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#Column: भाजपा की संकीर्ण सोच ने प्रतिपक्ष की भूमिका गौण की

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शंकरसिंह वाघेला: कोरोना वायरस की वजह से लागू तालाबंदी का प्रभाव अभी भी गुजरात और देश भर में जारी है. तालाबंदी के दौरान सरकार और विपक्ष दोनों को मैदान में आकर देश की जमीनी हालात को समझने की कोशिश करनी चाहिए थी. तालाबंदी की वजह से देश ने ऐसे हालात को देखा है जिसे हमेशा याद किया जाएगा. भारत को मजबूत बनाने वाले प्रवासी मजदूर अचानक से लागू की गई तालाबंदी से आज भी दो-चार हो रहे हैं. इस मुश्किल वक्त में भी सरकार लोगों को सिर्फ और सिर्फ मूर्ख बनाने का काम करती रही. ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को चाहिए था कि वह विपक्ष की मदद ले और अपील करे कि, वे स्वेच्छा से श्रमिकों की मदद करें और उन्हें घर पहुंचाने में मददगार बनें. संकट के ऐसे मुश्किल वक्त में लोगों की मदद के लिए बाहर निकलने वाले विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी और पुलिस दमन से साफ हो जाता है कि विपक्ष के लोग बाहर निकलकर लोगों की मदद नहीं करेंगे.

ऐसे समय में विपक्ष को राजनीतिक मुद्दों के अलावा अन्य मुद्दों की ओर सरकार का ध्यान दिलाना चाहिए. महामारी से कैसे बचा जाए, विशेषज्ञों के विचार और राय को सरकार तक पहुंचाकर विपक्ष अपनी सकारात्मक भूमिका निभा सकती है. देश को आने वाली महामंदी से बचाने के लिए सुझाव देना भी विपक्ष का कर्तव्य है. हालाँकि इन सुझावों को लागू करना या न करना ये सरकार को तय करना है, लेकिन दुख की बात तो ये है कि विपक्ष को उसकी भूमिका से निष्प्रभावी बनाने में बीजेपी सरकार का हाथ है. आज की सरकार विपक्ष को लगातार नजर अंदाज कर ये बताने की कोशिश कर रही है कि विपक्ष निकम्मी है और उसका अपना कोई अस्तित्व ही नहीं है. इसी तानाशाही मानसिकता की वजह से देश का विपक्ष आज अपाहिज- सा लग रहा है. विपक्षी दल राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय हैं लेकिन उनकी भूमिका पर तभी ध्यान दिया जाता है जब सरकार उनकी प्रभावशीलता को स्वीकार करती है. अगर सरकार विपक्ष को सुनने या उसकी बात मानने को तैयार ही ना हो तो फिर विपक्ष का होना, नहीं होने के बराबर है. सरकार उसी दिशा में काम करती है जिसका विपक्ष विरोध करती है. विपक्ष असल भूमिका अदा करने की कोशिश करते हुए सरकार को अगर कुछ अच्छा करने की सलाह देती है तो भी सत्ताधारी पार्टियां उस सुझाव और सलाह को नजरअंदाज कर देती हैं. क्योंकि उन्हे लगता है कि इससे अगर देश का कुछ भला हो जाएगा तो लोग विपक्ष की महिमामंडन करने लगेंगे.

केंद्र की सत्ता पर बैठी भाजपा की इसी संकीर्ण मानसिकता की वजह से विपक्ष अप्रभावी हो रहा है. सत्ताधारी सरकार को ये सोचकर काम करना चाहिए कि आज विपक्ष में बैठने वाली पार्टी कल उनसे सत्ता छीनकर सल्तनत हासिल कर सकती है. इन पहलुओं को देखते हुए सरकार को विपक्ष के महत्व पर भी विचार करना चाहिए. लेकिन केंद्र की सत्ता पर बैठी भारतीय जनता पार्टी विपक्ष को जनहित में काम करने का मौका देने के बजाय विपक्ष के अस्तित्व को ही मिटाने की कोशिश कर रही है. ऐसी मानसिकता के साथ आज की सरकार और भारतीय जनता पार्टी आगे बढ़ रही है. केंद्र में बैठी बीजेपी सरकार किसी भी हिसाब से विपक्ष को तोड़कर सत्ता हासिल करने की कोशिश करती रही है. इसका उदाहरण हरियाणा, मध्य प्रदेश, गोवा आदि राज्यों में देखने को मिल रहा है.

इस नीति से विपक्ष को भले ही तोड़ने में कामयाबी मिल जाए. परंतु यह सब देखने के बाद जनता लामबंद होगी और उनके मतो का ध्रुवीकरण होगा. कुछ समय बाद लोग भाजपा के बारे में सोचेंगे कि, हमने भाजपा को वोट दिया और सरकार सौंप दी, लेकिन भाजपा विपक्ष के रूप में काम कर रहे नेताओं को खरीद रही है. भाजपा को झटका देना चाहिए. भाजपा विपक्षी नेताओं को खरीद सकती है, लेकिन ऐसी स्थिति में लोग खुद विपक्ष की भूमिका में आ जाएंगे, और राज्य एंव केंद्र में शासित सत्ताधारी पार्टी से कहेंगे कि अब किसी भी हालत में आपका शासन नहीं चाहिए.

(विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं. शंकरसिंह वाघेला “बापू” गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं और 50 साल से राजनीति में सक्रिय हैं.)

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