आरिफ आलम: केन्द्र में जब से बीजेपी की सरकार बनी है हिन्दुस्तान की सियासत कांग्रेस के इर्द-गिर्द घूमती हुई नजर आ रही है. इतना ही नहीं केन्द्र की बीजेपी हुकूमत ने सबसे ज्यादा जवाहर लाल नेहरु पर हमला बोला चाहे वह कश्मीर का मुद्दा हो या फिर देश की वर्तमान स्थिति का. लेकिन आज चाचा नेहरू यानी देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन. जिसे बाल-दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. वैसे तो पंडित नेहरू की विद्वता के बारे में और आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में देश का हर नागरिक उनको जानता है. लेकिन बहुत ही कम लोग जानते हैं कि आज देश हमें जिस भौगोलिक एकता और अखंडता के साथ दिखाई देता है, उसकी वजह पंडित जवाहर लाल नेहरू ही हैं.
आज नेहरु को लेकर ऐसा माहौल बना दिया गया जिसकी वजह से ज्यादातर लोगों के दिमाग में नेहरु को लेकर नकारात्मक विचार आना स्वभाविक हो गया है। लेकिन देश के पहले प्रधानमंत्री होने का तमगा, कश्मीर समस्या और चीन से पराजय. पर क्या आपको पता है कि नेहरू की कैबिनेट ने ऐसा कानून पास किया था, जिसने देश को हमेशा के लिए अखंड बना दिया, जिसने देश के तमाम हिस्सों में उठ रही अलगाव वाद की मांग को एक झटके में तबाह कर दिया था. वरना द्रविड़नाडु जिसके बारे में आज कोई जानता तक नहीं, वो भारत के दक्षिण में भारत के कुल क्षेत्रफल का एक तिहाई बराबर हिस्से जितना अलग देश होता.
दरअसल पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु को बच्चे बहुत पसंद थे और बच्चे भी उन्हें प्यार से चाचा नेहरु कहकर पुकारते थे. इसलिए उनके जन्मदिवस को बाल दिवस के रुप में मनाया जाने लगा. लेकिन बाल दिवस मनाये जाने के बावजूद नेहरु पर अक्सर सियासी तंज कसा जाता है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हमला
जो गुलाब लगा कर घूमते हैं वे सिर्फ बागों की जानकारी तक सीमित है, वे कभी भी खेती और उस पर जिंदा रहने वाले किसानों की समस्या को नहीं समझ सकते. नेहरू पर अपरोक्ष रूप से हमला करते हुए इस तरह का एक तीखा बयान मोदी ने दिया. 4 दिसंबर को ‘द टेलीग्राफ़’ ने एक उपशीर्षक दिया, कहा- शायद वो, जो गुलाब की बजाए ‘नरेंद्र दामोदरदास सूट’ पहनते हैं, खेती के बारे में बेहतर समझते हैं.
मोदी ने ये टिप्पणी राजस्थान में एक चुनाव रैली के दौरान की थी. सब जानते हैं आरएसएस के प्रचारक इस तरह की शब्दावली का प्रयोग अपने व्याख्यानों में करते हैं. इसमें कुछ भी आसामान्य नहीं है. लेकिन इसमें सवाल ये उठता है कि पूर्ववर्ती नेताओं में सिर्फ नेहरू (शायद सभी तर्कशील) ही संघ या आरएसएस को क्यो चुभते हैं या सबसे ज़्यादा परेशान करते हैं.
सरदार पटेल देश के नेता नेहरु कांग्रेस के?
लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की विरासत को लेकर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच सियासी बवाल काफी टाइम से चलता नजर आ रहा है. जहां बीजेपी पर सरदार पटेल को किसी पार्टी का नहीं बल्कि देश का नेता मान कर आरोप लगा रही है कि कांग्रेस ने हर योजना से लेकर भवन तक का नाम सिर्फ एक परिवार के नाम पर रखा. कांग्रेस ने जितना अपमान सरदार पटेल का किया, उतना ही मान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल को दिया. सरदार पटेल महात्मा गांधी वाली कांग्रेस के नेता थे, जिसके लिए आजादी के बाद कांग्रेस को खत्म कर देना चाहिए. सरदार पटेल, इंदिरा-राजीव गांधी वाली हाथ छाप कांग्रेस के सदस्य नहीं थे.
