शंकर सिंह वाघेला: आंकड़ों और तथ्यों को छिपाना भाजपा की पुरानी आदत है. जिन आंकड़ों और तथ्यों के हकीकत से लोगों के बीच सरकार की नकारात्मक छवि उत्पन्न होती है ऐसे हकीकत को छिपाने में इस पार्टी ने महारत हासिल की है. हकीकत को छिपाना, अगर कुछ अच्छा किया है तो उसका जमकर प्रचार-प्रसार करना, कुछ नहीं करने के बाद भी घोषणाएँ करना भाजपा की परंपरा है. सिर्फ मार्केटिंग पर जीने वाली यह पार्टी आम लोगों के लिए घातक साबित होगी. कोरोना के मरीज इन दिनों लगातार मर रहे हैं. समय पर परीक्षण और उपचार से लोगों की जान बचाई जा सकती है. तो फिर सरकार ज्यादा परीक्षण करने से क्यों हिचक रही है?
अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में सरकार की लापरवाही ऐसी थी कि उच्च न्यायालय की बेंच को सिविल अस्पताल के निरीक्षण पर आने की धमकी दी है. कोरोना महामारी में अधिकारी नेताओं को खुश करने में व्यस्त हैं. मरीजों का जो होना है वह हो. अधिकारी केवल सरकार और उसके हितों की रक्षा पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. एशिया और गुजरात का सबसे बड़ा अस्पताल कोरोना मरीजों का कब्रगाह बन गया है. ऐसा कहने में अतिशयोक्ति नहीं है. निजी प्रयोगशालाओं में भी कोरोना परीक्षण को लेकर प्रतिबंध लगा दिया गया है. यदि किसी व्यक्ति को कोरोना नहीं है तो वह निःसंदेह जी सकता है. अगर किसी को शंका है कि उसे कोरोना है या नहीं तो वह खुद के खर्च से निजी प्रयोगशाला में परीक्षण करवा सकता है या नहीं? यदि कोरोना नहीं है तो वह निश्चिंत होकर रह सकता है. इस तरह का निश्चिंत होने का अधिकार नागरिकों को क्यों नहीं है? यदि निजी लैब में परीक्षण की अनुमति दी जाती है तो मामले का निदान प्रारंभिक अवस्था में किया जा सकता है.
इस प्रकार पूरा सिस्टम ध्वस्त हो गया है. चूंकि यह शासन भारी बहुमत से चुने गए प्रतिनिधियों का होने की वजह से इस परिस्थिति को भोगने के अलवा कोई अन्य विकल्प नहीं है. लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अभी लंबा वक्त है. वहां तक लोगों के पास शिकायत करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. तब तक लोग कोरोना या अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण जीवन और मृत्यु के बीच झूला झूलते रहेंगे. सरकार की अक्षमता और सिस्टम की मूर्खता के कारण गुजरात कोरोना के डर के साए में जी रहा है.
(विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं. शंकरसिंह वाघेला “बापू” गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं और 50 साल से राजनीति में सक्रिय हैं.)
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