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क्या वाकई गुजरात में इन दिनों CM के रूप में रुपाणी की नहीं बल्कि आनंदीबेन की जरूरत है?

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तुंवर मुजाहिद, अहमदाबाद: गुजरात में पिछले कुछ समय से चर्चा है कि रूपानी जा रहे हैं. ऐसे में आज बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने गुजरात के शीर्ष नेतृत्व को बदलने और पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को गुजरात की कमान सौंपने के बारे में ट्वीट किया, जिससे गुजरात की राजनीति में उथल-पुथल की नई लहर दिखाई देने लगी है. स्वामी के ट्वीट के कारण गुजरात की राजनीति और मीडिया में एक बार फिर कई नए तर्क सामने आने लगे हैं. लेकिन तमाम तर्कों के बीच क्या सच में आनंदीबेन को गुजरात के नए मुख्यमंत्री के रूप में कितनी जरुरत है इसका मूल्यांकन होना चाहिए या नहीं? गुजरात जब अपने इतिहास के सबसे कठिन स्थिति से गुजर रहा है, तो क्या राज्य की नेतृत्व क्षमता का आकलन नहीं किया जाना चाहिए? गुजरात देश के सबसे खुशहाल राज्यों में से एक है लेकिन इन दिनों भूख, प्यास और तनाव से गुजर रहा है तब नेतृत्व का मूल्यांकन किया जाना चाहिए या नहीं? इन सभी मामलों पर अभी विचार करने की आवश्यकता है और राज्य को वर्तमान स्थिति के प्रत्येक रुझान का निरीक्षण करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है.

सुब्रमण्यम स्वामी ने आज सुबह ट्वीट किया कि गुजरात में कोरोना वायरस के आंकड़े केवल तभी स्थिर हो सकते हैं जब आनंदीबेन लौट आए. स्वामी के एक ट्वीट से गुजरात में राजनीतिक तूफान शुरू हो गया. हालांकि, कुछ विशेषज्ञों को उनके बातों में दम लग रहा है, क्योंकि मौजूदा स्थिति में, गुजरात को वास्तव में एक जनवादी नेता और ऐसे, नेता की आवश्यकता है जो स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सके. आनंदी बेन पटेल को ऐसे नेताओं में सबसे आगे माना जा सकता है. हालांकि, जन नेताओं के रूप में नितिन पटेल, शंकर चौधरी और कुवरजी बावणिया के नामों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.


यहां उल्लेखनिय है कि पूरे गुजरात में जिस तरीके से कोरोना अपना कोहराम मचा रखा है उसे देखकर लगता है कि निकट भविष्य कोरोना का हॉटस्पॉट पूरा गुजरात बन जाएगा. रुपाणी सरकार कोरोना वायरस पर काबू पाने और लॉकडाउन से बाहर निकलने के लिए अभी तक कोई कार्य योजना नहीं बनाई है. अब तक ऐसी कोई आपदा गुजरात में नहीं आई थी इसलिए केंद्र के आदेश पर ही गुजरात चल रहा था. लेकिन कोरोना महामारी ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जहां अगर केंद्र सरकार अकेले गुजरात पर ध्यान केंद्रित करती है राज्य प्रेमी होने का कलंक लग सकता है. ऐसे में गुजरात को केंद्रित करने वाले एक नेतृत्व की आवश्यकता है जो छोटे गांवों के लोगों से लेकर बड़े शहरों में रहने वाले लोग उसकी बात पर भरोसा रखते हों तभी गुजरात की डूबती नैया को पार लगाया जा सकता है.

कोरोना की एंट्री के साथ सीएम रूपानी की भूमिका ने मोदी के गुजरात मॉडल को धूमिल करने का भी काम किया है. इसीलिए रूपानी जा रहे हैं इसकी चर्चा जोर पकड़ ली है. वर्तमान परिदृश्य को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि सीएम रूपानी केवल केंद्र द्वारा निर्देशित और अधिकारियों के भरोसे कोरोना के खिलाफ जंग लड़ने के लिए निकल पड़े हैं.

इस बात से कोई इनकार नहीं करेगा कि गुजरात को वर्तमान में एक मजबूत नेतृत्व क्षमता की आवश्यकता है. एक ऐसे नेता की जरूरत है जो नौकरशाही का खात्मा कर गुजरात के लोकतंत्र में जान फूंक सके. गुजरात में कोरोना का इलाज फिलहाल मुट्ठी भर अधिकारियों के भरोसे पर चल रहा है जो एक नग्न सत्य है, कि अधिकारियों को प्रशिक्षित बाबूगिरी से किया जा रहा है. गुजरात को इन दिनों एक जन नेता की तत्काल आवश्यकता महसूस की जा रही है. जिसे देखकर गुजरात के लोगों को कोरोना के खिलाफ लड़ने का हौसला पैदा हो सके.

गुजरात को अभी एक ऐसे नेता की जरूरत है, जो गुजरात से रिमोट प्रथा को समाप्त कर सके. जो लोगों की नब्ज को समझता हो और स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकता हो. वह केवल गुजरात की स्थिति के बारे में आलाकमान को सूचित करता हो और केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों पर काम करने वाला हो, गुजरात को इन दिनों एक ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जो किसी “बाबू और अधिकारी” को “साहब से बात करने” का मौका ही न देने वाला हो.

गुजरात को अब केंद्र में एक ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जो आम जनता और वर्तमान में काम कर रहे अधिकारियों के बीच एक सेतु का काम कर सके, जिस पर अधिकारियों और जनता दोनों को विश्वास हो. गुजरात की डूबती अर्थव्यवस्था को एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है जिस पर व्यवसायी और निवेशक जैसे लोग भरोसा कर सकें

उदाहरण के लिए, जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो उनके कहने पर रत्ना टाटा बंगाल के शिंगूर से गुजरात के साणंद में नैनो संयंत्र स्थापित करने के लिए एक मिनट के लिए भी नहीं सोचा था. क्योंकि, उन्हें पता था कि नरेंद्र मोदी में राज्य की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिरता संभालने की क्षमता है.

टाटा मोटर्स ने सबसे पहले पश्चिम बंगाल के सिंगूर में नैनो प्लांट को स्थापित किया था उन दिनों ममता बनर्जी का उदय हो रहा था और ज्योति बसु का सूरज ढल रहा था, जिसके चलते टाटा सिंगुर का प्लांट वहां राजनीतिक अस्थिरता के बीच स्थापित नहीं किया जा सका. जिसके बाद इस प्लांट को फौरन गुजरात में स्थापित करने का फैसला किया. क्योंकि उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री पर भरोसा था कि उनके समर्थन के कारण गुजरात में कोई भी अधिकारियों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता परेशान नहीं कर पाएगा.

गुजरात को एक ऐसे नेता की आवश्यकता है जो कोरोना और कोरोना के बाद रोजगार, समाज, धन और विश्वास को बचाने के लिए के लिए काम कर सके. एक स्पष्ट, दूरदर्शी और मजबूत नेतृत्व क्षमता वाले नेता को जिम्मेदारी सौंपने की आवश्यकता है. गुजरात में ऐसे गुणों वाले कुछ मुट्ठी भर ही नेता हैं. जिसका मूल्यांकन किया जाए तो आनंदीबेन पटेल का नाम सबसे आगे आता है.

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