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भारत के लिए कोरोना चुनौती नहीं, अवसर है

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परिमल नथवाणी, अहमदाबाद: पूरी दुनिया आज कोरोना महामारी से परेशान है. अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित समाजों को इसने अपंग बना दिया है. इस परिस्थिति में भी जिस तरीके से भारत कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा वह अन्य देशों के सामने एक उदाहरण स्थापित कर रहा है. कोरोना की वजह से दुनिया भर में आर्थिक मंदी और राजनीतिक उथल-पुथल का संकेत मिल रहे हैं. कोरोना की वजह से न्युनतम मृ्त्युदर हो, न्युनतम संक्रमण हो और अधिकतम लोग इस बीमारी से स्वस्थ हों. यह सभी सरकारों की प्राथमिकता होना स्वाभाविक है. इसमें कुछ भी गलत नहीं और सरकार की कार्रवाईयों में यही झलक दिख रही है. इसमें शंका की कोई गुंजाइश नहीं है.

रिलायंस संस्थापक धीरूभाई अंबानी बार-बार ‘प्रतिकूल’ परिस्थिति को ‘अवसर’ में बदलना सिखाते थे. विपत्ति से अवसर निकालना, प्रतिकूलता को अनूकूलता में बदलना रिलायंस के प्रबंधन का मंत्र है. धीरूभाई और मुकेशभाई अंबानी ने इसको हमेशा साकार भी किया है. लेकिन अभी हम कोरोना से उपजी चुनौतियों और उसके प्रतिकूल असर के बारे में बात कर रहे हैं.

कोरोना का झटका दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा. 3 ट्रिलियन डॉलर का भारतीय अर्थव्यवस्था पर लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर का झटका लगेगा. जिसकी वजह से हमारी जीडीपी घटकर 1.9 से 1.6 हो जाएगी ऐसा विशेषज्ञों का मत है. हालांकि कोरोना महामारी से पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था कमजोर थी. कोरोना महामारी ने गिरती अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका देने का काम किया है. लेकिन यह स्वाभाविक है कि जब मानव जीवन को बचाने की बात आती है तब अर्थव्यवस्था गौण हो जाता है. हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था और राजतंत्र की बुनियाद इतनी मजबूत है कि ऐसे झटकों को झेल कर वह आसानी से उबर आएगी.

कोरोना की वजह से पश्चिमी अर्थव्यवस्था को जितना बड़ा झटका लगा है. उतना भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों को नहीं लगा है. कोरोना की वजह से चीन के विरोध में वैश्विक मत स्थापित हो रहा है. इसका फायदा भारत को मिल सकता है. “मेक इन इंडिया” या “डिजिटल इंडिया” जैसी नीतियों को और अधिक परिष्कृत करके इज ऑफ डूइंग बिजनेस ’को और अधिक आकर्षक बनाया जा सकता है. इसलिए वैश्विक पूंजी का प्रवाह भारत के ओर मुड़ सकती है और भारत वैश्विक विनिर्माण का केंद्र बन सकता है.

अमेरिकी और जापानी कंपनियों ने चीन से बाहर निकलने का मन बना लिया है, और उन देशों की सरकारें चीन छोड़ने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहीं हैं. इस मौके को कैसे अवसर में बदलना है इसका फैसला सरकार को करना है. हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के उत्पादन और निर्यात को लेकर भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम इस दिशा में एक बड़ी पहल है. जियो के साथ फेसबुक का 5.7 बिलियन (43,574 करोड़ रुपये) का सौदा भारतीय अर्थव्यवस्था और डिजिटल कारोबार को एक नई दिशा देगा. इसके कारण भारतीय शेयर बाजार में 743 अंकों की वृद्धि हुई जिसे अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में बड़ा योगदान कहा जा सकता है.

देश की सरकार और बड़ी तेल कंपनियों के लिए कच्चा तेल खरीदने और उसका सौदा करने का कोरोना ने एक बड़ा मौका दिया है. हालाँकि इन परिस्थितियों में पैसे की कमी है. देश की भंडारण क्षमता के हिसाब से मौजूदा कीमतों पर तेल का सौदा कर लेना चाहिए. क्योंकि कच्चे तेल की कीमतें पिछले बीस वर्षों में इतनी कम नहीं हुई थी जितनी अब हो गई हैं. एक बार अर्थव्यवस्था में तेजी आने के बाद निकट भविष्य में कच्चे तेल के इतने कम मूल्य पर उपलब्ध होने की संभावना नहीवत है.

