गुजरात के नवसारी विधानसभा में तालुका के 35 गांव और गणदेवी तालुका के 27 गांव शामिल हैं. कुल 2,49,992 मतदाताओं वाली इस सीट पर नवसारी शहर के मतदाताओं की संख्या करीब सवा लाख है, इसलिए इस सीट को मुख्य रूप से शहरी सीट माना जाता है. 1980 के बाद यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थी. लेकिन 2017 में नए परिसीमन के बाद फिर से सामान्य सीट में शामिल हो गई. चूंकि नवसारी सूरत से बिल्कुल सटा हुआ है, इसलिए सूरत के राजनीतिक मिजाज का यहां सीधा प्रभाव पड़ता है. नवसारी को मिनी इंडिया भी कहा जाता है क्योंकि यहां देश के दस से अधिक प्रांतों के लोग रहते हैं.
मिजाज:
नवसारी सीट पर शहरी मतदाताओं की संख्या करीब आधी है. नतीजतन, नवसारी, गुजरात के अन्य शहरी क्षेत्रों की तरह, पिछले पैंतीस वर्षों से भाजपा का गढ़ रहा है. सूरत के ज़री और कढ़ाई के साथ-साथ निर्माण उद्योगों से जुड़े लोग नवसारी और आसपास के क्षेत्रों में रहते हैं. जिसकी वजह से इस सीट पर बड़ी संख्या में प्रवासी वोटर हैं. इसीलिए इस सीट को मिनी इंडिया भी कहा जाता है. नवसारी द्वारा दिखाया गया रवैया समग्र रूप से भारत के रवैये का प्रतिबिंब माना जाता है. नवसारी सीट इस लिहाज से भी खास है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल ने साढ़े पांच लाख वोटों के अंतर से सांसद के तौर पर नवसारी लोकसभा सीट जीती है. तालुका पंचायत, नगर पालिका में भी बीजेपी का दबदबा है.
रिकॉर्ड बुक
साल | विजेता | पार्टी | मार्जिन |
1998 | मंगूभाई पटेल | भाजपा | 14112 |
2002 | मंगूभाई पटेल | भाजपा | 3838 |
2007 | मंगूभाई पटेल | भाजपा | 12083 |
2012 | पीयूषभाई देसाई | भाजपा | 15981 |
2017 | पीयूषभाई देसाई | भाजपा | 46095 |
कास्ट फैब्रिक
पचरंगी आबादी वाली नवसारी सीट पर मराठी, राजस्थानी, उड़िया और बिहारी मूल के प्रवासियों की आबादी लगभग 40% है. गुजराती मतदाताओं में कोली समुदाय सबसे प्रभावशाली है. उसके बाद अनाविल, मुस्लिम और आदिवासी समुदायों की भी अच्छी खासी आबादी है. चूंकि अधिकांश प्रवासी मतदाता भाजपा के समर्थक हैं, इसलिए यह सीट हमेशा भाजपा ने जीती है. 1985 के बाद से यहां कांग्रेस का कोई भी उम्मीदवार नहीं जीता है. भाजपा के दिग्गज नेता और अब मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने इस सीट से पांच बार जीत हासिल की थी, जब यह आदिवासी आरक्षित सीट थी. प्रवासियों के अलावा अनाविल समुदाय को भी बीजेपी का समर्थक माना जाता है. जबकि आदिवासियों और कोली समुदाय का रवैया प्रत्याशी के हिसाब से बदलता रहता है.
समस्या:
भाजपा का गढ़ होने के बावजूद नवसारी में खराब सड़कों, सीवरेज और खासकर शहरी नियोजन की व्यापक शिकायतें हैं. छोटा शहर होने के बावजूद ट्रैफिक की समस्या काफी जटिल है. इस क्षेत्र के विकास के लिए जहां रेलवे एक महत्वपूर्ण कारक है, वहीं विभिन्न ट्रेनों के ठहराव को लेकर हमेशा मांग रहती है. पंद्रह साल से नवसारी-बिलिमोरा-गणदेवी ट्रेन की मांग पूरी नहीं की गई है. चूंकि स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा नहीं होते हैं, इसलिए नवसारी के लोगों को सूरत आश्रित रहना पड़ता है. रेलवे अंडरपास या फ्लाईओवर का निर्माण नहीं होने से शहर की दो मुख्य सड़कों पर जाम की समस्या स्थायी है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
पीयूषभाई देसाई इस सीट से दो बार से जीत रहे हैं. स्थानीय स्तर पर उनका संपर्क काफी मजबूत हैं और संगठन पर सीआर पाटिल के प्रभाव से उन्हें सीधे लाभ होता है. पिछले चुनाव में उन्होंने करीब 46 हजार वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी, जो नवसारी सीट के इतिहास की सबसे बड़ी जीत थी. पीयूष देसाई को भूपेंद्र पटेल की मौजूदा कैबिनेट में भी जगह मिलने की उम्मीद थी. उनके पिता दिनकर देसाई भी इस सीट से कांग्रेसी विधायक रह चुके हैं. मौजूदा भाजपा विधायक पीयूषभाई रेलवे फ्लाईओवर के लिए अनुमोदन प्राप्त करने और नवसारी को आत्मनिर्भर बनाने के अपने वादों को पूरा करने में विफल रहे हैं.
कौन है प्रतियोगी?
अगर बीजेपी में नो रिपीट थ्योरी लागू नहीं होती है तो पीयूष देसाई की उम्मीदवारी तय मानी जा रही है. पिछले चुनाव में उन्हें जिस मार्जिन से कामयाबी मिली थी उससे भी उनकी उम्मीदवारी मजबूत होती है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पाटिल के खिलाफ कोली उम्मीदवार को मौका दिया था. तभी से कोली वोटरों का रुझान कांग्रेस की तरफ माना जा रहा है. ऐसे में संभावना है कि कांग्रेस लोकसभा उम्मीदवार धर्मेश पटेल को एक और मौका देगी. लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी धर्मेश पटेल ने स्थानीय स्तर पर जनसंपर्क बनाए रखा है. कांग्रेस की प्रदेश महिला अध्यक्ष जेनीबेन ठुम्मर ने यहां लगातार दौरे कर इस सीट पर कांग्रेस समर्थक माहौल बनाने की कोशिश की है. लेकिन कांग्रेस इस बार भी जमीनी संगठन और प्रवासी नेतृत्व की कमी का सामना करेगी.
तीसरा कारक:
शहरी क्षेत्र होने के कारण यहां भी आम आदमी पार्टी अपना प्रभाव बढ़ा रही है. आम आदमी पार्टी के नेता लगातार सूरत का दौरे कर रहे है जिसकी वजह से पार्टी को लेकर सकारात्म माहौल बन रहा है. लेकिन जमीनी स्तर के संगठन की कमी के कारण भाजपा से नाराज वोटरों को अपने खेमे में लाना मुश्किल माना जा रहा है. हालांकि, अगर आम आदमी पार्टी एक जाना-पहचाना चेहरा चुनावी मैदान में उतारती है तो वह भाजपा को चुनौती दे सकता है.
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