामलों में एंटी करप्शन विभाग को कोई ठोस सबूत नहीं मिला. उनके खिलाफ सोमवार को 9 मामलों की फाइल बंद कर दी गई.

फिर खुल सकते हैं मामले

महाराष्ट्र में सिंचाई घोटाले से जुड़े 3000 मामले दर्ज हैं. यह मामले अलग-अलग राज्यों में दर्ज हैं. इनमें से अमरावती, बुलढाणा, यवतमाल और वसीम जिलों में दर्ज 9 मामलों की फ़ाइल बंद की गई है. एन्टी करप्शन ब्यूरो के मुताबिक़ जांच के दौरान घोटाले के कोई सबूत न होने की वजह से ये मामले बंद किये जा रहे हैं. सभी मामलों में 9 मामलों की फ़ाइल बंद की गई है. इन मामलों में अजित पवार की सीधी संलिप्तता नहीं है. सबूतों के अभाव में हमने जांच बंद की है. ये 9 मामले ‘conditional cases’ थे, मतलब आगे जब सबूत मिलेंगे, तो इन्हें कोर्ट के निर्देश के बाद फिर से खोला जा सकता है.

क्या है सिंचाई घोटाला

साल 1999 से 2009 तक अजीत पवार के पास सिंचाई मंत्रालय था. इस दौरान मंत्रालय ने करीब 70 हजार करोड़ का खर्च किया था. आरोप लगे थे कि खर्च के अनुपात में काम नहीं हुए. इस मुद्दे पर जब विपक्ष ने हंगामा किया तो मुख्यमंत्री ने अजीत पवार से इस मुद्दे पर श्वेत पत्र लाने को कहा था. आरोप ये भी लगे थे विदर्भ और रायगढ़ जिले में जो डैम बने हैं उनकी कीमत बढ़ा कर प्रस्ताव पास किए गए थे.

सिंचाई विभाग के एक पूर्व इंजीनियर ने तो चिट्ठी लिख कर ये भी आरोप मढ़ दिए थे कि कई ऐसे डैम बनाए गए जिसकी जरूरत नहीं थी और वो नेताओं के दबाव में बनाए गए थे. इंजीनियर ने ये भी लिखा था कि कई डैम कमजोर बनाए गए हैं.