भारत सबसे खराब कोरोना महामारी के दौर से उबर चुका है. लेकिन उसे अभी भी सतर्क रहना होगा क्योंकि यदि वायरस फिर से फैला तो इसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि एक और लॉकडाउन से गुजरना पड़े. व्यापार-रोजगार और उद्योग-व्यवसाय को उसके अनुसार योजना बनानी होगी!

विशेषज्ञ कोरोना के बाद डिजिटल अर्थव्यवस्था में उछाल की संभावना देख रहे हैं. घर से काम करना, होम एज्युकेशन क्लास, घर में ही मनोरंजन, नेट बैंकिंग, ई-कॉमर्स, ई-रिटेल आदि का उपयोग बढे हैं. इन सबकी वजह से महंगे ऑफिस, इंटिरियर का खर्चा, फैंसी कार, सरप्लस स्टाफ इत्यादि की लागत हमें कम करना चाहिए और डिजिटल प्रोसेस पर ज्यादा फोकस करना होगा.

सरकार को सामूहिक स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण पर विशेष जोर देना होगा. क्योंकि कोरोना की वजह से पड़ने वाले प्रभाव के कारण गरीब और अमीर के बीच की खाई और ज्यादा चौड़ी हो गई है. इतना ही नहीं अर्थशास्त्रियों को डर है कि भारत की लगभग बीस करोड़ आबादी गरीबी की गर्त में चली जाएगी.

आर्थिक रूप से सक्षम, मजबूत और धनिक देशों को अधिक करेंसी नोट छापना एक समाधान हो सकता है. लेकिन भारत जैसे देश के लिए इस तरह का कदम मुद्रास्फीति को आमंत्रित करने जैसा होगा. जिसे कोई भी कभी भी बर्दाश्त नहीं कर सकता. अधिक विदेशी पूंजी निवेश ही इस परिस्थिति का समाधान है. सरकार को भारत में अधिक से अधिक पूंजी लाने के लिए प्रयासरत होना चाहिए और उसके लिए आर्थिक गतिविधियों में अमूलचूल सुधार करना चाहिए.

इसके अलावा भारतीय निर्यातकों को निर्यात कारोबार में विश्वसनीयता बनाने की जरूरत है, जो बांग्लादेश ने किया है. झूठे वादे ना करना, गुणवत्ता को लेकर आश्वस्त होना, सामानों का समय पर सप्लाइ करना. ऐसी छोटी-छोटी बातें विश्वसनीयता को बढ़ाने में कारगर साबित हो सकती हैं. सरकार और संबंधित सरकारी विभाग भी इसमें सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं.

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि, वैश्विक अर्थव्यवस्था में 2020 कोरोना महामारी के कारण एक प्रतिशत की कमी आएगी. अगर सरकार लोगों की आय बढ़ाने और उपभोक्ता खर्च को बढ़ावा ना दे तो, यह गिरावट और भी बढ़ सकती है. विशेषज्ञों ने कोरोना के जनक चीन और जी7 के अमीर देशों की अर्थव्यवस्था में भी 1.2 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान व्यक्त कर रहे हैं. इस परिस्थिति में भारतीय अर्थव्यवस्था का भविष्य उज्ज्वल दिखाई दे रहा है, उसकी झलक पिछले दिनों होने वाले मेकेन्सी नामक संस्था के सर्वेक्षण में दिखता है. सर्वेक्षण के अनुसार, 53% भारतीय उद्यमी आशावादी हैं जबकि जापान में केवल 25% उद्यमी ही अर्थव्यवस्था को लेकर आशावादी पाए गए.

(परिमल नथवाणी रिलायंस इंडस्ट्रीज के सीनियर ग्रुप प्रेसिडेंट हैं एवं आंध्र प्रदेश से राज्यसभा के उम्मीदवार हैं)