हितेश चावड़ा, गांधीनगर: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 24 फरवरी से दो दिन के लिए भारत दौरे पर आ रहे हैं. उनके दौरे की शुरुआत गुजरात के अहमदाबाद शहर से होगी. जहां वह करीब तीन घंटे बिताएंगे. ट्रंप के स्वागत को यादगार बनाने के लिए गुजरात सरकार कोई कमी नहीं रखते हुए पानी की तरह पैसा बहा रही है. गुजरात सरकार तीन घंटे के इस यात्रा पर 100 करोड़ रुपये से ज्यादा पैसे खर्च करेगी. तकरीबन एक मिनट में 55 लाख रुपये से ज्यादा खर्च किया जाएगा. उल्लेखनीय है कि इन सब के बीच गांधीनगर में आए सत्याग्रह छावनी पर युवा बेरोजगारों का पांच अलग-अलग समूह आंदोलनरत हैं.
बेरोजगारी की समस्या गुजरात में दिन ब दिन नासूर की तरह फैलती ही जा रही है. नेशनल सेम्पल सर्वे के मुताबिक, 2011-12 में गुजरात में बेरोजगारी की दर 0.5 प्रतिशत थी जो 2017-18 में बढ़कर 4.8 तक पहुंच गई. 2016 के बाद नोटबंदी और जीएसटी की मार से गुजरात के छोटे और मझौले उद्योगों की कमर टूट चुकी है. सूरत का टेक्सटाइल उद्योग, हीरा उद्योग, जामनगर का ब्रास उद्योग, अहमदाबाद और राजकोट में फैला आटो मोबाइल पार्ट्स उद्योग, मोरबी का सिरामिक उद्योग,इक्कीसवीं सदी के
सबसे भयानक मंदी के दौर से गुजर रहे हैं. इसके कारण बेरोजगार युवाओं की फौज का विकराल संकट गुजरात के सामने खड़ा हो गया है और आए दिन नित नये आंदोनलों का सामना गुजरात सरकार को करना पड़ रहा है.
गुजरात में पिछले एक साल के दौरान 10 से ज्यादा बेरोजगारी की समस्या से जूझते युवानों के आंदोलनों से दो-चार होना पड़ा है. गुजरात की राजधानी गांधीनगर में बनी सत्याग्रह छावनी प्रतिदिन बेरोजगारों के आंदोलन की गवाह बन रही है. अभी हालात ऐसे हो गए हैं कि सत्याग्रह छावनी में 5 अलग-अलग बेरोजगारों का समूह धरना प्रदर्शन कर रहा है. जिनमें LRD (पुलिस लोक रक्षक दल) SC-ST-OBC वर्ग की महिलाओं को गुजरात सरकार के विवादित सर्कुलर के बाद पिछले 2 महीने से ज्यादा वक्त से आंदोलन करना, उसके बाद आदिवासियों का फर्जी आदिवासी प्रमाण पत्र रद्द करने का आंदोलन, सौराष्ट्र आदिवासियों का आंदोलन, LRD भर्ती मामले में पुरुष अभ्यर्थी आंदोलन और ATA भर्ती के उम्मीदवारों का आंदोलन, बिन सचिवालय परीक्षा लीक मामला को लेकर आंदोलन, निवृत्त सेना से जुड़े लोगों की अलग-अलग मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं.
अप्रैल 2019 में द वायर की एक प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, “2011-12 में गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 0.8 फीसदी थी, वहीं यह आंकड़ा 2017-18 में बढ़कर 14.9 फीसदी पर पहुंच गया. शहरी क्षेत्रों में ये दर 2.1 फीसदी से बढ़कर 10.7 फीसदी पर पहुंच गई.”
2019 में गुजरात सरकार द्वारा विधानसभा में पेश किये गए रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात में चार लाख दो हजार 391 शिक्षित बेरोजगार हैं. वहीं 22 हजार 599 अशिक्षित बेरोजगार हैं. जिसके सामने गुजरात सरकार आखरी के दो सालों में सिर्फ 5 हजार 497 लोगों को ही रोजगार मुहैया करा पाई है. अहमदाबाद में 44 हजार 384 शिक्षित बेरोजगार हैं जिनमें से सरकार सिर्फ 171 लोगों को 2 वर्षों के दौरान रोजगार दे पाई है. बडोदरा और सूरत जैसे मुख्य शहरों की स्थिति तो और भी दयनीय है. सूरत में 23 हजार 141 शिक्षित और 879 अर्धशिक्षित बेरोजगार हैं जबकि बडोदरा में 26 हजार 775 शिक्षित और 891 अर्धशिक्षित बेरोजगार हैं परंतु सूरत और बड़ोदरा में सरकार एक भी रोजगार का अवसर मुहैया करवा पाने में असफल रही है.
उपरोक्त आंकड़े गुजरात सरकार के रोजगार कार्यालय में दर्ज बेरोजगारों की संख्या के आधार पर पेश किया गया है जबकि ऐसे बेरोजगार जिनको दर्ज नहीं किया गया है उनके हालात इससे कहीं ज्यादा भयावह हैं. बेरोजगारी का आलम यह हो चुका है कि गुजरात में सरकारी नौकरी के 1800 पदों के लिए 19 लाख आवेदन किये गए हैं जबकि विभिन विभागों में निकली 12 हजार नियुक्तियों के लिए 38 लाख उम्मीदवारों ने आवेदन दर्ज कराए हैं जोकि गुजरात के कुल युवा जनसंख्या साढ़े तीन करोड़ का लगभग 10-11 प्रतिशत बेरोजगारों की संख्या दर्शाता है.
गुजरात सरकार जहां लाखों करोड़ रुपये के कर्ज में डूबी है. वहीं मुखिया विजय रुपाणी ने साफ कर दिया है कि ट्रंप के आवभगत में बजट कहीं से भी आड़े नहीं आना चाहिए. फिर चाहे 200 परिवार के सपनों का आशियाना तोड़ने की नोटिस हो या फिर गरीबों को चीन की दिवाल के मानिन्द दीवाल बनाकर ढकने की कोशिश या फिर तीन करोड़ रुपये की फूलों से ट्रंप दम्पति का स्वागत करना.
रंगारंग इवेंट प्रेमी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में शुरू हुआ “वाइब्रेंट गुजरात” और ऐसे दर्जन भर खर्चालू कार्यक्रम से गुजरात को कुछ हासिल होने की जगह लगातार आर्थिक छति पहुंचती रही है. व्यापक प्रचार-प्रसार से “मॉडल स्टेट” बने गुजरात में बेरोजगारी पिछले एक दशक में मुख्य समस्या के रूप में उभर कर आई है. गुजरात के नौजवान तबके के लोगों को रोजगारी दिलवाने के नाम से गुजरात गत वर्षों में कई हिंसक-अहिंसक आंदोलनों के दौर से गुजर चुका है लेकिन इन तमाम आंदोलनों से बेरोजगारों की समस्या में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आया है.
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