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चीन में अब ‘काली मौत’ का साया, ब्यूबानिक प्लेग से पहले भी हुई हैं करोड़ों मौतें

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दुनिया को कोरोना महामारी से त्रास्त करने वाले चीन में एक और घातक बीमारी फैलने का खतरा पैदा हो गया है. उत्तरी चीन के एक शहर में रविवार को ब्यूबानिक प्लेग का संदिग्ध मामला सामने आया है. इसके बाद अलर्ट जारी किया गया है. स्थानीय खबरों के मुताबिक, ब्यूबानिक प्लेग का संदिध मामला बयन्नुर के एक अस्पताल में शनिवार को सामने आया.

चीन के सरकारी पीपुल्स डेली ऑनलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, आंतरिक मंगोलियाई स्वायत्त क्षेत्र, बयन्नुर ने प्लेग की रोकथाम और नियंत्रण के लिए तीसरे स्तर की चेतावनी जारी की. ब्यूबानिक प्लेग को काली मौत के नाम से भी जाना जाता है जो इससे पहले कई मौकों पर फैलकर करोड़ों लोगों की जान ले चुका है.

मध्य काल की ‘काली मौत’

पिछले साल नवंबर में भी चीन में इसके चार केस मिले थे. अधिकतर चूहों से फैलने वाला यह प्लेग बेहद ही संक्रामक है और अक्सर जानलेवा साबित होता है. मध्य काल में इस बीमारी को काली मौत के नाम से जाना जाता था. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक प्लेग एक संक्रामक रोग है, जो एक जूनोटिक बैक्टिरिया यर्सिनिया पेस्टिस के कारण होता है.

कैसे फैलता है संक्रमण

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, ब्यूबोनिक प्लेग सबसे कॉम प्लेग है जो संक्रमित पिस्सू के काटने से होता है. रोग कीट संक्रमित पिस्सू के काटने से मानव शरीर में प्रवेश करता है और लिंम्फैटिक सिस्टम के जरिए ट्रैवल करता है. यह सबसे नजदीकी लिम्फ नोड में जाकर विस्तार करता है. इससे लिंम्फ नोड में सूजन आ जाता है और यह दर्द होता है. संक्रमित पिस्सू के काटने से यह संक्रमण मानव तक पहुंचता है. शरीर से निकलने वाले संक्रमित तरल के संपर्क में आने या न्यूमानिक से संक्रमित व्यक्ति के ट्रॉपलेट्स के द्वारा यह दूसरे व्यक्ति तक पहुंचता है. न्यूमानिक संक्रमित व्यक्ति का ड्रॉपलेट रेस्पिरेटरी सिस्टम में सांस के द्वारा प्रवेश करने पर दूसरा व्यक्ति संक्रमित होता है.

1300 ई. यूरोप में बरपाया था कहर

मध्य काल में इस बीमारी को ब्लैक डेथ यानी काली मौत के नाम से जाना जाता था. तीन बार यह बीमारी बड़े पैमाने पर फैली और करोड़ों लोगों की मौत हो गई. 1300 ई. में यूरोप की एक तिहाई आबादी की मौत हो गई थी. माना जाता है कि यह जीवाणु दक्षिणपश्चिम चीन के यून्नान में पैदा हुआ और तीसरा प्लेग 1894 में फैला. उसके बाद से यह दुर्लभ ही रहा है. 2010 से 2015 के बीच 3,248 केस दुनियाभर में सामने आए, जिससे 584 लोगों की मौत हुईं.

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