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जो बिकाऊ नहीं उनके साथ होगा 2022 चुनाव आयोजन

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शंकरसिंह वाघेला: गुजरात की सत्ताधारी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की नीति और राजनीति के कारण गुजरात के नागरिकों को अहित हो रहा है. यह तब भी हो रहा था जब गुजरात में कांग्रेस की सरकार थी. इसीलिए लोगों को भरोसे में लेकर, कैसे प्रदेश का शासन चलाया जाए इस मामले को मैं राज्य के प्रबुद्ध नागरिकों के साथ बैठक कर चर्चा-विचारणा करूंगा. लेकिन उससे पहले मैं शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल से मिल रहा हूं और उनका मार्गदर्शन लूंगा.

चुनाव तो आएगा और चला भी जाएगा. लेकिन अगर निर्वाचित नेता दल बदल करते रहे तो लोगों की स्थिति में कोई सुधार नहीं होगा और जनता धोखा खाती रहेगी. इसीलिए आने वाले दिनों में, मैं उन लोगों से मिलने का आयोजन करुंगा जो सार्वजनिक जीवन में रुचि रखते हों. आम जनता के हित में रुचि रखते हों. जो राजनीति विज्ञान में विश्वास करते हों. भाजपा, कांग्रेस, एनसीपी या फिर अन्य पार्टी किसी ना किसी के बंधन में होती है. लेकिन उस बंधन की वजह से जनता का नुकसान नहीं होना चाहिए. जिस तरह क्रिकेट मैच के मैदान पर खिलाड़ी बिना दबाव चौके और छक्का मारता है, उसी तरह राजनीति में भी ऐसे दबाव और बंधन मुक्त माहौल की जरूरत है. शराब पर प्रतिबंध लगाने, बेरोजगारों को नौकरी देने, किसानों का कर्ज माफ, रियायती दरों पर किसानों को बिजली देना आदि फैसला लेने के लिए मंत्री या नेता पर कोई दबाव या बाध्यता नहीं होनी चाहिए.

आदिवासी समाज इन दिनों निराश्रित है. उनको लूटा जा रहा है. दलित समाज की पीड़ा अकल्पनीय है. बक्शीपंच (ओबीसी) की हर जाति दुखी है. पटेल समुदाय के आंदोलन को अभी कुछ दिनों पहले लोगों ने देखा है. इन दिनों गुजरात में कोई भी वर्ग, समूह या जाति ऐसी नहीं है जो किसी तरह से शासक वर्ग से दुखी ना हो. उनके दुख को आवाज देने वाला कोई नहीं है. निजी स्वार्थ को त्याग कर दुखी लोगों की आवाज को उठाने वाले लोगों से मुलाकात कर आगे की दिशा- दशा तय की जाएगी.

प्रजा के हित में विचार करने वाले लोगों को चुने जाने का कई उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं. आंध्र प्रदेश में चार पार्टी होने के बाद भी जगन रेड्डी को बहुमत मिला. पश्चिम बंगाल में भी बड़ी पार्टियों के होने के बावजूद ममता बनर्जी ने सरकार बनाई. हरियाणा में नवागंतुक दुष्यंत चौटाला ने थोड़े समय में जनता का काम कर उप मुख्यमंत्री बने और हरियाणा की राजनीति की तस्वीर बदल दी. अरविंद केजरीवाल ने कुछ ही समय में जनता का भरोसा जीतकर दिल्ली में दूसरी बार सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की. नकारात्मक अभिगम को छोड़कर सकारात्मकता से प्रजा के हित में काम करने वाले नेताओं की इन दिनों सख्त जरुरत है. 1996-97 के दौर में गुजरात में मेरी सरकार के द्वारा लिए गए फैसलों को आज भी लागू किया जा रहा है. नेताओं से बिना अपॉइंमेंट के जनता को मिलने की छूट होनी चाहिए. लोक दरबार का आयोजन. लाल बत्ती पर प्रतिबंध, वेतन मुक्त मुख्यमंत्री, सीमित सुरक्षा काफिला, अर्थव्यवस्था और प्रशासनिक संरचना का विकेंद्रीकरण आदि हमारे मुख्यमंत्री काल में किया गया था. लोगों तक मंत्रीमंडल को लेकर जाना और उनकी उपस्थिति में निर्णय लेना और समस्याओं को समाप्त करना इसे सिंगल विंडो सिस्टम कहा जाता है. किसान हो या व्यापारी दोनों के ही सवालों पर ध्यान दिया जाता था. तत्कालीन सरकार ने किसानों को कपास का अविश्वसनीय मूल्य दिया था. ऐसी सरकार को जन-समर्थक सरकार कहा जाता है. ऐसी सरकार को फिर से अस्तित्व में लाने के लिए आने वाले दिनों में निर्णय लिया जाएगा.

(विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं. शंकरसिंह वाघेला “बापू” गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं और 50 साल से राजनीति में सक्रिय हैं.)

https://archivehindi.gujaratexclsive.in/bjps-narrow-thinking-has-played-the-role-of-the-opposition-shankersingh-vaghela/