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धार्मिक आजादी पर अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट खारिज, भारत ने दिया करारा जवाब

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नागरिकता संशोधन कानून और अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा के मामलों का हवाला देकर ‘खास चिंता वाले देशों’ में भारत का नाम डालने की अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की सिफारिश करने पर भारत सरकार ने करारा जवाब दिया है. भारत ने मंगलवार को अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) की रिपोर्ट को खारिज किया और कहा कि आयोग का यह पक्षपातपूर्ण बयान कोई नया नहीं है. दरअसल, दुनियाभर में धार्मिक स्वतंत्रता की निगरानी करने का जिम्मा संभाल रहे अमेरिकी आयोग ने मंगलवार को ट्रंप प्रशासन के विदेश विभाग से भारत समेत 14 देशों को ‘खास चिंता वाले देशों’ (सीपीसी) के रूप में नामित करने को कहा और आरोप लगाया कि इन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं.

भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘हम अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की वार्षिक रिपोर्ट में भारत के खिलाफ टिप्पणियों को खारिज करते हैं. भारत के खिलाफ उसके ये पूर्वाग्रह वाले और पक्षपातपूर्ण बयान नए नहीं हैं, लेकिन इस मौके पर उसकी गलत बयानी नये स्तर पर पहुंच गई है.

किन देशों का है नाम

दरअसल, अमेरिका अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग(यूएससीआईआरएफ) ने मंगलवार को जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि इसमें नौ ऐसे देश हैं जिन्हें दिसंबर, 2019 में सीपीसी नामित किया गया था, वे म्यांमार, चीन, एरिट्रिया, ईरान, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, तजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान हैं. उनके अलावा उसमें पांच अन्य देश- भारत, नाईजीरिया, रूस, सीरिया और वियतनाम हैं.

क्या है रिपोर्ट में

अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट के 2020 के संसकरण में यूएससीआईआरएफ ने आरोप लगाया कि 2019 में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की दशा में बड़ी गिरावट आयी एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले तेज हो गये. हालांकि आयोग के नौ सदस्यों में से दो ने भारत को सीपीसी में रखने की आयोग की सिफारिश पर अपनी असहति रखी है. तीसरे सदस्य ने भी भारत पर अपनी निजी राय रखी है.

आयोग के सदस्य ने दिया भारत का साथ

आयोग के सदस्य गैरी एल बाउर ने अपनी असहमित में लिखा कि वह अपने साथियों से अपनी असहमति रखते हैं. तेंजिन दोरजी ने भी लिखा है कि भारत, चीन और उत्तर कोरिया की तरह निरंकुश शासन की श्रेणी में नहीं आता है. भारत पहले ही कह चुका है कि अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आजादी पर यह निकाय अपने पूर्वाग्रहों से ग्रस्त है और इस विषय पर उसका कोई अधिकार ही नहीं बनता है.

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