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अयोध्या: ASI की रिपोर्ट को सुप्रिम कोर्ट ने बनाया फैसले का आधार, खाली जगह पर नहीं बनाई गई थी मस्जिद

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पिछले महीने लगातार 40 दिनों तक अयोध्या बाबरी मस्जिद-राम मंदिर जमीन विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चली थी जिसके बाद फैसले को सुरक्षित रख लिया गया था. लेकिन आज चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच बेंच ने फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन राम जन्मभूमि न्यास को दे दिया. जबकि शिया वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा के दावा को खारिज करते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन अयोध्या में मस्जिद बनाने के लिए देने का आदेश दिया है.

सुप्रीम कोर्ट फैसला,ASI रिपोर्ट की भुमिका

सुप्रीम कोर्ट में आज फैसला आने से पहले कोर्ट ने कहा कि जिस जगह पर मस्जिद को बनाया गया था वह खाली जगह नहीं थी इतना ही नहीं भारतीय पुरातत्विक सर्वेक्षण यानी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के आधार पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पक्ष के लोग अपने दावे को साबित करने में नाकाम रहे हैं. साथ ही साथ कोर्ट ने ASI रिपोर्ट के आधार पर अपने फैसले में कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की भी पुख्ता जानकारी भी नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या जमीन विवाद मामले इस बात को माना कि ढांचा गिराना कानून व्यवस्था का उल्लंघन था. कोर्ट ने कहा कि आस्था और विश्वास के आधार पर मालिकाना हक नहीं दिया जा सकता. अपना फैसला पढ़ते हुए अदालत ने कहा कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी. अदालत ने माना कि वहां पहले मंदिर था.

कोर्ट ने एएसआई की रिपोर्ट को वैध माना और कहा कि खुदाई में जो मिला वह इस्लामिक ढांचा नहीं था. फैसला पढ़ते हुए शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज कर दी है. अदालत की पीठ ने यह फैसला सर्वसम्मति से लिया. शिया बोर्ड ने मामले में याचिका दायर कर कहा था कि विवादित स्थल उसे सौंपा जाना चाहिए क्योंकि मस्जिद बनाने वाला शिया था. लेकिन कोर्ट ने इस याचिका को सर्वसम्मति से खारिज कर दिया.

15 साल पहले हुई थी खुदाई

बता दें कि जब भारतीय पुरातत्विक सर्वेक्षण मतलब आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने पहली बार राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद की विवादित भूमि का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया था. करीब 15 साल पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर अयोध्या में विवादित जमीन की खुदाई की थी. जिसमें मिली चीजों का एएसआई की टीम ने वैज्ञानिक परीक्षण किया था. इसके आधार पर विवादित ढांचे के नीचे प्राचीन मंदिर के अवशेष होने का दावा किया गया था. मंदिर के पक्ष में मिले इन सबूतों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में अहम भूमिका निभाई थी.

वहीं कोर्ट में हिंदू पक्ष की दलील थी कि पद्म पुराण और स्कंद पुराण में भी रामजन्मस्थान का सटीक ब्यौरा है. इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि 1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मंदिर तोड़कर जबरन मस्जिद बनाई. एएसआई यानी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की खुदाई की रिपोर्ट में भी विवादित ढांचे के नीचे टीले में विशाल मंदिर के प्रमाण मिले.

हिंदू पक्ष की दलील थी कि खुदाई में मिले कसौटी पत्थर के खंबों में देवी देवताओं, हिंदू धार्मिक प्रतीकों की नक्काशी. 1885 में फैजाबाद के तत्कालीन जिला जज ने अपने फैसले में माना था कि 1528 में इस जगह हिंदू धर्मस्थल को तोड़कर निर्माण किया गया. चूंकि अब इस घटना को साढ़े तीन सौ सालों से ज्यादा समय हो चुका है लिहाजा अब इसमें कोई बदलाव करने से कानून व्यवस्था की समस्या हो सकती है.

सुन्नी वक्फ बोर्ड की दलील क्या थी

वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड का आरोप था कि पुरातत्व एक मुकम्मल विज्ञान नहीं बल्कि एक असटीक विज्ञान है जिसमे सिर्फ हवाला देते हुए या मान लेने पर ज़्यादा जोर दिया जाता है. इस पुरातात्विक सर्वेक्षण के मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दो स्वतंत्र पुरातत्वविदों को शामिल किया था जिनमें एक सुप्रिया विराम थीं और दूसरी जया मेनन. इन दोनों ही स्वतंत्र पुरात्वविदों ने एएसआई के सर्वेक्षण पर अलग से एक शोध पत्र जारी कर कई सवाल खड़े किए हैं. ये दोनों ही शोधकर्ता एएसआई के सर्वेक्षण के दौरान मौजूद थीं.

सुन्नी वक्फ बोर्ड रिव्यू पिटीशन यानी कि पुनर्विचार याचिका

राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामला का फैसला आने के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि इस फैसले में विरोधाभास नजर आ रहा है. फैसले का सम्मान जरुर कर रहे हैं लेकिन इस फैसले से संतुष्ट नहीं. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि जजमेंट को पूरा पढ़ने के बाद रिव्यू पिटीशन दाखिल करने का भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड प्लान बना रही है.