पंडित नेहरु और गांधी
पंडित नेहरू और महात्मा गांधी की पहली मुलाक़ात 1916 में क्रिसमस के दिन हुई थी. उस दिन लखनऊ में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन चल रहा था. वह चार साल पहले ही इंग्लैंड से स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई कर भारत वापस लौटे थे. उस समय नेहरू 27 साल के थे और गांधी उनसे 20 साल बड़े यानी 47 के थे.
दोनों ने एक-दूसरे को कौतूहल से देखा जरूर, लेकिन एक-दूसरे से कोई खास प्रभावित न हुए. क्योंकि तबसे करीब छह-सात वर्ष बाद 1922 से 1924 के बीच जब गांधी ने अपनी आत्मकथा यानी ‘सत्य के प्रयोग’ बोल-बोल कर लिखाई थी, तो उसमें कहीं भी जवाहरलाल नेहरू का जिक्र नहीं किया. हां, उनके पिता मोतीलाल नेहरू की चर्चा उसमें अवश्य हुई है.
उस दौर में नेहरू यूरोपियन पोशाक पहना करते थे. हैरो और कैम्ब्रिज के संस्कार उन पर हावी थे. और स्वयं गांधी के शब्दों में, ‘उन दिनों वे थोड़े घमंडी थे, जबकि उनमें कोई खास बात नहीं थी.’ यूं तो बड़े नेहरू (मोतीलाल) और महात्मा गांधी विचार और जीवन-शैली के स्तर पर एक-दूसरे से एकदम भिन्न थे. फिर भी दोनों में कुछ-कुछ निकटता हो गई. शुरुआत में छोटे नेहरू थोड़े खिंचे-खिंचे ही रहते थे. वे गांधी को पहले ठीक से समझ लेना चाहते थे, क्योंकि आधुनिकतावादी युवा नेहरू को महात्मा गांधी की आध्यात्मिक भाषा कई बार ‘मध्ययुगीन’ और ‘पुनरुत्थानवादी’ प्रतीत होती थी.
नेहरु अपनी आत्मकथा में गांधी से अपनी पहली मुलाक़ात का जिक्र कुछ यूं किया ‘हम सब दक्षिण अफ्रीका में उनके वीरतापूर्ण संघर्ष के प्रशंसक थे, किन्तु हम में से बहुतेरे नवयुवकों को वे बहुत ही दूर और भिन्न और अराजनीतिक लगते थे.’ इधर गांधी लोगों के पारखी थे. वे भी खूब अच्छी तरह और सहानुभूतिपूर्वक परखते थे. उन्होंने नेहरू के इस शुरूआती चिड़चिड़ेपन को समझने की कोशिश की थी, और उन्हें जल्दी ही इसमें सफलता भी मिली. इसका कारण उन्होंने नेहरू के एकाकीपन में ढूंढ़ निकाला था, जो संभवतः सही भी था.
आखिरी वसीयत
“मैं चाहता हूं कि मेरी मुट्ठीभर राख प्रयाग के संगम में बहा दी जाए जो हिन्दुस्तान के दामन को चूमते हुए समंदर में जा मिले, लेकिन मेरी राख का ज्यादा हिस्सा हवाई जहाज से ऊपर ले जाकर खेतों में बिखरा दिया जाए, वो खेत जहां हजारों मेहनतकश इंसान काम में लगे हैं, ताकि मेरे वजूद का हर जर्रा वतन की खाक में मिलकर एक हो जाए.”
आज जब पूरा देश, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की 130वीं जयंती मना रहा है ऐसे में सवाल ये उठता है कि जितने महान स्वतंत्रता सेनानी सरदार पटेल को माना जा रहा है. उतना ही पंडित जवाहर लाल नेहरु को भी माना जाता है तो फिर आज सरदार पटेल को बीजेपी देश का नेता मान रही है तो फिर नेहरु को सिर्फ कांग्रेस का नेता क्यों मान रही है. दूसरा सवाल दोनो नेता एक दौर के ही हैं तो फिर सरदार पटेल से निकटा और पंडित नेहरु से दूरी क्यों ये सवाल आज भी बना हुआ है. और आज भी इस सवाल का जवाब मिलते हुए नजर नहीं आ रहा है.