अहमदाबाद: शराबबंदी वाले गुजरात में अब तक लठ्ठा कांड की चार बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं. इन तमाम मामलों की जांच के लिए सरकार ने आयोग का गठन किया. जांच के लिए गठित आयोग ने गुजरात में शराब प्रतिबंध नीति की विफलता के लिए पुलिस के भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराया. आयोग की रिपोर्ट आने के बाद भी हालात जैसे के तैसे बने हुए हैं जिसकी वजह से एक बार फिर बड़ी घटना हो गई है.
जुलाई 2009 में अहमदाबाद की लठ्ठा कांड में जहरीली शराब पीने की वजह से 150 लोगों की मौत के बाद सरकार ने कानून में संशोधन कर मौत की सजा का प्रावधान किया था. उसके बाद एक भी आरोपी को इस तरीके की सजा नहीं मिली.
जुलाई-2009 में, अहमदाबाद की लठ्ठा कांड की दो अलग-अलग पुलिस शिकायतों में 63 में से केवल 18 आरोपियों को दोषी ठहराया गया था. इनमें से केवल पांच दोषियों को 10 साल की जेल हुई थी. शेष 11 को केवल दो साल जेल में रहने के बाद रिहा कर दिया गया जबकि दो दोषियों को सात साल की सजा सुनाई गई. सबूत अभाव की वजह से कोर्ट ने 45 को बरी कर दिया था. इसके पीछे भी पुलिस की जांच में उदासीनता का आरोप लगाया जा रहा है.
यह पता चला है कि शीर्ष अधिकारियों ने इस क्रम की पुनरावृत्ति से बचने के लिए पिछले जांच आयोगों की रिपोर्टों का अध्ययन करना शुरू कर दिया है. साल 1989 की घटना की जांच के लिए गठित न्यायमूर्ति ए.ए. दवे द्वारा सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में उन्होंने गुजरात से शराबबंदी हटाने या उसमें उपयुक्त बदलाव करने का सुझाव दिया. जबकि जस्टिस मियामी आयोग ने शराब प्रतिबंध नीति की विफलता के लिए पुलिस भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराया. अंत में, न्यायमूर्ति केएम मेहता आयोग ने पुलिस की संदिग्ध और भ्रष्ट भूमिका के अलावा मौजूदा कानूनों को मजबूत करने की सिफारिश की.
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