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भाजपा के हाथ से झारखंड भी निकला, हार के पीछे की ये है मुख्य वजह

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2000 में बिहार से अलग होकर नए राज्य के रूप में सामने आए झारखंड में 26 फीसद से ज्यादा आदिवासी तबके के लोग रहते हैं. प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस राज्य में भी आर्थिक मंदी का काफी असर देखने को मिला इतना ही नहीं गैर आदिवासी समुदाय से आने वाले रघुबर दास को लेकर झारखंड के आदिवासियों में काफी ज्यादा नाराजगी दिखने को मिली रही थी. इतना ही नहीं झारखंड बीजेपी के हाथों से इसलिए भी चली गई क्योंकि इस बार जहां विपक्ष ने गठबंधन का सहारा लिया था वहीं बीजेपी एकला चलो के सिद्धांत को अपना रही थी.

आर्थिक मंदी का असर

झारखंड के चुनाव में आर्थिक मंदी का काफ़ी असर दिखा. सबसे ज़्यादा प्रभाव यहां के औद्योगिक क्षेत्र जैसे जमशेदपुर , बोकारो , धनबाद के इलाक़ों में है. यहां जमशेदपुर के आदित्यपुर इलाके में इंडस्ट्रियल एरिया ये बंद पड़े कारख़ाने अब आम हैं. टेल्को के सहारे चलने वाले ऐसे करीब 1400 उद्योग हैं जो हर तरह के कल-पुर्जे बनाते हैं. पिछले दिनों टेल्को में ऐसे कई दिन आए, जब काम बंद रहा. इसकी सबसे बुरी मार यहां बंद पड़े कारख़ानों के मजदूरों पर पड़ी है. जाहिर इन मजदूरों की रोजी-रोटी पर असर पड़ा है और बदलने में उन्होंने बीजेपी का इसका नुकसान उठाना पड़ा है.

विपक्ष का महागठबंधन

एक तरफ जहां बीजेपी ने झारखंड में एकला चलो के सिद्धांत पर अमल करते हुए अकेलेदम चुनावी समर में उतरने का फैसला किया. वहीं, झारखंड में विपक्ष ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा. नतीजा सामने है कि बीजेपी का केसरिया किला ध्‍वस्‍त हो गया. झारखंड मुक्ति मोर्चा, आरजेडी और कांग्रेस के महागठबंधन ने सीटों का बंटवारा कर चुनाव लड़ा और बीजेपी के अकेले सरकार बनाने के मंसूबों पर पानी फेर दिया. चुनाव परिणामों में अब विपक्ष राज्‍य में पूर्ण बहुमत हासिल करता दिख रहा है. गौरतलब है कि 2014 के चुनाव में तीनों ही दल अलग-अलग चुनाव लड़े थे, लेकिन इस बार कांग्रेस ने महाराष्‍ट्र और हरियाणा से सबक सीखते हुए जेएमएम और आरजेडी के साथ महागठबंधन बनाया.

आदिवासी चेहरा न उतारना

झारखंड में 26.3 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है और 28 सीटें उनके लिए आरक्षित हैं. महागठबंधन ने जेएमएम के आदिवासी नेता हेमंत सोरेन को सीएम पद का उम्‍मीदवार बनाया, वहीं बीजेपी की ओर से गैर आदिवासी समुदाय से आने वाले रघुबर दास दोबारा सीएम पद के उम्‍मीदवार रहे. झारखंड के आदिवासी समुदाय में रघुबर दास की नीतियों को लेकर आदिवासियों में काफी गुस्‍सा था. आदिवासियों का मानना था कि रघुबर दास ने अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान आदिवासी विरोधी नीतियां बनाईं. सूत्रों की मानें तो आदिवासी समुदाय से आने वाले अर्जुन मुंडा को इस बार सीएम बनाए जाने की मांग उठी थी, लेकिन बीजेपी के शीर्ष नेतृत्‍व ने रघुबर दास पर दांव लगाया जो उल्‍टा पड़ गया. नतीजा सामने है बीजेपी को साल भर के अदर ही एक और राज्य की सरकार से हाथ धोना पड़ा है.