गुजरात सरकार ने शुक्रवार को कहा कि कोरोना वायरस के प्रकोप से निपटने के लिए लगाए गए 21 दिन के लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों को भोजन और आवास दिया जाएगा, लेकिन उन्हें अपने गांवों की यात्रा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी. यह फैसला सीएम विजय रुपाणी की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिया गया. मुख्यमंत्री कार्यालय में सचिव अश्विनी कुमार ने कहा, ‘यह निर्णय लिया गया है कि किसी भी प्रवासी मजदूर को पैदल जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी. जिला प्रशासन को उनके भोजन और आवास की व्यवस्था करने के लिए कहा गया है. प्रवासी श्रमिकों के लिए संपर्क करने में मदद के लिए एक विशेष नंबर- 1077 तय किया गया है. बावजूद इसके आज भी गुजरात के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले गरीब मजदूर पलायन को मजबूर हो रहे हैं. पलायन कर रहे ज्यादातर लोगों का कहना है कि जो दावा किया जा रहा है मदद उसके मुकाबले न के बराबर मिल रही है.
वलसाड के कलेक्टर सी आर खरसाण ने कहा कि अगर वे अपने गांवों की यात्रा करते पाए जाते हैं तो प्रवासी श्रमिकों और उनके नियोक्ताओं के खिलाफ मामले दर्ज किए जाएंगे. खरसाण ने कहा, ‘प्रवासी मजदूरों को काम पर रखने वाले नियोक्ताओं या ठेकेदारों को उन्हें 21 दिन का वेतन और भोजन देना होगा. यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो प्रवासी श्रमिक हेल्पलाइन नम्बर 1077 पर संपर्क कर सकते हैं. लेकिन अगर कोई भी अपने गांवों की यात्रा करने की कोशिश करता है, तो पुलिस उन व्यक्तियों और उनके नियोक्ताओं के खिलाफ मामला दर्ज करेगी.’
संपूर्ण तालाबंदी के ऐलान के बाद से देखने में आया है कि कई दिहाड़ी मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है और पैसों की कमी के चलते उनके लिए अपना गुजारा करना भी मुश्किल हो गया है. सार्वजनिक परिवहन बंद होने के कारण कई लोग पैदल यात्रा करते हुए देखे गए हैं.
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