कोरोना संकट के बीच अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी और सिविल सोसायटी ऑर्गनाइजेशन के सर्वे में देश में रोजगार के मोर्चे पर चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. लॉकडाउन के बीच सर्वे में पता चला है कि दो-तिहाई से ज्यादा लोगों के पास रोजी-रोटी का जरिया खत्म हो गया है.
वहीं, जिन लोगों के पास रोजगार बचा है, उनकी कमाई में भारी कमी आई है. आलम यह है कि आधे से ज्यादा घरों में कुल कमाई से हफ्ते भर का जरूरी सामान खरीदना भी मुश्किल हो रहा है. शोधकर्ताओं के मुताबिक, लॉकडाउन की वजह से न सिर्फ बड़ी कंपनियों में कामकाज ठप हुआ है, बल्कि उसके सहारे चल रहे स्वरोजगार के तमाम धंधे भी बंद होते जा रहे हैं. यह चिंता की ज्यादा बड़ी वजह है.
4000 मजदूरों पर रायशुमारी
सर्वे में आंध्र प्रदेश, बिहार, दिल्ली, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल के करीब 4000 मजदूर शामिल हुए. शोधकर्ताओं ने मजदूरों से उनकी माली हालत और फरवरी से लेकर लॉकडाउन के दौरान हो रही कमाई के बारे में सवाल पूछे. स्वरोजगार से जुड़े लोगों, दिहाड़ी मजदूरों और सामान्य नौकरीपेशा मजदूरों से भी बातचीत की गई.
शहर और गांव की तुलना
शोधकर्ताओं के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी का आंकड़ा शहरों से थोड़ा कम है. यहां लगभग 57 फीसदी यानी हर दस में से छह लोग प्रभावित हुए हैं. वहीं शहरों की स्थिति ज्यादा खराब है. शहरों में हर दस में से आठ लोग रोजगार छिन गया है. यानी 80 फीसदी लोग बेरोजगार हो गए हैं.
गैर-कृषि क्षेत्र में कमाई 90 फीसदी घटी
सर्वे से यह भी पता चला है कि जिन लोगों के पास रोजगार बचा है, उनकी आमदनी प्रभावित हुई. गैर-कृषि क्षेत्र में काम करने वालों की आमदनी 90 फीसदी घटी है, पहले जहां वे हर हफ्ते औसतन 2240 रुपये कमा लेते थे, अब कमाई महज 218 रुपये ही रह गई. जो दिहाड़ी कामगार फरवरी महीने में हर हफ्ते औसतन 940 रुपये कमा लेता था, उसकी आमदनी करीब आधी हो गई है
छह माह का राशन दें
सर्वे के सुझाव में कहा गया है कि सभी जरूरतमंदों को कम से कम अगले छह महीने तक मुफ्त राशन देने का बंदोबस्त किया जाना चाहिए
साथ ही ग्रामीण इलाकों में मनरेगा का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि वहां रह रहे ज्यादा से ज्यादा लोगों को काम मिल सके
यूनिवर्सिटी ने जरूरतमंदों की पहचान कर उनके खाते में कम से कम दो महीने सात-सात हजार रुपये डालने का इंतजाम करने की सलाह दी है
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