विशाल मिस्त्री राजपीपणा: कोरोना के बढ़ते कहर के बीच लोग जी रहे हैं. लॉकडाउन( तालाबंदी) के बाद लोगों की जिंदगी बिखर सी गई है. तालाबंदी की वजह आई वैश्विक आर्थिक मंदी से लोगों की कमर तोड़ दी है. जहां एक तरफ दिहाड़ी मजदूर से लेकर किसान परेशान नजर आ रहे हैं वहीं दूसरी तरफ गुजरात के नर्मदा जिले में तबेला के धंधे से जुड़े लोग भी परेशान नजर आ रहे हैं. नर्मदा जिला में करीब 50 छोटे-मोटे तबेला हैं. यहां के पशुपालक परेशान नजर आ रहे हैं क्योंकि जनवरों को खिलाने के लिए घासचारा दूसरे राज्य से आता था जो तालाबंदी की वजह से बंद हो गया है. ऐसे में भरपेट खाना नहीं मिलने से जानवर अब दूध कम दे रहे हैं जिससे हर रोज पशुपालकों को बड़ा वित्तीय घाटा हो रहा है.
भरुच-नर्मदा के सर्वश्रेष्ठ पशुपालन और 11 अन्य राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता नरपति सिंह हरिसिंह नियोरिया ने गुजरात एक्सक्लूजिव के साथ बातचीत करते हुए कहा कि मवेशियों के लिए चारा राजस्थान और मध्य प्रदेश से आता था. जो अब बंद हो चुका है. हर दिन मवेशियों को खिलाने के लिए 150 मन चारे की जरुरत पड़ती है. हमने जो चारा स्टॉक किया गया था वह भी समाप्त हो गया. अन्य चारा खेत में उगाया गया लेकिन उसे तैयार होने में अभी वक्त लगेगा. मवेशी इन दिनों पड़ने वाली गर्मी और खास,चारा नहीं मिलने की वजह से दिन ब दिन कमजोर पड़ रहे हैं. पहले, 15,000 लीटर दूध आता था जो आज घटकर 3500 लीटर हो गया है. तबेला में काम करने वाले लोगों के मजदूरी का भी पैसा नहीं निकल रहा.
नर्मदा जिले के करांठा के पशुपालक किरण पटेल ने कहा कि महाराष्ट्र से मवेशियों को खिलाने के लिए चारा आता है. चूंकि महाराष्ट्र में कोरोना के बढ़ते मामले को लेकर कर्फ्यू लगा दिया गया है. परिवहन सेवा बंद होने की वजह से घास चारे का दाम बढ़ गया है. लॉकडाउन पहले 1100 रुपया मन मिलने वाला दाना आज बाजार में 1600 रुपये में मिल रहा है. मुझे अपनी भैंस को जीवित रखने के लिए दाना तो खिलाना ही पड़ेगा. लेकिन इन दिनों मवेशियों को जितना खिलाया जा रहा है उससे भी कम दूध मिल रहा है. वहीं दूसरी तरफ भचारवाड़ के चंद्रकांत पटेल ने कहा, “मैं पिछले दो साल से गौशाला चला रहा हूं. इन दिनों मेरे पास 16 गाय बच्चों के साथ हैं. इस मुश्किल वक्त में दाना मिल नहीं रहा लेकिन गायों को खिलाने के लिए हमने हमारे खेत में चारा बोया था उसी से इन दिनों हमारा काम चल रहा है. लेकिन वह भी अब खत्म होने की कगार पर है अगर तालाबंदी खत्म हो जाए और घास चारा मिलने लगे तो ही हम जनवरों को पाल सकेंगे.
नर्मदा जिले के डेडीयापाड़ा में मौजूद दाना कारखाना से मदद : डॉ. कुलदीप व्यास (उप प्रबंधक, भरूच दूधधाराडेयरी)
तालाबंदी की वजह से मवेशियों को खिलाने के लिए दूसरे राज्यों से दाना नहीं आ रहा. जिसकी वजह से नर्मदा-भरूच जिला के 100 से 150 तबेला पशुपालकों के लिए डेडियापाड़ा में मौजूद दाना का कारखाना आशीर्वाद बन गया है. इस सिलसिले में दूधधारा डेयरी के उप प्रबंधक कुलदीप व्यास का कहना है कि तालाबंदी की वजह से अन्य राज्यों से दाना नहीं आ रहा है. ऐसे में हमारी फैक्ट्री दोनों जिलों में मवेशियों के लिए अनाज उपलब्ध करा रही है. पशुपालक अधिकारी डॉक्टर दवे कहते हैं कि अन्य राज्यों से दाना और चारा लाने के लिए सरकार ने दो दिन पहले वाहनों के आने जाने की अनुमति दे दी है.
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