जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद ही थी, हम अब भी उसे मस्जिद ही मानते हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उनके विचार में परिवर्तन नहीं आया है, बल्कि निराशा मिली है, क्योंकि फैसला विरोधाभाष से भरा है. एक तरफ कोर्ट फैसले में खुद कहता है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनी थी तो भी फैसला उनके हक में दिया जाता है जिन्होंने मस्जिद तोड़ी थी.
मदनी गुरुवार को यहां आइटीओ स्थित जमीयत के मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे. मौलाना मदनी ने प्रेस कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा मस्जिद के लिए कहीं और पांच एकड़ जमीन की पेशकश को मंजूर नहीं करना चाहिए, क्योंकि मुद्दा जमीन का नहीं, मालिकाना हक का था. अगर मस्जिद की वह जमीन नहीं है तो फिर अलग से जमीन देने का आदेश क्यों दिया गया?
अगर शीर्ष अदालत कहती कि बाबर ने मंदिर तोड़कर वहां मस्जिद बनाई थी तो हम उस फैसले को मान लेते. तब हम इस्लाम के लिहाज से इसके हक में नहीं होते कि वहां दोबारा मस्जिद बनाई जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बल्कि फैसला कई सवाल खड़े करता है. लेकिन साथ ही साथ उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर वह अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में नहीं ले जाएंगे. उन्होंने कहा कि उन्हें मुल्क, सुप्रीम कोर्ट और कानून पर पूरा भरोसा है. इसलिए इस मामले को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में नहीं ले जाएंगे. वे लोग इस मामले को यहीं सुलझाएंगे.
पुनर्विचार याचिका को लेकर मंथन
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका को लेकर जमीयत में मंथन चल रहा है. गुरुवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों, कानून के जानकारों और सुप्रीम कोर्ट में बाबरी मस्जिद का पक्ष रखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ बैठक देर रात तक चलती रही.