जोनल डिवीजन के अनुसार, मध्य-पूर्व गुजरात की छोटा उदयपुर सीट चुनाव आयोग द्वारा 137 सीट क्रमांक है. गुजरात को अलग राज्य का दर्जा मिलने के बाद पहले चुनाव में ओपन कटैगरी की यह सीट तब से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट का दर्जा हासिल किया है. छोटा उदयपुर के अलावा पावी जेतपुर के 91 गांवों को मिलाकर इस निर्वाचन क्षेत्र में कुल 2,65,7260 मतदाता हैं.
मिजाज
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित यह सीट कांग्रेस की गढ़ मानी जाती है. यहां पिछले 11 विधानसभा चुनावों में से 9 बार कांग्रेस प्रत्याशी ने जीत हासिल की है. गुजरात भले ही बीजेपी का गढ़ है, लेकिन बीजेपी अभी भी इस सीट पर अपने संगठन को मजबूत नहीं कर पाई है. यहां राठवा परिवार के तीन दिग्गजों की मजबूत पकड़ है. इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री नारण राठवा, मौजूदा विधायक मोहनसिंह राठवा और विधानसभा में विपक्ष के मौजूदा नेता सुखराम राठवा शामिल हैं. दिलचस्प बात यह है कि तीनों नेता एक-दूसरे के करीबी हैं लेकिन कभी-कभी राजनीति में आमने-सामने भी आ जाते हैं.
रिकॉर्ड बुक
साल | विजेता | पार्टी | मार्जिन |
1998 | सुखराम राठवा | कांग्रेस | 7403 |
2002 | शंकरभाई राठवा | भाजपा | 29023 |
2007 | गुलसिंग राठवा | भाजपा | 6118 |
2012 | मोहन सिंह राठवा | कांग्रेस | 2305 |
2017 | मोहन सिंह राठवा | कांग्रेस | 1093 |
कास्ट फैब्रिक
अनुसूचित जनजाति की बड़ी संख्या वाली इस सीट पर राठवा, गावित, गामित और निनामा आदिवासी समुदाय महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. चूंकि यह लोग जूथ में वोट देने के आदी हैं इसलिए उनके वोट निर्णायक होते हैं. इसके अलावा मुस्लिम, दलित समुदाय भी अच्छी संख्या में हैं.
समस्या
खनिज संपदा से समृद्ध होने के बावजूद भी यह क्षेत्र आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है. शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के खिलाफ अभी भी व्यापक शिकायतें हैं. स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर कम होने के कारण युवा बड़ी संख्या में वडोदरा की ओर पलायन कर रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों से उचित योजना नहीं होने से पेयजल की समस्या भी विकराल हो गई है. औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्रों के माध्यम से रोजगार बढ़ाने के दावों के खिलाफ हकीकत यह है कि बड़े उद्योग नहीं आए हैं और विशेष आर्थिक क्षेत्रों की घोषणाएं भी कागजों पर ही रह गई हैं.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
मोहन सिंह राठवा इस क्षेत्र के एक दिग्गज राजनेता हैं. सबसे ज्यादा बार विधायक बनने का रिकॉर्ड उनके नाम है. लेकिन पिछले चुनाव में उन्होंने बीजेपी के जशु राठवा के खिलाफ महज 1093 वोटों के मामूली अंतर से जीत हासिल की थी. 78 साल के हो रहे मोहन सिंह जनसंपर्क भी कम होता जा रहा है. अब उन्होंने खुद चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है. बावजूद इसके क्षेत्र में वोट आकर्षित करने के लिए उनका नाम अभी भी महत्वपूर्ण है.
प्रतियोगी कौन?
इस बार कांग्रेस के ही दो मुख्य दावेदार हैं. यदि मोहन सिंह चुनाव नहीं लड़ते हैं तो उनके स्थान पर उनके पुत्र राजेंद्र सिंह राठवा का नाम सबसे आगे चल रहा है. लेकिन छोटा उदयपुर नगर पालिका अध्यक्ष संग्रामसिंह भी इस दावेदारी में आगे चल रहे हैं. वह पूर्व केंद्रीय मंत्री नारन राठवा के बेटे हैं. दोनों दिग्गज एक दूसरे के रिश्तेदार हैं. अगर उनके बीच कोई समझौता होता है तो कांग्रेस इस सीट के लिए निश्चिंत हो सकती है. दूसरी ओर, संभावना है कि जशु राठवा फिर से भाजपा से मनोनीत होंगे. जिला पंचायत, तालुका पंचायत में बीजेपी ने कांग्रेस को भारी हार दी है और बीजेपी पिछला विधानसभा चुनाव मामूली अंतर से हार गई थी. ऐसे में इस बार बीजेपी को कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाने की उम्मीद है.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी ने यहां भी पैर जमा लिया है लेकिन संगठन और नेतृत्व की कमी अभी भी इसमें बाधा डालती है. जिसे देखते हुए चुनाव के समय तक आम आदमी पार्टी महत्वपूर्ण कारक बने ऐसा नहीं लगता है. भारतीय ट्राइबल पार्टी के छोटूभाई वसावा भी यहां उम्मीदवार उतार सकते हैं लेकिन आदिवासी इलाका होने के बावजूद यहां छोटूभाई वसावा का ज्यादा प्रभाव नहीं है. इसीलिए आखिर में तय है कि यहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच जंग होगी.
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