दीपक मसला, अहमदाबाद: देश में बढ़ रहे कोरोना की बढ़ती महामारी को लेकर 21 दिनों की तालाबंदी लागू की गई है. इस लंबे तालाबंदी की वजह से जहां दिहाड़ी मजदूर से लेकर, किसान आर्थिक तंगी की मार से झेल रहे हैं वहीं दूसरी तरफ गुजरात के 7 लाख लॉरी, गल्ला और पथारा लगाने वाले गरीब मजदूर अब हतास और परेशान हो गए हैं. इस तालाबंदी के बीच वैसे तो सरकार दावा कर रही है कि लोगों को डरने की जरुरत नहीं. लेकिन ये 7 लाख परिवार आज अपनी जीवन जरुरत की चीज जैसे दूध, दवा और सब्जियों को खरीदने के लिए वित्तीय सहायता की उम्मीद लगाकर रुपाणी सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं.
लॉरी, गल्ला और पथारा लगाकर अपनी जिंदगी की गाड़ी चलाने वाले गरीब मजदूर हर दिन पैसा कमा कर अपने परिवार की आजीविका चलाते हैं. ये गरीब और असहाय लोग तालाबंदी की वजह से बड़ी समस्या का सामना कर रहे हैं. वे घर से बाहर पैसा कमाने जा नहीं सकते इसकी वजह से परिवार के लिए आवश्यक चीज वस्तु भी नहीं ला सकते. असंगठित मजदूर संघ के अध्यक्ष अशोक पंजाबी इस सिलसिले में जानकारी देते हुए कहते हैं कि सरकार को देश में रहने वाले लगभग 40 करोड़ श्रमिकों को लेकर विचार करना चाहिए. अहमदाबाद में रहने वाला श्रमिकों का परिवार तालाबंदी के नियमों का पालन तो कर रहा है लेकिन वह भूख को कैसे बर्दाश्त करेगा.
लॉरी गल्ला श्रमिक संघ के सह-समन्वयक पूंजाभाई देसाई ने कहा, “निगम के अधिकारियों ने बैंक खाते और फोन नंबर का विवरण मांगकर दावा किया था कि वे सीधे खाते में भुगतान कर देंगें, लेकिन तालाबंदी का इतना लंबा वक्त गुजर गया अभी तक निगम के अधिकारियों का वादा पूरा नहीं हुआ. राज्य में लगभग 7 लाख लोग और अहमदाबाद में 1.50 लाख लोग लॉरी गल्ला और पथारा लगाकर अपनी आजीविका को चलाते हैं. शुरुआत में ये मजदूर फोन कर मदद की मांग नहीं करते थे, लेकिन अब ये लोग फोन कर मदद की मांग कर रहे हैं. लंबे तालाबंदी की वजह से हमारे जैसे श्रमिकों के जीवन में कई परेशानियां आ चुकी हैं. राज्य सरकार ने भोजन के लिए अनाज तो दे दिया है लेकिन दूध, दवा और सब्जियों जैसे दैनिक खर्च के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता आज भी इन लोगों की पूरी नहीं हो रही.
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