भारत नेपाल सिर्फ पड़ोसी देश ही नहीं बल्कि इन दोनों के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता रह चुका है. इसकी वजह से इन दोनों देशों को सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक धार्मिक रूप से जोड़ता है. लेकिन पिछले कुछ दिनों से नेपाल चीन के बहकावे में आकर भारत के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है. इसी कड़ी में एक अन्य मामला सामने आया है कि नेपाल अब हिंदी भाषा पर बैन लगाने की तैयारी कर रहा है.
नेपाली सांसद ने किया विरोध ने सरकार के इस फैसला सदन में विरोधते हुए कहा कि क्या ओली सरकार चीन के निर्देश पर ऐसा कर रही है. इतना ही नहीं जनता समाजवादी पार्टी की सांसद सरिता गिरी ने कहा कि नेपाल सरकार ऐसा कर अलग-अलग भाषा को बोलने वाले नेपाली के विरोध में उतरने का न्यौता दे रही है. माना जा रहा है कि भारत सीमा से सटे नेपाल के कई हिस्सों में लोग हिंदी, भोजपुरी, मैथली भाषा बोलते हैं.
चीन ने नेपाल की सीमा में भी घुसपैठ कर 33 हेक्टेयर नेपाली जमीन पर कब्जा कर लिया है. ओली सरकार को चीन के इस हरकत और कोरोना महामारी पर लगाम लगाने में निष्फल होने का आरोप लग रहा है. इसीलिए माना जा रहा है कि सरकार ने हिंदी भाषा पर बैन लगाने का नया पैंतरा चलकर लोगों के ध्यान को भटकाने की कोशिश कर रही है.
नेपाल सरकार के इस फैसले को अमलीजामा पहनाने में नेपाल के लोगों का विरोध का सामना करना पड़ेगा. क्योंकि आज भी नेपाल के तहाई इलाकों में लोग हिंदी भाषा का इस्तेमाल करते हैं. अगर सरकार ऐसा फैसला करती है तो नेपाल में जमकर विरोध होने की उम्मीद जताई जा रही है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि नेपाल सरकार ऐसा करना क्यों चाहती है.
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