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हैप्पी होली : देश भर में होलिका दहन आज, जानिए शुभ मुहूर्त और कथा

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बुराई पर अच्‍छाई की जीत का प्रतीक होली की देश भर में धूम है. होली में जितना महत्‍व रंगों का है उतना ही महत्‍व होलिका दहन का भी है. रंग वाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है जिसको लेकर तैयारी कई दिन पहले शुरू हो जाती हैं. सूखी टहनियां, लकड़ी और सूखे पत्ते इकट्ठा कर उन्‍हें एक सार्वजनिक और खुले स्‍थान पर रखा जाता है. फिर फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को अग्नि जलाई जाती है.

हिन्‍दू पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात्रि ही होलिका दहन किया जाता है. इस बार होलिका दहन नौ मार्च (मंगलवार) को किया जाएगा, जबकि रंगों वाली होली 10 मार्च को है. होलिका दहन के बाद से ही मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. मान्‍यता है कि होली से आठ दिन पहले तक भक्त प्रह्लाद को अनेक यातनाएं दी गई थीं.

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

होलिका दहन पूर्थिमा तिथि नौ मार्च को सुबह तीन बजकर तीन मिनट से प्रारंभ होकर उसी दिन रात 11 बजकर 17 मिनट तक है. वहीं होलिका दहन मुहूर्त शाम छह बजकर 26 मिनट से रात आठ बजकर 52 मिनट के बीच का है. यानी इस समय अवधि के दौरान होलिका दहन किया जाएगा.

होलिका दहन का महत्‍व

होली हिन्‍दू धर्म के प्रमुख त्‍योहारों में से एक है और इसका धार्मिक महत्‍व भी बहुत ज्‍यादा है. होलिका दहन की अग्नि को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है. होलिका दहन की राख को लोग अपने शरीर और माथे पर लगाते हैं. मान्‍यता है कि ऐसा करने से कोई बुरा साया आसपास भी नहीं फटकता है. होलिका दहन इस बात का भी प्रतीक है कि अगर मजबूत इच्‍छाशक्ति हो तो कोई बुराई आपको छू भी नहीं सकती. जैसे भक्‍त प्रह्लाद अपनी भक्ति और इच्‍छाशक्ति की वजह से अपने पिता की बुरी मंशा से हर बार बच निकले.

होलिका दहन की कथा

पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार सालों पहले पृथ्वी पर एक अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यपु राज करता था. उसने अपनी प्रजा को यह आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की वंदना न करे, बल्कि उसे ही अपना आराध्य माने. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था. उसने अपने पिता की आज्ञा की अवहेलना कर अपनी ईश-भक्ति जारी रखी. ऐसे में हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र को दंड देने की ठान ली. उसने अपनी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बिठा दिया और उन दोनों को अग्नि के हवाले कर दिया. दरअसल, होलिका को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि कभी नहीं जला पाएगी. लेकिन दुराचारी का साथ देने के कारण होलिका भस्म हो गई और सदाचारी प्रह्लाद बच निकले. तभी से बुराइयों को जलाने के लिए होलिका दहन किया जाने लगा.

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